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सारी दैवी सम्पत्तियों का मूल स्त्रोत है – प्रेम

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आप चाहे कितनी भी शक्ति लगा लें, न तो शरीर सदा रहेगा और न कुटुम्बी ही सदा रहेंगे। संसारकी कोई भी वस्तु आपके पास सदा नहीं रहेगी। कारण यही है कि भगवान निरन्तर आपको खींच रहे हैं। यह उनकी हमपर महान कृपा है !

अतएव यदि आप संसार से विमुख हो जाओगे तो भगवान की प्राप्ति हो जायेगी और आप सदा के लिये सुखी हो जाओगे। यदि संसार में ही रचे – पचे रहे तो दुःख का अंत कभी आएगा ही नहीं और नित्य नया-से-नया, तरह-तरह का दुःख मिलता ही रहेगा।

यह बड़े दुःख की बात है कि लोग भगवान और सन्त-महात्माओं से भी सांसारिक सुख मांगते हैं ! दान-पुण्यादि करके भी बदले में सांसारिक भोग चाहते हैं। परमात्मतत्व को बेचकर बदले में महान दुःखों के जलरूप संसार को खरीद लेते हैं। यह महान कलंक की बात है !

प्रेम सारी दैवी सम्पत्तियों का मूल स्त्रोत है | जहाँ प्रेम है, वहाँ त्याग, सद्भावना, सहिष्णुता, क्षमा, उदारता, वदान्यता, मैत्री, अहिंसा, सेवा, सरलता, उन्मुक्त-हृदयता, निष्कामता, प्रसन्नता, सत्य, विश्वास, साहस और सौजन्य आदि सद्गुण अपने-आप आ जाते हैं |

इसके विपरीत जहाँ स्वार्थ है, वहीं भय है और जहाँ भय है, वहाँ परिग्रह, दुर्भाव, असहिष्णुता, कामना, क्रोध, कृपणता, अनुदारता, द्वेष, वैर, कपट, दम्भ, विषद, अविश्वास, घृणा, लोभ, प्रतारणा, कायरता और कुटिलता आदि नीच वृत्तियाँ अपने-आप उत्पन्न हो जाती हैं |

जहाँ दैवी सम्पत्ति है, वहाँ सहज सुख, उल्लास आनन्द, आत्मीयता रहते हैं और जहाँ आसुरी सम्पत्ति है, वहाँ शोक, विषाद, दुःख, परायापन रहते हैं |

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