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हनुमत् स्तुति

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।। हनुमत् स्तुति ।।
(हिंदी अर्थ सहित)

जयति-अंजनी-गर्भ-अंभोधि-संभूत-विधु, विवुध-कुल कैरवानन्दकारी।
केसरीचारु-लोचन-चकोरक-सुखद, लोकगन सोक-संतापहारी।।१।।

जयति जय बालकपि कलि-कौतुक उदित चंडकर-मंडल-ग्रास-कर्ता।
राहु-रवि-सक पवि-गर्व-खीकरन सरन भयहरन जय भुवन-भत।।२।।

जयति रनधीर, रघुबीर-हित, देवमनि, रुद्र-अवतार, संसार-पाता।
विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपु,विमलगुन, दुद्धि-कारिधि-विधाता।।३।।

जयति सुग्रीव सिच्छादिरच्छन-निपुन, बालि-वल-सालि-वध-मुख्यहेतू।
जलधि-लंघन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू।।४।।

जयति भूनन्दिनी-सोच-मोचन विपिन-दलन घननादवस विगत संका।
लूम लीला अनल-ज्वालमाला-कुलित, होलिकाकरन लंकेस-लंका।।५।।

जयति सौमित्रि-रघुनंदनानंदकर, ऋच्छ-कपि कटक-संघट-विधायी।
बद्ध-वारिधि-सेतु, अमर-मंगल हेतु, भानुकुल-केतु-रनविजयदायी।।६।।

जयति जय वज्र तनु दसन नख मुख विकट,चंड-भुजदंडतरु-सैल-पानी।
समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरिडारे सुभट घालि घानी।।७।।

जयति दसकंठ-घटकरन-वारिद-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हता।
अघट घटना-सुघट सुघट-विघटन विकट,भूमि-पाताल-जल-गगन-गंता।।८।।

जयति विस्व-विख्यात वानैत-विरुदावली,विदुष वरनत वेद विमल वानी।
दास तुलसी-त्रास-समन सीतारमन, संग सोभित राम-राजधानी।।९।।

अर्थ-
हे हनुमानजी, तुम्हारी जय हो। तुम अंजनी के गर्भरूपी समुद्र से उत्पन्न होकर चन्द्रमा के समान देवकुल रूपी कुमुद को विकसित करने वाले हो। तुम अपने पिता के शरीर के सुन्दर नेत्र रूपी चकोरों को सुख देने वाले और समस्त लोकों का शोक-सन्ताप हरने वाले हो।

तुम्हारी जय हो, जय हो। तुमने बचपन में उदयकालीन प्रचण्ड रवि-मण्डल को लाल खिलौना समझकर निगल लिया था। उस समय तुमने राहु, सूर्य, इन्द्र और उनके वज्र का गर्व तोड़ दिया था। हे शरणागतों का भय हरनेवाले ! हे चौदह भुवनके स्वामी ! तुम्हारी जय हो।

हे युद्धक्षेत्र में धैर्य धारण करने वाले महावीरजी, तुम्हारी जय हो ! तुम श्रीरामजी के हितार्थ देव-शिरोमणि रुद्र के अवतार हो और संसार के रक्षक हो। तुम्हारा शरीर ब्राह्मण, देवता, सिद्ध और मुनियों के आशीर्वाद का साकार रूप है। तुम निर्मल गुण और बुद्धिसागर तथा विधाता हो।

हे उचित शिक्षा आदि से सुग्रीवको रक्षा करने में चतुर हनुमानजी, तुम्हारी जय हो। तुम महा पराक्रमी बालि के मरवाने के मुख्य कारण हो । तुम समुद्र लाँधते समय सिंहिका नाम- की राक्षसी का मद-मर्दन करने वाले सिंह हो। निशाचरों की लंकापुरी में उत्पात करने के लिए केतु हो।

हे जानकी जी को चिन्ताओं को दूर करने वाले, अशोक वन को उजाड़ने की नीयत से निःशंक होकर अपने को मेघनाद के ब्रह्मास्त्र में बँधवाने- वाले, तुम्हारी जय हो। तुमने अपनी पूँछ की लीला द्वारा आग की ज्वालमाला से आर्त रावण की लंकापुरी में होली-दहन-सा मचा दिया था।

हे राम और लक्ष्मण को आनन्दित करनेवाले, तुम्हारी जय हो ! तुम रीछ और बन्दरों की सेना संघटित करने के विधायक होकर समुद्र पर पुल बाँधने वाले हो, देवताओं का कल्याण करने वाले हो और सूर्यकुल-केतु (ध्वजा) श्रीराम जी को संग्राम में विजय-लाभ कराने- वाले हो।

तुम्हारी जय हो, जय हो। तुम्हारा शरीर, दाँत, नख और विकट मुँह वज्र के समान हैं। तुम्हारे भुजदंड बड़े प्रचंड हैं। तुम वृक्षों और पर्वतों को हाथों से उठानेवाले हो। तुमने समर-रूपी तेल पेरने के कोल्हू, राक्षस-समूह और बड़े-बड़े योद्धा रूपी तिलो की घानी डालकर पेर डाला है।

हे रावण, कुम्भकर्ण और मेघनाद के नाश के कारण, तथा कालनेमि राक्षस को मारने वाले, तुम्हारी जय हो। तुम असम्भव को सम्भव और सम्भव को असम्भव कर दिखाने में बड़े ही विकराल हो। तुम पृथ्वी, पाताल, जल और आकाश में गमन करने- वाले हो।

हे जगत्प्रसिद्ध वाणैत, तुम्हारी जय हो। पण्डित और वेद विमल वाणी से तुम्हारी गुणावली का वर्णन करते हैं। तुम तुलसीदास के भय को नाश करने वाले श्रीसीतारमण के साथ अयोध्यापुरी में सदा शोभायमान रहते हो।

जय जय श्री राम, जय जय श्री महावीर हनुमान 🙏🚩

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