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फ़िल्म ‘मर्द’ में क्रूर जनरल डायर की भुमिका निभाने वाले ऐक्टर – कमल कपूर

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दोस्तों अगर आपने अमिताभ बच्चन की फ़िल्म ‘मर्द’ देखी होगी तो शायद ही उस फ़िल्म के क्रूर किरदार जनरल डायर को भुला पाये होंगे। उस किरदार को निभाने वाले ऐक्टर का नाम है कमल कपूर, जिनकी पहचान है उनकी नीली-नीली कँजी आँखें जो उन्हें एक अंग्रेज की भूमिका में बड़ी ही आसानी से फिट कर देती थीं।

22 फरवरी 1920 को पेशावर के एक पंजाबी हिंदू परिवार में जन्मे कमल कपूर ने अपनी शिक्षा लाहौर में पूरी की थी। उनके भाई एक पुलिस ऑफिसर थे जो मध्यप्रदेश में कार्यरत थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद कमल कपूर ने भी अपने भाई के पास ही रहने का मन बना लिया था लेकिन अचानक उन्हें ऐक्टिंग के प्रति दिलचस्पी पैदा हो गयी और वे वर्ष 1944 में पेशावर से मुंबई आ गये जहाँ उसी वर्ष उनके मौसेरे भाई पृथ्वीराज कपूर ने पृथ्वी थियेटर की शुरूआत की थी।

कमल भी पृथ्वीराज कपूर के साथ थिएटर में काम करने लगे और ऐक्टिंग को ही अपना कॅरिअर बनाने का मन बना लिया। फ़िल्मों की बात करें तो कमल कपूर की पहली फिल्म 1946 में रिलीज हुई ‘दूर चलें’ थी। इस फ़िल्म में उनकी नायिका थीं नसीम बानो जो ऐक्ट्रेस सायरा बानो की माँ थीं।

हालांकि यह फ़िल्म तो सफल न हो सकी लेकिन कमल कपूर को उनके लुक की वज़ह से कई फ़िल्मों में काम ज़रूर मिल गया, वो भी बतौर नायक। बाद में वर्ष 1948 में रिलीज़ हुई ‘आग’ फ़िल्म में कमल ने राज कपूर के पिता की भूमिका निभाई, यह फ़िल्म निर्माता-निर्देशक के रूप में राज कपूर की पहली फिल्म भी थी।

हालांकि इस फ़िल्म के बाद उन्हें इसी तरह की भूमिकाएँ निभाने के लिए कई प्रस्ताव मिले, लेकिन उन्होंने करने से साफ इनकार कर दिया। दरअसल कमल बतौर नायक ही फिल्मों में काम करना चाहते थे और उन्होंने तकरीबन 21 फ़िल्मों में बतौर नायक काम भी किया लेकिन अफसोस की उन फ़िल्मों में उस दौर की जानी मानी ऐक्ट्रेसेज़ के होने के बाद भी उनकी कुछ ही फ़िल्में सफल हो सकीं।

वर्ष 1951 में कमल ने एक फ़िल्म भी प्रोड्यूस की जिसका नाम था ‘कश्मीर’ लेकिन यह फ़िल्म भी नाकाम ही साबित हुई। इसके बाद उन्होंने एक और फिल्म ‘ख़ैबर’ का निर्माण किया जिसमें वे ख़ुद ही नायक बने थे लेकिन वर्ष 1954 में आयी यह फ़िल्म भी बुरी तरह फ्लाप रही और कमल कपूर की अब तक की सारी कमाई हुई दौलत इस फ़िल्म में डूब गयी।

इस नाकामयाबी के बाद कमल टूट से गये और ऐक्टिंग फील्ड से एक दूरी सी बना ली। लेकिन कुछ ही वर्षों के बाद कमल ने वर्ष 1958 में आयी फिल्म आख़िरी दाँव से दोबारा फ़िल्मों में वापसी की और इस बार उन्होंने ख़ुद को एक विलेन के रूप में पेश किया जिसमें वे आगे चलकर कामयाब भी हुये।

हालांकि इस फ़िल्म से तो उन्हें आगे कोई काम नहीं मिल सका लेकिन उसी दौरान उनकी मुलाक़ात आइ एस जौहर जी से हो गयी जो उस ज़माने के मशहूर कॉमेडियन होने के साथ-साथ एक कामयाब राइटर, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर भी थे जिन्होंने आगे चलकर कमल कपूर को अपनी लगभग हर फ़िल्म में शानदार भूमिकायें दीं। बतौर विलेन कमल कपूर को वर्ष 1965 में रिलीज हुई इन्हीं की फिल्म “जौहर महमूद इन गोवा” से पहचान भी मिली थी। यह फिल्म इतनी बड़ी हिट साबित हुई कि कमल कपूर ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

इस फ़िल्म के बाद उनके पास फ़िल्मों की लाइन लग गई। “जौहर इन बॉम्बे”, “जौहर महमूद इन हांगकांग”, “जब जब फूल खिले”, “राजा और रंक”, “दस्तक”, “पाकीज़ा”, “पापी”, “चोर मचाए शोर”, “फाइव राइफल्स”, “दो जासूस”, “दीवार”, “खेल खेल में”, डॉन, “मर्द” और “तूफान” आदि ढेरों फ़िल्मों में कमल ने गैंगस्टर से लेकर भ्रष्ट पुलिस अफसर तक के छोटे-बड़े किरदार निभाये।

उनके द्वारा अमिताभ बच्चन की डॉन फ़िल्म में निभाया किरदार नारंग आज भी याद किया जाता है जो ख़ुद कमल कपूर का भी बेहद पसंदीदा किरदार था।लगभग पाँच दशकों तक ऐक्टिंग करने वाले कमल ने विलेन के साथ-साथ ढेरों कैरेक्टर रोल भी प्ले किये।

वर्ष 1967 में रिलीज हुई फिल्म ‘दीवाना’ में उन्होंने एक बार फिर राज कपूर के पिता की भूमिका निभाई थी। उन्होंने हिंदी के अलावा पंजाबी और गुजराती भाषाओं में लगभग 600 से भी अधिक फिल्मों में अभिनय किया। वर्ष 1993 में आयी फ़िल्म ‘ज़ख़्मीं रूह’ में वे आख़िरी बार नज़र आये थे।

बाद में बढ़ती उम्र के चलते कमल कपूर की तबीयत ख़राब रहने लगी और 2 अगस्त 2010 को उनका निधन हो गया। कमल कपूर के पांच बच्चे हैं जिनमें तीन बेटे और दो बेटियां हैं। उनकी छोटी बेटी 70 और 80 के दशक के मशहूर फिल्म निर्माता रमेश बहल की पत्नी हैं, जिनके बेटे गोल्डी बहल आज के मशहूर प्रोड्यूसर और ऐक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे के पति हैं।

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