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भगवान शिव ने पार्वती जी की मगरमच्छ बनकर क्यों ली परीक्षा

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भगवान भोलेनाथ को इस समस्त सृष्टि का रचियता माना जाता है. उनका आदि है ना ही अंत है. पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव का विवाह पार्वती जी के साथ हुआ था. इस विवाह के लिए पार्वती जी को सैकड़ों वर्षों तक कठोर तपस्या भी करनी पड़ी थी.शिव जी ने ली इस तरह परीक्षा-

पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप किया था. उनकी तपस्या को देखकर देवताओं ने शिवजी से देवी पार्वती की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की थी.

इसके बाद भोलेनाथ ने सप्तर्षियों को पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए भेजा. इस परीक्षा के दौरान सप्तर्षियों ने शिवजी के ढेरों अवगुणों को बताते हुए माता पार्वती से शिव जी से विवाह न करने का कहा लेकिन पार्वती जी अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुईं.इस पर खुद भोलेनाथ ने माता पार्वती की परीक्षा लेने का निर्णय लिया.

माता पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शंकर जी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए. कुछ क्षणों बाद ही एक मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया और लड़का मदद के लिए पुकारने लगा. बच्चे की आवाज सुनकर पार्वती जी नदी किनारे पहुंची और उनका मन द्रवित हो गया.

इस बीच लड़के ने माता पार्वती को देखकर कहा कि मेरी न मां है न बाप, न कोई मित्र ही है..माता आप ही मेरी रक्षा करें. इस पर पार्वती जी ने मगरमच्छ से कहा कि ग्राह इस लड़के को छोड़ दें. इस पर मगरमच्छ ने कहा कि दिन के छठे पहर जो मुझे मिलता है उसे आहार बनाना मेरा नियम है.

पार्वती जी के विनती करने पर मगरमच्छ ने लड़के को छोड़ने के बदले में पार्वती जी के तप से प्राप्त वरदान का पुण्य फल मांग लिया. इस पर पार्वती जी तैयार हो गईं. मगरमच्छ ने बालक को छोड़ दिया और तेजस्वी बन गया .

अपने तप का फल दान करने के बाद पार्वती जी ने बालक को बचा लिया और एक बार फिर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप करने बैठ गईं. इस पर भोलेनाथ दोबारा प्रकट हुए और पूछा कि तुम अब क्यों तप कर रही हो, मैंने तम्हें पहले ही मनमांगा दान दे दिया है.

इस पर पार्वती जी ने अपने तप का फल दान करने की बात कही. इस पर शिवजी प्रसन्न होकर बोले मगरमच्छ और लड़के दोनों के स्वरूप में मैं ही था. मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख दुख का अनुभव करता है या नहीं.

तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने ये लीला रचाई थी. अनेको रूप में दिखने वाला मैं ही एक सत्य हूं. अनेक शरीरों में नजर आने वाला मैं निर्विकार हूं. इस तरह पार्वती जी शिव जी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और उनकी अर्धांगिनी बनी।

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