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बॉलीवुड में छाई रही राज कपूर-शैलेंद्र की जोड़ी

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राज कपूर के गाने ‘जीना यहां मरना यहां’ को अधूरा छोड़ गया था ये गीतकार. गीतकार शैलेंद्र की अचानक हुई मौत की वजह से राज कपूर की फिल्म का गाना रहा था अधूरा. बाद में शैलेंद्र के बेटे ने इसे पूरा किया.

जाने-माने गीतकार शैलेंद्र यानि शंकरदास केसरीलाल का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ था. शैलेंद्र को फिल्मी दुनिया का हिस्सा बनाने में राज कपूर का सबसे बड़ा योगदान था. राज कपूर ने उनकी नायाब प्रतिभा को पहचाना और अपनी टीम के साथ जोड़ा था.

शैलेंद्र रेलवे में काम करते थे और कवि सम्मेलनों में जाया करते थे. कविता लिखने से उन्होंने अपने करियर की शुरूआत की थी. एक मुशायरे में राज कपूर ने शैलेंद्र की कविता ‘जलता है पंजाब’ सुनी और बेहद प्रभावित हुए. तभी उन्होंने शैलेंद्र को फिल्मों के लिए लिखने का ऑफर दिया.

शैलेंद्र ने ठुकराया था राज कपूर का ऑफर-

पहले शैलेंद्र ने इस ऑफर को ठुकरा दिया था. लेकिन बाद में जब उन पर आर्थिक संकट मंडराने लगा तो वह राज के पास गए और काम मांगा. जिसके बाद राज कपूर ने उन्हें बरसात के लिए गाने लिखने का मौका दिया. 1949 में आई फिल्म बरसात के दो गाने शैलेंद्र ने लिखे थे. ‘बरसात में’ और ‘पतली कमर है’ के लिए शैलेंद्र ने 500 रुपए लिए थे.

बॉलीवुड में छाई राज कपूर-शैलेंद्र की जोड़ी-

इसके बाद इन दो महान हस्तियों की जुगलबंदी ने ऐसा सुर छेड़ा जो बेहद हिट रही. राज और शैलेंद्र ने करीब 21 फिल्मों में एक साथ काम किया. 1949 में बरसात से शुरू हुई यह कहानी आवारा (1951), अनहोनी, आह, बूट पॉलिस, श्री 420, जागते रहो, चोरी-चोरी, अब दिल्ली दूर नहीं, मैं नशे में हूं, कन्हैया, अनाडी, जिस देश में गंगा बहती है, आशिक, एक दिल सौ अफसाने, संगम, तीसरी कसम, दीवाना, अराउंड द वर्ल्ड, सपनों का सौदागर और मेरा नाम जोकर (1970) तक चली.

आर्थिक नुकसान नहीं झेल पाए शैलेंद्र-

शैलेंद्र ने फिल्म ”तीसरी कसम” को प्रोड्यूस किया था. इस प्रोजेक्ट में उन्होंने बहुत पैसा बहाया था. मूवी को नेशनल अवॉर्ड मिला. लेकिन कमाई के मामले में ये फ्लॉप साबित हुई. फिल्म प्रॉडक्शन से जुड़ा आर्थिक नुकसान उनकी सेहत पर हावी होने लगा. वे शराब के आदि हो गए थे. 14 दिसंबर 1966 को उनका निधन हो गया था.

शैलेंद्र की मौत की वजह से अधूरा रहा था ये गाना-

शैलेंद्र की अचानक हुई मौत के कारण राज कपूर की फिल्म ”मेरा नाम जोकर” का गाना ‘जीना यहां मरना यहां’ अधूरा रह गया था. जिसे बाद में उनके बेटे शैली शैलेंद्र ने पूरा किया था. शैलेंद्र के बेटे भी गीतकार बने.

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