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कुश्ती में धोबी पाट और घिस्सा दॉव खेलने वाले भगवान्ना पहलवान

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भगवान्ना पहलवान का जन्म 1885 मे नारायणा गॉव मे हुआ था। यह गॉव कभी दिल्ली के पास हुआ करता था। अग्रेजी राज हुआ करता था 18 साल की उम्र मे भगवान्ना पहलवान पुलिस मे भर्ती हो गये । भगवानना की 7 फिट की उचाई उस समय भी लोगो के आकर्षण का केन्द्र हुआ करती थी ।

धोबी पाट और घिस्सा दॉव भगवान्ना के मुख्य दॉव थे। एक समय का जिकर है। भगवाना पहलवान की युनिट कोलम्बो श्रीलंका चली गई जहा पर लोगो ने भगवान्ना को पहचान लिया क्यो कि वहॉ के लोगो ने इससे पहलें भगवान्ना का केवल नाम सुन रखा था आज साक्षात देख लिया ।

उनही दिनो महान पहलवान राममूर्ती भी श्री लंका आया हुआ था। राममूर्ती ने भगवान्ना को कुस्ती के लिये ललकार दिया । भगवान्ना ने राममुर्ती की चुनौती स्वीकार करली राममूर्ती भी राजा का माल था। जब यह बात अंग्रेजो को पता चली तो अंग्रेजो ने भगवान्ना को कुस्ती ना लडने का फरमान सुना दिया तथा एक कमरे मे बन्द कर दिया ।

अब भगवाना के मन मे एक विचार आया की यदि मै रामूर्ती से कुस्ती लडने ना गया तो लोग सोचेगे की भगवान्ना पहलवान डर गया है। जिस कमरे मे भगवान्ना पहलवान बन्द था भगवान्ना ने उस कमरे की एक खिडकी को उखाड लिया और चुप चाप कुस्ती लडने के लिये चला गया 40 वे मिन्ट मे भगवान्ना ने राममूर्ती को चित कर दिया ।

उस समय राममूर्ती और भगवान्ना की कुस्ती पर 5000( पॉच हजार) रूपये का इनाम रखा गया था जो भगवान्ना को दिये गये साथ साथ कुस्ती प्रेमियों ने मिलकर 1700 रू इक्टठा कर भगवान्ना को दिये । अग्रेजो की बात ना मानने का परिणाम यह हुआ आज भगवान्ना को सस्पेन्ड कर दिया गया ।

नौकरी छूटने के बाद भगवान्ना अपने गॉव आ गया और शिव मन्दिर मे जोर आजमाईश किया करता एक दिन भगवाना अपनी किसी रिस्तेदारी मे जा रहा था l …………….पैदल के रास्ते हुआ करते भगवान्ना को रास्ते मे प्यास लग गई रास्ते मे कुवे पर चडस रखा हुआ था जिसे दो बैल खीचा करते लेकिन वहॉ बैल नही थे तो भगवान्ना ने चडस को कुवे मे छोड पानी से भर जाने के बाद दोनो हाथो से खीचना आरम्भ कर दिया।

उसी समय एक राजा का एक वजीर वहा से गुजर रहा था उसने जब सात फिट उचे भीमकाय भगवान्ना को चडस खीचते हुये देखा तो वो वजीर भगवान्ना के पास आया । भगवान्ना ने चडस खीचकर पानी पिया व स्नान किया। बाद मे वह वजीर भगवान्ना को अपनी जान पहचान के एक मुसलमान रियासतदार जो कुस्ती प्रेमी था के पास लाहोर मे छोड आया । भगवान्ना का ज्यादा दिन लाहोर मे मन नही लगा और एक साल बाद महाराष्ट्र मे कोल्हापुर आ गया ।

क्योकि कोल्हा पुर कl महाराज भी कुस्ती प्रेमी था और नौकरी करने के दौरान ससपेन्ड होने से पहले कोलहापुर के महाराज से भगवान्ना की जान पहचान हो गई थी । कोल्हापुर के महाराज ने भगवान्ना को बहुत इज्जत दी और अपना दरवारी पहलवान घोषित कर दिया । भगवान्ना उम्र मे गामा पहलवान से 15 – 16 साल बडे थे ।

कहा जाता है। की एक बार गामा और भगवान्ना की कुस्ती हुई जिसमे भगवान्ना की ऑख के उपर चोट लग गई तथा लहू की धारा बह निकली जिसके बाद भगवान्ना ने गामा को उठाकर अखाडे के बहार पटक दिया यही पर इस कुस्ती मे विवाद हो गया और गामा के भाई ने गामा को लडने से मना कर दिया गामा ने यह कुस्ती बीच मे छोडदी जिसके बाद भगवान्ना को विजयी घोषित किया गया । महाराज ने खुश होकर भगवान्ना को सरकारी सम्मान के साथ साथ सोने के दो कडे और सोने के सिक्को से भरा एक थेला भेट किया यह घटना राम सिंह रावत की किताब (रवा राजपूतो का इतिहास के प्रथम खण्ड मे भी दर्ज है।

कुछ दिन बीते थे की राजा के राज मे एक शेर आ गया महाराज ने अपने पहलवानो और कुछ सैनिको की सहायता से जिस खेत मे शेर छिपा था वो खेत घेर लिया अपने आप को घिरता देख शेर जैसे ही राजा की और लपका तो भगवानना ने शेर की कमर मे लाठी मार दी भगवान्ना की लाठी का वार इतना जोर दार था कि शेर का हाड बीच मे से टूट गया कुछ देर बाद शेर ने तडफकर दम तोड दिया । महाराज ने भगवान्ना को गले से लगा लिया जब यह बात महारानी को पता चली तो महारानी ने भगवान्ना के पैर छूने की इच्चछा जाहिर की थी हालाकि भगवान्ना ने एसा ना करने के लिये रानी से विनती की।

एक बार भगवान्ना अपने गॉव मे आये हुये थे भगवान्ना के खेत मे एक खेत एसा था जहा पर चारो और हरी फसल लहला रही थी पत्थर की कोहलडी को ले जाने मे बहुत सारी फसल नष्ट हो जाती तो मौके की नजाकत को देख भगवान्ना ने पत्थर की कोहलडी को जिसे खीचकर दो बैल चलते थे उसे कन्धे पर रख कर खेत मे पटक दिया था।

आज बेसक भगवान्ना पहलवान के स्वर्णिम नाम को समय की गरद ने दवा दिया हो हममे से कई लोग आज भगवान्ना पहलवान के बारे मे ना जानते हो लेकिन एक दौर एसा था कि जिसमे माये रात को अपने बच्चो को भगवान्ना पहलवान की बहादुरी के किस्से सुनाती थी । आओ मिलकर इस महान यो़द्धा को नमन करे ।

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