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सुपरहिट फिल्म ‘नदिया के पार’ के किरदार के बारे में कुछ दिलचस्प जानकारी

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फिल्म नदिया के पार के किरदारों की बात करे तो सबसे पहले गूंजा का नाम आता है, इस किरदार को अभिनेत्री साधना सिंह ने निभाया था। गूंजा का किरदार निभाकर साधना सिंह घर घर में लोकप्रिय हो गईं थी। सभी को यही लगता था कि साधना सिंह कोई गांव की ही है। दरअसल साधना सिंह पंजाबी राजपूत परिवार से है, वह अपना करियर संगीत के क्षेत्र में बनाना चाहती थी।

फिल्म में रोल कैसे मिला

साधना सिंह की बड़ी बहन राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म में काम कर रही थी, फिल्म का नाम था “पायल की झंकार”। साधना सिंह वहां शूटिंग देखने आई थी तभी बड़जात्या फैमिली की नजर उन पर गई। उनकी सुंदरता और बातचीत के आत्मविश्वास को देखकर वो बड़े प्रभावित हुए और इस तरह साधना सिंह को नदिया के पार फिल्म का रोल मिला।

इस फिल्म में साधना द्वारा निभाया गुँजा का किरदार ही आज भी साधना जी की पहचान है। इसी वज़ह से सोशल प्लेटफार्म पर भी उन्हें अपने ऑफिसियल पेज का नाम “साधना सिंह गुँजा” है। गुंजा और चंदन के अलावा फिल्म ‘नदिया के पार’ में एक और अहम किरदार था। वो किरदार था चंदन के बड़े भाई ओमकार का जिसे अभिनेता इंदर ठाकुर ने निभाया था।

‘नदिया के पार’ का ओंकार याद है आपको? वही जो इस फिल्म के हीरो सचिन पिलगांवकर यानी चंदन के भैया का किरदार निभा रहे थे. ओंकार का किरदार निभाने वाले इस अदाकार का असली नाम था इंदर ठाकुर. 1982 में आई राजश्री प्रोडक्शंस की इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर कई कीर्तिमान रचे हैं।

इंदर ठाकुर का करियर भी इस फिल्म की वजह से काफी ऊपर तक चढ़ा, लेकिन किस्मत का खेल ही कहें कि शानदार कलाकार सिनेमा के दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए ज्यादा दिनों तक हमारे साथ न रह सका. एक दर्दनाक हवाई हादसे में इंदर ठाकुर की मौत हो गई थी।

दोस्तों कम लोगों को ही पता होगा कि इंदर ठाकुर अपने ज़माने के मशहूर विलेन हीरालाल जी के बेटे थे और असल जिंदगी में वो सीधे साधे ग्रामीण लुक के ओमकार से बिल्कुल उलट थे।दरअसल इंदर ठाकुर एक फैशन डिज़ाइनर और मॉडल हुआ करते थे, साथ ही वे एयर इंडिया के अकाउंट्स डिपार्टमेंट में जॉब भी कर रहे थे।

23 जून 1985 की जिस वर्ष उन्होंने न्यूयॉर्क शहर में आयोजित वर्ल्ड मॉडलिंग एसोसिएशन सम्मेलन के दौरान 1985 के अंतर्राष्ट्रीय फैशन डिजाइनर का पुरस्कार जीता था। यात्रा के दौरान टोरंटो से लंदन के बीच उनका विमान आतंकवादी घटना का शिकार हो गया था। हवा के बीच कनिष्क विमान में हुए धमाके की वज़ह से विमान क्रैश हो गया था और उसमें सवार सभी 329 लोग मारे गए थे जिनमें इंदर, उनकी पत्नी प्रिया और उनका बच्चा भी शामिल था।

दोस्तों इंदर ठाकुर ने अपने करियर में सिर्फ दो फिल्मों में काम किया था। फिल्म नदिया के पार के बाद वे वर्ष 1985 में रिलीज़ हुई फिल्म तुलसी में नज़र आये थे और इस फिल्म में भी इंदर ठाकुर ने सचिन के भाई का रोल प्ले किया था और इस फिल्म में भी नायिका थीं साधना सिंह।

फिल्म में इन कलाकारों के अलावा चंदन के काका के रोल में राम मोहन, पड़ोस की काकी के रोल में लीला मिश्रा, वैद्य जी के रोल में विष्णू कुमार व्यास, चंदन की भाभी के रोल में मिताली और रज्जो के रोल में शीला डेविड जैसे ढेरों ऐक्टर्स ने अपनी शानदार ऐक्टिंग से फिल्म में जान डाल दी थी।

नदिया के पार फिल्म इतनी सफल हुई थी कि दर्शकों ने इसके किरदारों पर ही अपने बच्चों के नाम रखने शुरू कर दिये थे। बताया जाता है कि अभिनेत्री साधना सिंह के अभिनय से लोग इतने प्रभावित हो गये थे कि उस दौर के लोगों ने अपनी बेटियों के नाम गुंजा रखने शुरू कर दिए थे और ऐसा ही कुछ चंदन नाम के साथ भी हुआ था।

साधना सिंह के मुताबिक, गुंजा का किरदार लोगों को इतना पसंद आया था कि उस ज़माने में कई बार तो लोग उन्हें देखते ही उनके पैर छूने लगते थे। ग्रामीण पृष्ठभूमि पर आधारित इस फ़िल्म को अक्सर लोग एक भोजपुरी फ़िल्म समझ बैठते हैं जबकि यह फ़िल्म हिंदी-अवधी मिश्रित भाषा की ही है। फिल्म में लीला मिश्रा जी अपने चिर-परिचित बनारसी लहजे में भी बोलती नज़र आती हैं।

इस कहानी की पृष्ठभूमि पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रमीण इलाक़े से जुड़ी होने के कारण गोविन्द जी ने भी पटकथा और संवाद को लिखने में मिट्टी की उस ख़ुश्बू को कहीं से फीका नहीं पड़ने दिया। उन्होंने इस फिल्म का निर्देशन भी उत्तर प्रदेश के गाँव में जा के ही किया ताकि कहानी के साथ पूरा न्याय हो सके। नदिया के पार फिल्म की 90% शूटिंग जौनपुर के केराकत नगर पंचायत के विजयपुर और राजेपुर नामक गांवों में हुई।

दोस्तों जब फिल्म ‘नदिया के पार’ की शूटिंग जौनपुर के गांव में हुई थी, तब वहाँ ख़ास सुविधाएं तो दूर ज़रूरी सुविधाएं भी नहीं थीं। गांव में बिजली नहीं रहती थी और रात सभी को लालटेन के उजाले में ही बितानी पड़ती थी।

सारी महिला कलाकारों को खाट पर ही सोना होता था और यही नहीं शुरुआती दिनों में तो वहां टॉयलेट तक भी नहीं था ऐसे में सभी को ग्रामीणों की तरह ही जीवन जीना पड़ता था। मगर शायद फिल्म की सफलता में वे असुविधाएं भी मददगार बन गईं और सारे कलाकारों के अंदर ठेठ ग्रामीण अंदाज़ समा पाया, जिसे वे पर्दे पर बखूबी प्रस्तुत कर सके।

दोस्तों आपको यह जानकर ताज्जुब होगा कि दो गाँवों की इस कहानी को एक ही गाँव के दो अलग-अलग मोहल्लों मे शूट किया गया था और गाँव के ही रास्तों और नदी के दृश्यों को बड़ी ही ख़ूबसूरती से फिल्म में जोड़ दिया गया था जिससे ऐसा लगता था जैसे एक गाँव नदी के इस पार है तो दूसरा नदी के उस पार।

दोस्तों कम लोगों को ही पता होगा कि ‘हम आपके हैं कौन’ टाइटल का जन्म भी फिल्म ‘नदिया के पार’ में बोले गये एक संवाद से ही हुआ है। फिल्म के एक दृश्य में चंदन द्वारा गुंजा से पुछा गया सवाल ‘हम तुम्हारे हैं कौन?’ हर किसी को इतना पसंद आया था कि जब राजश्री वालों ने इस कहानी पे दोबारा फिल्म बनायी तो इसी संवाद को फिल्म का टाइटल बना दिया और जन्म हुआ फिल्म “हम आपके हैं कौन” का।

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