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हिंदी सिनेमा के इतिहास में कई ऐसी फिल्में आई हैं, उन्हें जितनी बार भी देख लिया जाए वह हमेशा नई लगती हैं। इनमें से एक है फिल्म ‘शोले’। इस फिल्म को रिलीज हुए 48 वर्ष से भी अधिक का समय बीत चुका है, मगर इस फिल्म को देखने का क्रेज आज भी लोगों में उतना ही है, जितना पहले था। मजे की बात तो यह है कि इस फिल्म को आज की जनरेशन के लोग भी खूब पसंद करते हैं।
इस फिल्म ने कई आइकॉनिक किरदारों को जन्म दिया था। इन किरदारों में गब्बर, ठाकुर, जय-वीरू, बसंती आदि कुछ ऐसे नाम हैं, जो आज भी लोगों को काफी पसंद हैं। हालांकि, पूरी फिल्म ही बहुत रोचक है और फिल्म के निर्माण से जुड़े कुछ तथ्य भी बहुत मजेदार हैं।
चलिए आज हम आपको फिल्म ‘शोले’ से जुड़े कुछ बहुत ही मजेदार तथ्य बताते हैं।
अमजद खान से पहले इस ऐक्टर को चुना गया था गब्बर के रोल के लिए
शोले फिल्म में गब्बर की भूमिका निभा कर अमजद खान को एक नई पहचान मिली थी। मगर अमजद खान से पहले फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी की पहली पसंद डैनी डेन्जोंगपा थे। डैनी ने स्पॉटबॉय को दिए अपने पुराने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र खुद ही किया था। उन्होंने कहा था, ‘मेरे को इस बात का बिल्कुल भी अफसोस नहीं है कि मैंने ‘गब्बर’ की भूमिका को छोड़ दिया। क्योंकि अगर मैं गब्बर होता, तो हम सबको अमजद खान की इतना बेहतरीन अदाकारी कैसे देखने को मिलती।’ दरअसल, जब डैनी को फिल्म ‘शोले’ में गब्बर का रोल ऑफर हुआ था, तब वह कोई और ही फिल्म कर रहे थे और समय की समस्या होने के कारण उन्होंने फिल्म ‘शोले’ छोड़ दी थी।
फिल्म की शूटिंग के लिए बसाया गया था नया गांव
फिल्म के निर्देशक रमेश सिप्पी ने अपने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि यह फिल्म लगभग 3 करोड़ रुपए के बजट में तैयार की गई है। इस फिल्म को बेंगलुरु और मैसूर के बीच बसे एक गांव रामनगर में शूट किया गया था। फिल्म में इस स्थान को रामगढ़ बताया गया है। फिल्म की शूटिंग के लिए इस गांव में पक्की सड़क बनवाई गई थी और गांव के एक स्थान को अलग से नए गांव की तरह बनाया गया था। फिल्म की शूटिंग 2 साल तक चली थी। शूटिंग के बाद इस गांव को प्रोडक्शन टीम ने खत्म करने के लिए सारा सामान नीलाम कर दिया था और बांट दिया था। मगर आज भी रामनगर गांव के उस हिस्से को ‘सिप्पी नगर’ कहा जाता है, जहां पर फिल्म की शूटिंग हुई थी।
फिल्म में लिए गए कई रीटेक
गब्बर सिंह का पॉपुलर डायलॉग ‘कितने आदमी थे’ बेशक केवल 3 शब्दों का था, मगर इस डायलॉग में परफेक्शन लाने के लिए लगभग 40 बार रीटेक हुए थे। इतना ही नहीं, जया बच्चन के लालटेन जलाने वाले सीन को फिल्माने के लिए 20 दिन का इंतजार किया गया था और इसके लिए जया को 26 रीटेक देने पड़े थे। इस बात की जानकारी खुद महानायक अमिताभ बच्चन ने एक पुराने इंटरव्यू में दी थी, जो खुद भी इस फिल्म में जय की भूमिका में थे।
बदला गया था ये सीन
वर्ष 1975 में जब देश में इमरजेंसी लगाई गई थी, तब हिंदी सिनेमा को भी सेंसरशिप लॉ का सामना करना पड़ा था। सेंसर ने फिल्म ‘शोले’ के भी एक सीन पर कैंची चलाई थी और यह सीन था फिल्म का क्लाइमेक्स। फिल्म में गब्बर को ठाकुर के नुकीले जूतों से मरता हुआ दिखाया गया था। मगर सेंसर बोर्ड के कहने पर इस सीन को बदला गया था और फिल्म के क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया था, जिसमें गब्बर को पुलिस के हवाले करते हुए दिखाया गया था।
हेमा मालिनी की वजह से धर्मेंद्र बने थे वीरू
फिल्म में वीरू की भूमिका धर्मेंद्र को कुछ खास पसंद नहीं आई थी। धर्मेंद्र ठाकुर का किरदार निभाना चाहते थे, मगर जब उन्हें पता चला कि अगर वह वीरू नहीं बने तो संजीव कुमार को यह रोल ऑफर किया जाएगा और यह भूमिका हेमा मालिनी के अपोजिट होगी, क्योंकी बसंती का किरदार वह पहले ही स्वीकार कर चुकी थीं। यह जानने के बाद धर्मेंद्र ने वीरू का रोल स्वीकार कर लिया था।