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प्राण साहब को पढ़ने का बहुत शौक था। उर्दू अदब और शायरी के तो वो बहुत बड़े शौकीन थे ही। लेकिन देश और दुनिया की विभिन्न घटनाओं, समस्याओं औऱ राजनीति की जानकारी रखना भी उन्हें पसंद था। विषय चाहे जो भी हो, अगर प्राण साहब को उस विषय पर कोई पुस्तक मिल जाए तो वो उसे ज़रूर खरीदते थे और मौका मिलेत ही पढ़ते भी थे।
प्राण साहब की लाइब्रेरी में किताबों का भंडार था। और कमाल की बात ये है कि उन्होंने अपनी खरीदी हर किताब को पढ़ा। कहते हैं कि प्राण साहब के पास इतनी किताबें थी कि अगर वो और थोड़ी सी किताबें खरीद लेते तो उन किताबों को सहेजने के लिए उन्हें एक छोटा सा फ्लैट अलग से खरीदना पड़ जाता।
प्राण साहब के पुत्र अरविंद सिकंद उनकी बायोग्राफी पुस्तक और प्राण’ के लिए बात करते हुए बताते हैं कि प्राण साहब को हर तरह की किताबें पढ़ना पसंद था। फिक्शनल नोवेल्स से लेकर शास्त्रीय ग्रंथ तक उनकी लाइब्रेरी में हुआ करते थे। अरेबियन नाइट्स और द इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका जैसी किताबों के कई भाग प्राण साहब ने अपनी लाइब्रेरी में रखे थे।
अरविंद सिकंद कहते हैं कि बचपन में वो अपने पिता की लाइब्रेरी में बैठकर घंटों तक किताबें पढ़ते थे। उन्होंने सिकंदर की कहानियां, रोमन और ग्रीक पुराण प्राण साहब की लाइब्रेरी में ही पढ़े थे। बकौल अरविंद सिकंद, प्राण साहब की लाइब्रेरी ज्ञान का खजाना थी। क्योंकि उनकी लाइब्रेरी में कई ज्ञानवर्धक किताबें भी हुआ करती थी।
अक्सर प्राण साहब के दोस्त उनसे किताबें मांगकर ले जाते थे। और प्राण साहब कभी अपने किसी दोस्त को किताब देने से इन्कार नहीं करते थे। कईयों को तो वो खुद ही किताबें दे देते थे। और कह देते थे कि इसे पढ़कर अपने पास ही रख लेना।
यानि प्राण साहब की खरीदी कई किताबें उनके दोस्तों की लाइब्रेरी में भी गई। प्राण साहब अपनी लाइब्रेरी की देखभाल खुद करते थे। किताबों को किस तरीके से रखना है। लाइब्रेरी की साफ-सफाई, कौन सी किताब किस जगह रखी जाएगी, इन सब बातों का ध्यान प्राण साहब खुद ही रखते थे।