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वानर सेना सहित भगवान श्रीराम क्यों पहुंचे सागर तट ?

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य़ह जान लेने के बाद कि माता सीता लंका के अशोक वाटिका में हैं। अब यह जानकारी श्रीराम को दे देनी थी जिससे श्रीराम सेना सहित समुद्र तट पर पहुंच जाते, पर ऐसा नहीं हुआ। प्रभु श्रीराम ने तो अपनी करमुद्रिका हनुमान जी को देकर यह कहा कि तुम सीता से मिलकर वापस आकर मुझे उसका संदेश बताना। अतः हनुमान जी का लंका में पहुंचना आवश्यक था। हनुमान जी के वापस आने के पश्चात् ही श्रीराम कोई कदम उठाते।

संपाती कहते हैं –
जो नाघइ सत जोजन सागर। करइ सो राम काज मति आगर।।
पापिउ जा कर नाम सुमिरहीं। अति अपार भवसागर तरहीं।।
तासु दूत तुम्ह तजि कदराई। राम हृदयं धरि करहु उपाई।।

जो सौ योजन समुद्र लांघ सकेगा और बुद्धिनिधान होगा , वही श्रीराम जी का कार्य कर सकेगा।

पापी भी जिनका नाम स्मरण करके अत्यंत अपार भवसागर से तर जाते हैं। तुम तो उनके दूत हो , अतः कायरता छोड़कर श्रीरामजी को हृदय में धारण करके उपाय करो।

ऐसा कहकर संपाती के चले जाने के बाद ऋक्षराज जामवंत हनुमान जी को कहते हैं –

कवन सो काज कठिन जग माहीं। जो नहिं होइ तात तुम्ह पाहीं।।
राम काज लगि तव अवतारा। सुनतहिं भयउ पर्वताकारा ।।

जगत में कौन-सा ऐसा कठिन काम है ? जो हे तात ! तुमसे न हो सके! श्री रामजी के कार्य के लिए ही तो तुम्हारा अवतार हुआ है। यह सुनते ही हनुमान जी पर्वत के आकार के (अत्यंत विशालकाय) हो गए।

सिंहनाद करि बारहिं बारा । लीलहिं नाघउं जलनिधि खारा ।।
सहित सहाय रावनहि मारी । आनउं इहां त्रिकूट उपारी।।
जामवंत मैं पूछउं तोही। उचित सिखावनु दीजहु मोही।।

हनुमान जी बार-बार सिंहनाद करके कहा – मैं खारे समुद्र को खेल में ही लांघ सकता हूं और सहायकों सहित रावण को मारकर त्रिकूट पर्वत को उखाड़ कर यहां ला सकता हूं। हे जाम्बवान ! मैं तुमसे पूछता हूं , तुम मुझे उचित सीख देना (कि मुझे क्या करना चाहिए?)

तब जाम्बवंत ने कहा –
एतना करहु तात तुम्ह जाई। सीतहि देखि कहहु सुधि आई।।
तब निज भुज बल राजिवनैना। कौतुक लागि संग कपि सेना।।

(जाम्बवान ने कहा – ) हे तात ! तुम जाकर इतना ही करो कि सीता जी को देखकर लौट आओ और उनकी खबर कह दो। फिर कमलनयन श्री रामजी अपने बाहुबल से ही राक्षसों का संहार कर सीता जी को ले आएंगे। (पर प्रगट रूप में वे वानरों की सेना साथ लेकर यह कार्य करेंगे तथा अपनी वानरी सेना को इसका श्रेय देंगे।) अतः वे खेल के लिए ही वानरों की सेना साथ लेंगे।

यह सुनकर हनुमानजी सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हर्षित होकर आकाश में उड़ चले।

जय जय श्री राम
जय जय श्री महावीर हनुमान

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