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शिवलिंग का अर्थ, स्वरूप, प्रकार और इससे जुड़े कुछ रोचक तथ्य

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हर शिवालयों या भगवान शिव के मंदिर में आप ने देखा होगा की उनकी आरधना एक गोलाकर पत्थर के रूप में लोगों द्वारा की जाती है जो पूजास्थल के गर्भ गृह में पाया जाता है। महादेव शिव को सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही नहीं पूजा जाता बल्कि विश्व में अनेको देश ऐसे है जहाँ भगवान शिव की प्रतिमा या उनके प्रतीक शिवलिंग की पूजा का प्रचलन है। पहले दुनियाभर में भगवान शिव हर जगह पूजनीय थे, इस बात के हजारों सबूत आज भी वर्तमान में हमे देखने को मिल जाते हैं।

रोम में शिवलिंग

प्राचीन काल में यूरोपीय देशों में भी शिव और उनके प्रतीक शिवलिंग की पूजा का प्रचलन था। इटली का शहर रोम दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक है। रोम में प्राचीन समय में वहां के निवासियों द्वारा शिवलिंग की पूजा ”प्रयापस” के रूप में की जाती थी। रोम के वेटिकन शहर में खुदाई के दौरान भी एक शिवलिंग प्राप्त किया गया जिसे ग्रिगोरीअन एट्रुस्कैन म्यूजियम में रखा गया है। इटली के रोम शहर में स्थित वेटिकन शहर का आकार भगवान शिव के आदि-अनादि स्वरूप शिवलिंग की तरह ही है, जो की एक आश्चर्य प्रतीत होता है। हाल ही में इस्लामिक राज्य द्वारा नेस्तनाबूद कर दिए गए प्राचीन शहर पलमायरा नीमरूद आदि नगरों में भी शिव की पूजा से सबंधित अनेकों वस्तुओं के अवशेष मिले है।

प्राचीन सभ्यता में शिवलिंग

पुरातत्विक निष्कर्षों के अनुसार प्राचीन शहरों मेसोपोटेमिया और बेबीलोन में भी शिवलिंग के पूजे जाने के प्रमाण पाये गए है। इसके अलावा मोहेनजोदाड़ो और हड़प्पा सभ्यता में भी भगवान शिव की पूजा से संबंधित वस्तुओं के अवशेष मिले हैं। जब भिन्न-भिन्न सभ्यताओं का जन्म हो रहा था उस समय सभी लोग प्रकृति और पशुओं पर ही निर्भर थे। इसलिए वह प्राचीन समय में भगवान शिव की पशुओं के संरक्षक पशुपति देवता के रूप में पूजा करते थे।

आयरलैंड में प्राचीन शिवलिंग

आयरलैंड के तार हिल स्थान पर भगवान शिव के शिवलिंग के भांति एक लम्बा अंडाकार रहस्मय पत्थर रखा गया है जिसे यहाँ के लोगों द्वारा भाग्य प्रदान करने वाले पत्थर के रूप में पुकारा जाता है। फ्रांसीसी भिक्षुओं द्वारा 1632 से 1636 CE के बीच लिखित एक प्राचीन दस्तावेज के अनुसार इस पत्थर को इस स्थान पर चार अलौकिक लोगों द्वारा स्थापित किया गया था।

अफ्रिका में शिवलिंग

साउथ अफ्रीका की सुद्वारा नामक एक गुफा में पुरातत्वविदों को महादेव शिव का लगभग 6000 वर्ष पुराना शिवलिंग प्राप्त हुआ है, जिसे कठोर ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित किया गया था। इस शिवलिंग को खोजने वाले पुरातत्व विभाग के लोग इस बात को लेकर हैरान हैं की आखिर ये शिवलिंग अब तक कैसे सुरक्षित रह सकता है ?

शिवलिंग का स्वरूप

शिवलिंग के मुखयतः तीन भाग होते है, पहला भाग जो नीचे चारो तरफ से भूमिगत रहता है। मध्य भाग में आठ तरफ से एक समान बैठक बनी होती है। अंत में इसका शीर्ष भाग, जोकि अंडाकार होता है तथा जिसकी पूजा की जाती है। इस शिवलिंग की उँचाई सम्पूर्ण मंडल या परिधि की एक तिहाई होती है। ये तीन भाग ब्र्ह्मा नीचे, विष्णु बीच में तथा शिव शीर्ष में होने का प्रतीक है। शिव के माथे पर तीन रेखाएं (त्रिपुंड) व एक बिंदु होता है जो शिवलिंग पर भी समान रूप से निरुपित होती है। प्राचीन ऋषियों और मुनियों द्वारा ब्रह्माण्ड के वैज्ञानिक रहस्य को समझकर इसके सत्य को प्रस्तुत करने के लिए विभिन्न रूपों में इसका सपष्टीकरण दिया जिनमे शिवलिंग भी एक है।

शिवलिंग का अर्थ

शिवलिंग भगवान शिव की रचनात्मक और विनाशकारी दोनों ही शक्तियों को प्रदर्शित करता है। शिवलिंग का अर्थ होता है ”सृजन ज्योति” यानी भगवान शिव का आदि-अनादि स्वरूप। सूर्य, आकाश, ब्रह्माण्ड, तथा निराकार महापुरुष का प्रतीक होने के कारण ही यह वेदानुसार ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग’ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश’। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। शिवलिंग का आकार-प्रकार ब्राह्मण्ड में घूम रही आकाश गंगा के समान ही है। यह शिवलिंग हमारे ब्रह्माण्ड में घूम रहे पिंडो का एक प्रतीक ही है।

शिवलिंग के प्रकार

प्रमुख रूप से शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं। पहला आकाशीय या उल्का शिवलिंग दूसरा पारद शिवलिंग। पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार लिए होता है। इस तरह का शिवलिंग मक्का के काबा में स्थित है जो आकाश से गिरा था जिसे हिन्दूधर्म में शिवलिंग कहा जाता है। दुसरा पारद शिवलिंग मानव द्वारा निर्मित पारे से बना होता है, जिसे पारद शिवलिंग कहा जाता है। पारद विज्ञान प्राचीन वैदिक विज्ञान है।

साभार : अमृत बिंदु

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