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दुर्गा सप्तशती के विभिन्न मंत्रो का प्रयोग
दुर्गा सप्तशती अपने आपमें एक अदभुत तंत्र ग्रंथ है। महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संबंध ऋगवेद, यजुर्वेद और सामवेद से है, ये तीनो वेद तीनो महाशक्तियों का स्वरूप है। इसी प्रकार शाक्त तंत्र, शैव तंत्र और वैष्णव तंत्र उपरोक्त तीनो स्वरूप की अभिव्यक्ति हैं। अतः सप्तशती तीनो वेदो का प्रतिनिधित्व करता है। दुर्गा सप्तशती में (700) प्रयोग है जो इस प्रकार है – मारण के 90, मोहन के 90, उच्चाटन के 200, स्तंभन के 200, विद्वेषण के 60, और वशीकरण के 60, । इसी कारण इसे सप्तशती कहा जाता है।
🔸 अष्टादशोपचार पूजन –
आसनं स्वागतं पाद्यमर्घ्यमाचमनीयकम् ।
स्नानं वस्त्रोपवीतञ्च भूषणानि च सर्वशः॥
गन्धं पुष्पं तथा धूपं दीपमन्नञ्च दर्पणम् ।
माल्यानुलेपनञ्चैव नमस्कारविसर्जने ।
अष्टादशोपचारैस्तु मन्त्री पूजां समाचरेत्॥
आसन, स्वागत, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, उपवीत (यज्ञोपवीत), सभी प्रकार के आभूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, दर्पण, माला तथा सुगन्धित लेपन, नमस्कार तथा विसर्जन।
🔸 षोडशोपचार पूजन –
पाद्यमर्घ्यं तथाचामं स्नानं वसनभूषणे।
गन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्याचमनं ततः॥
ताम्बूलमर्चनास्तोत्रं दर्पणञ्च नमस्क्रिया।
प्रयोजयेत् प्रपूजायामुपचारास्तु षोडश॥
पपाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, भूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन (नैवेद्य के उपरान्त का आचमन), ताम्बूल, अर्चना, स्तोत्र, पाठ, दर्पण-प्रदर्शन, नमस्कार।
🔸 शिव षोडशोपचार पूजन –
आसनं पाद्यमर्घ्यच ततोऽन्वाचमनीयकम्।
मधुपर्कः स्नानजलं वस्त्रं भूषणचन्दने॥
पुष्पं धूपञ्च दीपञ्च नेत्राञ्जनमतः परम्।
नैवेद्याचमनीये तु प्रदक्षिणनमस्कृतिः।
एते षोड़श निर्दिष्टा उपचाराः शिवार्चने॥
आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, मधुपर्क, स्नानजल, वस्त्र तथा उत्तरीय, भूषण, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप, नेत्रों का अञ्जन, नैवेद्य, आचमन (नैवेद्य के पश्चात् आचमन), प्रदक्षिणा, नमस्कार।
🔸वैष्णोपचार पूजन –
आसनं स्वागतं पाद्यमर्ध्यमाचमनीयकम्।
इत्याञ्जनेन रहितमुपचारन्तु षोड़शम्॥
अञ्जनरहित आसन, स्वागत, पाद्य, अर्घ्य, आचमन-प्रभृति ।
🔸 दशोपचार पूजन –
पाद्यमर्घ्यं तथाचामं मधुपर्काचमनं तथा।
गन्धाद्याः नैवेद्यान्ता उपचारा दश क्रमात्॥
पाद्य, अर्घ्य, आचमन, मधुपर्क, आचमन, गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य।
🔸 पञ्चोपचार पूजन –
गन्धं पुष्पं तथा धूपं दीपं नैवेद्यमेव च।
पञ्चोपचारमुद्दिष्टं मुनिभिस्तन्त्रवेदिभिः।
अभावे गन्धपुष्पाद्या तदभावे तु भक्तितः॥
तन्त्रज्ञाता मुनिगण गन्ध, पुष्प, धूप, दीप तथा नैवेद्य, पञ्चोपचार के अभाव में गन्ध, पुष्प द्वारा अथवा इन दोनों के भी अभाव में मात्र भक्ति द्वारा भी पूजा विहित है।