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मां सरस्वती को विद्या की देवी क्यों कहा जाता है ?

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बसंत पंचमी हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। बसंत पंचमी पूरे भारत में हिंदुओं और सिखों द्वारा मनाया जाने वाला एक रंगीन और खुशी का त्यौहार है। अगर इसके नाम के बारे में जानें, तो ‘बसंत’ शब्द का अर्थ होता है ‘बसंत’ और ‘पंचमी’ का मतलब पांचवें दिन से है। विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग रीति रिवाज के अनुसार बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह दिन मां सरस्वती को समर्पित रहता है। ज्ञान की देवी मां सरस्वती को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण करते हैं, पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं।

बसंत पंचमी का महत्व –
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करके विद्यार्थी वर्ग उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इस दिन को लेकर ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इस दिन को बुद्धि और ज्ञान का पर्व भी कहा जाता है। वसंत पंचमी को वसंत ऋतु के आगमन का भी प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन मां सरस्वती की पूजा के दौरान सरस्वती चालीसा का पाठ करते हैं उनका भविष्य बहुत उज्ज्वल होता है।

बसंत पंचमी 2024 पूजा विधि –
बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। फिर एक चौकी पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और फूल चढ़ाएं। मां सरस्वती को पीले रंग के फुल अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस दिन मां सरस्वती को कमल के फूल जरूर अर्पित करें। इस दिन पीले वस्त्र धारण करना बहुत शुभ माना जाता है। पूजा के दौरान मां सरस्वती को अक्षत, रोली, हल्दी, चंदन, चावल, फूल, धूप, दीप, नैवेघ आदि अर्पित करें। मां सरस्वती के मंत्र का जाप करें और उनकी आरती करें।

बसंत पंचमी के नियम –
बसंत पंचमी के दिन कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। इस दिन मां सरस्वती को प्रसन्न करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करें –
1. इस दिन मां सरस्वती की पूजा सफेद या पीले रंग के कपड़े पहनकर करें।
2. मां सरस्वती को पीले रंग के फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
3. मां सरस्वती की आरती करें और उनके मंत्रों का जाप करें।
4. इस दिन झूठ बोलने, किसी को नुकसान पहुंचाने और मांस-मदिरा का सेवन करने से बचें।

बसंत पंचमी कहानी –
एक बार, भगवान विष्णु ने देखा कि मनुष्य कर्मों के भवसागर में फंसकर भटक रहे हैं। उन्हें ज्ञान का प्रकाश नहीं मिल रहा है। इसलिए, उन्होंने अपनी पत्नी मां लक्ष्मी से कहा कि वे एक ऐसी देवी की रचना करें जो मनुष्यों को ज्ञान का वरदान दे सकें। लक्ष्मी जी ने स्तुति की और भगवान विष्णु ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उन्होंने अपनी कमंडल से जल छिड़का और एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई। उस स्त्री का नाम सरस्वती रखा गया और उसे ज्ञान और कला की देवी के रूप में पूजने का वरदान दिया गया। मां सरस्वती ने मनुष्यों को ज्ञान का प्रकाश दिया और उन्हें कर्मों के भवसागर से पार होने में मदद की। बसंत पंचमी के दिन सरस्वती का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को सरस्वती जयंती के रूप में भी मनाया जाता है।

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