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“साहब, वो तो एक फरिश्ता थे। एक दफा मैं बीमार पड़ गया था। वो मेरे घर आए। साथ में फल और दवाईयां मेरे लिए लाए थे। मेरे हाल-चाल पूछने के बाद उन्होंने मेरे पैर दबाने शुरू कर दिए। मैं हैरान था। वो मेरे साहब थे। उनका मेरे पैर दबाना मेरे लिए बहुत भारी था।” ये बात के.एल.सहगल साहब के ड्राइवर यूसुफ ने एक कॉलमिस्ट को बताई थी। और ये बातें करते वक्त यूसुफ की आंखें आंसुओं से भर गई थी।
आज के.एल.सहगल साहब का जन्मदिवस है। 11 अप्रैल 1904 को जम्मू में सहगल साहब का जन्म हुआ था। वो जितने शानदार गायक थे। उतने ही बेहतरीन और प्यारे इंसान भी थे। आज सहगल साहब की इंसानियत के दो किस्से आपको सुनाऊंगा। और मुझे पूरा यकीन है कि आप भी सहगल साहब को सैल्यूट करेंगे ये किस्से जानकर।
पहला किस्सा साल 1945 के किसी महीने का है। मुंबई(तब बॉम्बे) के किसी अमीर आदमी ने विले पार्ले के अपने बंगले के उदघाटन में फिल्म जगत की हस्तियों को भी इनवाइट किया था। सहगल साहब डायरेक्टर किदार शर्मा के साथ वहां गए थे। मेहमानों की अच्छी-खासी भीड़ उस दिन वहां जमा हुई थी। अचानक सहगल साहब को कुछ अजीब महसूस होने लगा। उन्हें लगा कि शायद उनकी तबियत सही नहीं है। वो किदार शर्मा के साथ पास ही मौजूद समंदर के किनारे जाकर बैठ गए।
शाम का वक्त था और सूरज डूब चुका था। हल्का-हल्का अंधेरा छा चुका था। तभी सहगल साहब का ध्यान कुछ दूरी पर बैठे एक फकीर पर गया। वो फकीर हारमोनियम पर गज़ल गा रहा था। सहगल साहब और किदार शर्मा जी उस फकीर के पास जाकर बैठ गए और उसकी गज़लें सुनने लगे। सहगल साहब उस फकीर की गज़लें सुनकर बहुत खुश हुए।
जब उस फकीर का गाना खत्म हुआ तब सहगल साहब ने उसके पैर छुए और अपनी जेब से पांच हज़ार, जी हां पांच हज़ार रुपए निकाले और फकीर को दे दिए। इतनी बड़ी रकम देखकर किदार शर्मा भी दंग रह गए। ये लोग जब फकीर से थोड़ा दूर आ गए तो किदार शर्मा ने सहगल साहब से कहा,”तुम्हें पता भी है तुमने उस फकीर को कितने रुपए दे दिए हैं?” सहगल साहब ने पंजाबी में जवाब दिया,”ऊपर वाले ने कि मैन्नू गिन के दित्ते सी।”
दूसरा किस्सा- साल 1946 तक सहगल साहब की तबियत काफी खराब हो चुकी थी। वो डायबिटीज़ के गंभीर रोगी हो चुके थे। और उन्हें अहसास हो गया था कि अब वो बहुत ज़्यादा नहीं जी सकेंगे। उन्होंने मुंबई छोड़ने का फैसला कर लिया। जिस दिन वो मुंबई छोड़कर जा रहे थे उस दिन उनके जिग्री दोस्त के.एन.सिंह व कुछ और उन्हें विदा करने रेलवे स्टेशन तक उनके साथ आए थे। फिर फ्रंटियर मेल में सवार होकर सहगल साहब मुंबई छोड़कर पंजाब की तरफ बढ़ चले।
26 नवंबर 1946 को सुबह लगभग चार बजे वो जालंधर पहुंचे। सर्दियों का मौसम था और जालंधर में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। सहगल साहब ने एक बढ़िया सा गरम कोट पहना हुआ था जो उन्होंने कुछ ही दिन पहले खरीदा था। रेलवे स्टेशन से बाहर निकलते वक्त उन्होंने देखा कि एक भिखारी ठंड के मारे बुरी तरह कंपकंपा रहा है।
सहगल साहब ने अपना वो कोट उतारा और उस भिखारी को पहना दिया। और 1800 रुपए भी दे दिए। सहगल साहब के रिश्तेदार ये देखकर हैरान रह गए। हालांकि उनके घरवाले जानते थे कि सहगल साहब ऐसा अक्सर करते रहते थे। जालंधर में ही 18 जनवरी 1947 को सहगल साहब का निधन हो गया था।