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बीआर चोपड़ा साहब का फिल्मी दुनिया सफ़र

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बलदेव राज चोपड़ा। जिन्हें दुनिया बीआर चोपड़ा के नाम से जानती है। भारतीय सिनेमा के बहुत बड़े फिल्मकार। चोपड़ा साहब के पिता चाहते थे कि ये पढ़-लिखकर कोई बड़े सरकारी अफसर बनें। वो खुद भी सरकारी अफसर थे। बीआर चोपड़ा पढ़ने-लिखने में बहुत अच्छे थे। और साथ ही साथ वो खेलकूद में भी खूब हिस्सा लेते थे। ये उन दिनों की बात है जब देश का विभाजन नहीं हुआ था। और बीआर चोपड़ा व इनका परिवार लाहौर में रहता था।

पिता की ख्वाहिश पूरी करने के इरादे से बीआर चोपड़ा ने आई.सी.एस यानि इंडियन सिविल सर्विस की तैयारी करनी शुरू कर दी। लेकिन एग्ज़ाम से कुछ ही दिन पहले ये बीमार हो गए। नतीजा, ये उस परीक्षा में फेल हो गए। इनका दिल बहुत दुखा। हालांकि इनके पिता ने इन्हें लंदन जाकर आईसीएस की तैयारी करने का सुझाव दिया था। लेकिन इन्होंने मना कर दिया। ये कहकर कि अगर भगवान को मुझे आईसीएस अफसर ही बनाना होता तो वो यहीं बना देते। बीआर चोपड़ा तय कर चुके थे कि इन्हें अब सरकारी नौकरी करनी ही नहीं है।

एक अच्छी बात बीआर चोपड़ा जी के साथ ये रही कि जब ये बीए कर रहे थे तो इन्हें लिखने का शौक हो गया था। और चूंकि उस ज़माने में इनके आस-पास के लोग सिनेमा के बड़े फैन थे तो इन्हें भी सिनेमा में दिलचस्पी होने लगी थी। ये भी चाहते थे कि किसी दिन इन्हें भी अखबारों के लिए लिखने का मौका मिले। फिर एक दिन इन्होंने कलकत्ता के एक अखबार के लिए अंग्रेजी में एक आर्टिकल लिखा। उस अखबार का नाम था वैरायटीज़। वो अखबार न्यू थिएटर्स नामक उस वक्त के कलकत्ता के एक बहुत बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के सहयोग से निकलता था।

बीआर चोपड़ा के उस आर्टिकल का टाइटल था राउंड दि इंडियन स्क्रीन। अपने उस आर्टिकल में बीआर चोपड़ा ने कुछ फिल्मों को क्रिटिसाइज़ करते हुए लिखा कि अब फिल्मों में स्टोरी कुछ भी नहीं है। बस गाने डाले जाते हैं। वो भी बहुत खास नहीं होते। इन्हें यकीन था कि इनका आर्टिकल ज़रूर छपेगा। लेकिन नहीं छपा। इन्होंने फिर से एक नया आर्टिकल लिखकर कलकत्ता भेजा। मगर वो भी अखबार वालों ने नहीं छापा। तब इन्होंने फैसला किया कि अब ये बस एक आर्टिकल और लिखकर कलकत्ता भेजेंगे। अगर वो भी नहीं छपा तो फिर नहीं लिखेंगे।

तीसरा आर्टिकल लिखकर इन्होंने कलकत्ता भेज दिया। और फिर कुछ दिन बाद ये अपने कॉलेज जा रहे थे कि इन्हें एक पार्सल मिला। वो पार्सल उस अखबार के एडिटर की तरफ से आया था। एडिटर ने उसमें लिखा था कि हमें आपके तीनों आर्टिकल्स मिले। और हमें बहुत अच्छे लगे। लेकिन दुर्गा पूजा की छुट्टियों की वजह से हम उन आर्टिकल्स को छाप नहीं सके हैं। लेकिन अब हमने एक ही अंक में तीनों आर्टिकल्स को छाप दिया है। एडिटर ने बीआर चोपड़ा को उस अखबार का लाहौर कॉन्ट्रीब्यूटर बनने का ऑफर भी दे दिया। जिसे इन्होंने स्वीकार भी कर लिया। और देश का विभाजन होने तक ये उस अखबार के लिए लिखते रहे।

आज बीआर चोपड़ा साहब का जन्मदिवस है। 22 अप्रैल 1914 को पंजाब में इनका जन्म हुआ था। विभाजन के बाद ये जालंधर स्थित अपने पुश्तैनी मकान में आ गए। और वहां से ये फिल्मी दुनिया की तरफ बढ़ गए। वो किस्सा भी बड़ा दिलचस्प है।

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