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प्रिया राजवंश अपनी पहली ही फिल्म में काम करते हुए डायरेक्टर चेतन आनंद से प्यार हो गया, लेकिन इनका अंत बेहद दर्दनाक हुआ। प्रॉपर्टी के लिए हुई थी इस खूबसूरत अभिनेत्री की हत्या, प्रेमी के बेटों ने नौकर-नौकरानी के साथ रची थी साजिश। सिर्फ सात फिल्मों में नजर आईं प्रिया 27 मार्च 2000 को अपने घर में मृत पाई गईं, उनकी मौत पर खूब विवाद हुआ, गिरफ्तारियां भी हुईं, लेकिन हत्या किसने की आज तक साबित नहीं हो पाया। प्रिया की जिंदगी किसी परी कथा से कम नहीं थी। एक तस्वीर की बदौलत वो फिल्मों में आई थी।
30 दिसंबर 1936 को सरकारी अधिकारी सुंदर सिंह के घर एक बेटी का जन्म हुआ जिसका नाम ‘वीरा सुंदर सिंह’ रखा गया। वीरा की स्कूलिंग और ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई शिमला में ही हुई। फिर किसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में सुंदर सिंह का ट्रांसफर लंदन हो गया और वीरा भी परिवार के साथ लंदन पहुंच गईं। वीरा को एक्टिंग में दिलचस्पी थी इसलिए उन्होंने लंदन में रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स में एडमिशन ले लिया। वीरा एक्टिंग सीखने लगीं और इसी दौरान उन्हें मॉडलिंग के भी ऑफर मिलने लगे।
तस्वीर ने बदली जिंदगी, फिल्मों में मिला काम
एक दिन लंदन के एक फोटोग्राफर की नजर वीरा की खूबसूरती पर पड़ी और उसने उनकी कुछ तस्वीरें चुपके से क्लिक कर लीं। एक प्रोग्राम के दौरान लंदन से ये फोटोग्राफर भारत आया जहां उसने सबसे पहले फिल्ममेकर ठाकुर रणवीर सिंह को ये तस्वीरें दिखाईं। रणवीर ने तस्वीरें देखी, तो वो प्रिया की खूबसुरती निहारते ही रह गए। फिल्म इंडस्ट्री में जिसने भी वीरा की तस्वीरें देखीं वो उनका दीवाना हो उठा। सब ये जानने को बेताब हो उठे कि आखिर ये लड़की कौन है?
वीरा की एक तस्वीर को देव आनंद के भाई चेतन आनंद ने भी देखा जो कि उस जमाने के जाने-माने डायरेक्टर थे। 1963 में जब चेतन ने भारत-चीन वॉर पर फिल्म ‘हकीकत’ बनाने की प्लानिंग की तो उन्होंने वीरा को फिल्म में कास्ट करने का मन बना लिया।
चेतन ने वीरा को हकीकत में काम करने का ऑफर दिया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। फिल्म की शूटिंग से पहले चेतन ने वीरा को नाम बदलने की सलाह दी और उनका नाम प्रिया रख दिया। ‘हकीकत’ रिलीज हुई और हिट रही। प्रिया राजवंश चमक गईं और फिल्ममेकर्स उन्हें फिल्म में कास्ट करने को बेताब हो उठे।
हकीकत की शूटिंग के दौरान ही उनका नाम प्रिया से जुड़ने लगा और बॉलीवुड के गॉसिप गलियारों में दोनों के अफेयर के चर्चे आम हो गए। ये बात ज्यादा तेजी से इसलिए भी फैली क्योंकि चेतन पहले से शादीशुदा थे। वो प्रिया से 15 साल बड़े थे।
चेतन अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं थे और पत्नी से अनबन के चलते उनसे अलग रह रहे थे। निजी जिंदगी की परेशानियों के बीच प्रिया के साथ वक्त गुजारकर उन्हें सुकून मिलने लगा। उधर प्रिया भी उन्हें पसंद करने लगीं। चेतन प्रिया को लेकर इतने पजेसिव थे कि वो उन्हें किसी और फिल्ममेकर के साथ काम नहीं करने देते थे। यही वजह है कि हकीकत के बाद उन्होंने जितनी भी फिल्में बनाईं, उनमें सिर्फ प्रिया को ही बतौर हीरोइन साइन किया।
हकीकत’ के बाद प्रिया की दूसरी फिल्म हीर रांझा थी जिसमें हीर के रोल में उन्हें बेहद पसंद किया गया। प्रिया ने अपने करियर में कुल सात फिल्में की थीं। 1964 में शुरू हुआ उनका फिल्मी सफर फिल्म हाथों की लकीरें पर खत्म हुआ और यही उनकी आखिरी फिल्म भी साबित हुई।
इसकी वजह ये थी कि चेतन आनंद ने हाथों की लकीरें के बाद फिल्में बनाना बंद कर दिया था। उन्होंने फिल्में छोड़ने के बाद दूरदर्शन के लिए केवल एक सीरियल बनाया जिसका नाम परमवीर चक्र था। चेतन आनंद ने फिल्में बनाना छोड़ा तो प्रिया का करियर भी खत्म हो गया क्योंकि वो किसी और फिल्ममेकर के साथ काम नहीं करती थीं।
प्रिया अपने जमाने की सबसे पढ़ी-लिखी एक्ट्रेस थीं, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने परिवार का दबाव होने के बाद भी शादीशुदा चेतन को न छोड़ा, न ही कभी शादी की। दोनों लिव-इन में चेतन आनंद के जुहू के रुइया पार्क बंगले पर साथ रहते थे।
चेतन के दो बेटों को ये बात बिल्कुल पसंद नहीं थी कि उनके पिता उनकी मां से अलग होकर प्रिया के साथ एक बंगले में अलग रहते हैं। दोनों ही बेटों विवेक और केतन को प्रिया फूटी आंख नहीं सुहाती थीं। मामला और गरमा गया जब चेतन आनंद ने अपनी वसीयत बनवाई।
उसमें उन्होंने जितनी जायदाद केतन और विवेक के नाम की, उतनी ही प्रिया के भी नाम कर दी। साथ ही जुहू वाला बंगला भी उन्होंने प्रिया के नाम कर दिया।दोनों ने इसका भरपूर विरोध किया, लेकिन चेतन ने उनकी एक न सुनी।
प्रिया का चेतन से रिश्ता उनकी मौत तक कायम रहा। 6 जुलाई 1997 को चेतन आनंद दुनिया से चल बसे। इसके बाद प्रिया बेहद अकेली हो गईं। उनके पास सुख-दुख बांटने वाला कोई नहीं बचा। तकरीबन तीन साल उन्होंने बेहद तन्हाई में काटे। वो चेतन के साथ जिस बंगले में 20 साल तक रहीं, उसी में अकेले रहना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया। वो कभी-कभार ही बंगले से बाहर निकलती थी।
फिर आया 27 मार्च 2000…ये वो दिन था जब प्रिया की लाश उन्हीं के बंगले से मिलने की वजह से सनसनी फैल गई।
वसीयत से नाराज चेतन के दोनों बेटो ने प्रिया की हत्या की योजना बनाई। चेतन आनंद के दोनों बेटों ने प्रिया की हत्या के लिए नौकरों को पैसे का लालच दिया। नौकर-नौकरानी मान गए और गला घोंटकर मारने का प्लान बनाया।
26 मार्च 2000 की रात को माला चौधरी चाय में कुछ नशीली चीज मिलाकर प्रिया को देती है। प्रिया जब बेहोशी की हालत में होती हैं तब अशोकन स्वामी उनका गला घोंट देता है। इसी बीच माला चौधरी को लगता है कि प्रिया जिंदा हैं, तब वो बाथरूम में जाती है और कपड़े धोने वाले पट्टे से सिर पर जोर से दो-तीन बार मारती है। जिसके बाद प्रिया की मौत हो जाती है। 27 मार्च की सुबह पड़ोसियों को पता चलता है कि प्रिया की मौत हो गई है।
पुलिस की शुरुआती तफ्तीश में खुलासा हुआ कि प्रिया की कोई नेचुरल डेथ नहीं हुई बल्कि उनका मर्डर हुआ था। मर्डर का शक चेतन के दोनों बेटों केतन और विवेक पर किया गया और इनके साथ बंगले के दो नौकरों माला और अशोक को भी हत्या में शामिल होने के आरोपों में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
दरअसल, चेतन के बेटों से खराब संबंधों का जिक्र प्रिया ने अपनी डायरी में भी किया था और उन्होंने अपनी जान को खतरे का भी अंदेशा जताया था। उन्होंने डायरी में ये भी लिखा था कि चेतन की मौत के बाद उनके बेटे उन पर बंगला छोड़ने और वसीयत में चेतन द्वारा उनके नाम की गई जायदाद को लौटाने का दबाव बना रहे हैं।
इसी को आधार बनाकर पुलिस ने केतन और विवेक समेत दोनों नौकरों को गिरफ्तार कर लिया। इन्हें सजा भी सुनाई गई, लेकिन नवंबर 2002 में इन्हें जमानत मिल गई। 2011 में कोर्ट ने सबूत न होने की वजह से चारों को मामले से बरी कर दिया और इस तरह प्रिया की मौत हमेशा के लिए एक अनसुलझी पहेली बनकर रह गई।