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लक्ष्मीकांत प्यारेलाल अपने वक्त में बहुत लोकप्रिय थे और काफी मधुर संगीत बनाया, दोनो अलग अलग प्रदेश के थे लेकिन संगीत ने भला कब कोई बंधन माना, बहुत लंबा संघर्ष रहा, लक्ष्मीकांत का जन्म विले पार्ले की काफी गंदी सी बस्ती में हुआ और जब बहुत छोटे थे तभी पिता का निधन हो गया, कुशल सारंगी वादक थे, दस साल की उम्र में मुंबई के किसी शो में इन्होंने सारंगी में संगत की, लता को बहुत पसंद आया और उन्होंने जीवन भर लक्ष्मीकांत का साथ दिया,प्यारेलाल के पिता रामप्रसाद शर्मा मुंबई के मधुर ट्रंपेट वादक थे और बाबाजी के नाम से जाने जाते थे,प्यारेलाल दिखते भी प्यारे थे बड़ी बड़ी मासूम आंखें,वायलिन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे
एक बार छोटे से प्यारेलाल को उनके पिता लता मंगेशकर के घर ले गए,वहां प्यारेलाल ने वायलिन बजाया, लता मंगेशकर ने खुश होकर 500 रुपए दिए,1950 के पहले की बात है तब ये अच्छी रकम थी,शायद लता ने प्यारेलाल की मासूम आंखें पढ़ ली, इस तरह उनका प्यारा वायलिन आ गया, इनको सीखने के लिए बहुत मुश्किल हुई, पैसे भी नहीं थे और ज्यादा पारसी या ईसाई को सिखाते थे, प्यारेलाल ने एंथनी गोंसाल्विस से वायलिन बजाना सीखा और अपने गुरु की याद में अमर अकबर एंथनी फिल्म में गाना बना दिया: माई नेम इज एंथनी गोंसाल्विस
शुरू में दोनो ने शंकर जयकिशन के असिस्टेंट और वादक के रूप में काफी काम किया, पहली फिल्म मिली तो लता के पास गए जो हमेशा नए संगीतकारों या गायकों को प्रमोट करती थी, रफी के पास गए बताया छोटे बजट की फिल्म है,प्रोड्यूसर पता नहीं कितने पैसे देगा, रफी ने कहा वो गायेंगे पैसे का देखा जाएगा, फिल्म थोड़ा चल गई तो प्रोड्यूसर से पैसे लेकर दोनो रफी के घर गए,रफी भूल चुके थे, इन दोनों ने आग्रह किया पैसे ले लें,युवक थे।
रफी ने हाथ में पैसा लिया और फिर वापस दोनो को पैसा देते हुए कहा कि दोनो हमेशा प्यार से रहना,हमेशा मिल बांट कर खाना,इस बात को ये दोनो कभी नहीं ले,लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से तीन साल बड़े थे,प्यारेलाल ने हमेशा उन्हे बड़ा भाई माना, बहरहाल फिल्म पारसमणि तो फ्लॉप हो गई लेकिन गाने उसके सारे के सारे सुपरहिट रहे और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का नाम अचानक जनता की जुबान पर चढ़ गया, मेरे दिल में हल्की सी वो खलिश है जो नहीं थी, हंसता हुआ नूरानी चेहरा काली जुल्फे रंग सुनहरा, उई मां उई मां ये क्या हो गया उनकी गली में दिल खो गया, सलामत रहो सलामत रहो, वो जब याद आए बहुत याद आए, चोरी चोरी जो तुमसे मिले तो लोग क्या कहेंगे।
जब लक्ष्मीकांत का निधन हो गया तो भी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के नाम से ही संगीत बनाते थे, प्यारेलाल भारतीय और पश्चिमी संगीत के एक्सपर्ट थे, रिटायर होकर अमेरिका इंग्लैंड में ओपेरा म्यूजिक और फिल्हार्मोनिक ऑर्केस्ट्रा में वायलिन बजाया भी और खुद लिखा भी, जब प्यारेलाल ने शादी की तो उनकी पत्नी को शुरू शुरू में अजीब अनुभव हुआ, काफी मशहूर हो चले थे, प्यारेलाल जी की पत्नी से जो मिलता वो एक ही बात कहता”अच्छा,तो आप हैं लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की धर्मपत्नी”