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एक वक्त के बहुत बड़े फिल्म डायरेक्टर थे दुलाल गुहा

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तस्वीर में गोल घेरे में जो शख्सियत है वो हैं दुलाल गुहा। अधिकतर लोगों ने इनका नाम नहीं सुना होगा। कुछ होंगे जिन्होंने कहीं पर इनका नाम सुना या पढ़ा होगा। आज दुलाल गुहा जी का जन्मदिवस है। 02 अप्रैल 1929 को दुलाल गुहा का जन्म बरीसल में हुआ था। पिता एक पुलिस अफसर थे। लेकिन कम उम्र में ही डायबिटीज़ का शिकार हो गए। और फिर एक दिन गैंगरीन ने उनकी जान ले ली।

इनकी मां अपने बच्चों संग अपने मायके आ गई। ननिहाल में ही दुलाल गुहा की पढ़ाई हुई। स्कूली दिनों से ही पेटिंग में इनकी दिलचस्पी होने लगी। ये अच्छी चित्रकारी करते थे। 1947 में जब देश का विभाजन हुआ तो इनका परिवार बरीसल से कलकत्ता आ गया। कलकत्ता में दुलाल गुहा ने जो सबसे पहला काम किया था वो था फिल्मों के पोस्टर्स पेंट करना।

फिल्मों के पोस्टर रंगते-रंगते इन्हें फिल्मों व अभिनय में दिलचस्पी होने लगी। ये बंगाली नाटकों में अभिनय भी करने लगे। अभिसार नामक एक नाटक के लिए तो दुलाल गुहा को बेस्ट एक्टर अवॉर्ड भी दिया गया था। और यहीं से इनकी ज़िंदगी ने एक नया मोड़ लेना शुरू कर दिया। वो मोड़ जो इन्हें फिल्म इंडस्ट्री में ले आया। दरअसल, उस नाट्य शो में बिमल रॉय चीफ गेस्ट थे। उन्होंने ही दुलाल गुहा को भी बेस्ट एक्टर अवॉर्ड दिया था। शो खत्म होने के बाद दुलाल गुहा बिमल रॉय से मिले और उनका असिस्टेंट बनने की ख्वाहिश ज़ाहिर की।

उस समय बिमल रॉय के पास कई असिस्टेंट्स थे। जैसे असित सेन, नबेंदू घोष और ऋषिकेश मुखर्जी। इसलिए उन्होंने दुलाल गुहा से कहा कि तुम सत्येन बोस से मिलो। बिमल रॉय की सलाह पर दुलाल गुहा ने सत्येन बोस से संपर्क किया। सत्येन बोस ने इन्हें बॉम्बे बुला लिया। शुरुआथ में ये बॉम्बे में सत्येन बोस के घर पर ही रहे थे।

सत्येन बोस ने दुलाल गुरा को अपनी फिल्म बंदिश(1955) में अपना असिस्टेंट बना लिया। फिल्म की शुरुआत के वक्त दुलाल गुहा सत्येन बोस के चौथे असिस्टेंट के तौर पर जुड़े थे। लेकिन अपने काम से इन्होंने सत्येन बोस को इतना प्रभावित किया कि फिल्म खत्म होने तक ये सत्येन बोस के मुख्य असिस्टेंट बन चुके थे। यूट्यूब पर आप जब बंदिश फिल्म प्ले करेंगे तो उसके क्रेडिट्स में आपको असिस्टेंट डायरेक्टर्स की लिस्ट में दुलाल गुहा का नाम सबसे ऊपर दिखाई देगा। यहां एक घटना का ज़िक्र भी आपसे किए देता हूं।

जब बंदिश फिल्म का प्रीमियर हुआ था तब अशोक कुमार के कज़िन अरुण कुमार मुखर्जी जो कि एक म्यूज़िक डायरेक्टर और सिंगर थे उनकी हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई थी। वो बंदिश का प्रीमियर खत्म होने के बाद घर लौट रहे थे जब कार में ही उनका निधन हो गया। अरुण कुमार मुखर्जी ने परीणिता(1953) और समाज(1954) नामक फिल्मों का म्यूज़िक भी कंपोज़ किया था। और दिलीप कुमार की डेब्यू फिल्म ज्वार भाटा में तो वो एक्टिंग भी कर चुके थे।

बंदिश के बाद सत्येन बोस ‘एक गांव की कहानी’ फिल्म शुरू करने वाले थे। उन्होंने फिल्म के लिए एक्टर्स भी फाइनल कर दिए थे। लेकिन चूंकि बंदिश को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भारत की तरफ से भेजा गया तो सत्येन बोस को वहां जाना पड़ा। जबकी उस वक्त तक एक्टर्स की डेट्स ली जा चुकी थी। साउंड स्टूडियो भी बुक हो चुका था। टैक्निशियन्स को भी शेड्यूल दे दिया गया था। ऐसे में फिल्म की शूटिंग शुरू ना करने का मतलब था भारी घाटा। तब सत्येन बोस ने दुलाल गुहा को वो फिल्म डायरेक्ट करने का मौका दिया। और इस तरह ‘एक गांव की कहानी’ दुलाल गुहा द्वारा निर्देशित पहली फिल्म बनी।

बस, इसके बाद फिर दुलाल गुहा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। करीब 45 बरस के अपने करियर में दुलाल गुरा ने चांद और सूरज, इज़्जत, ज्योति, धरती कहे पुकार के, मेरे हमसफर, दुश्मन, दोस्त, प्रतिज्ञा, दो अनजाने, खान दोस्त, दिल का हीरा, धुआं, दो दिशाएं, मेरा करम मेरा धरम और सागर संगम जैसी फिल्में बनाई।

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