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किस्सा फिल्म खिलौना की मेकिंग का जिसमें थे सारे के सारे नगीने

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“खुदा का वास्ता देकर मना लूं दूर हूं लेकिन। तुम्हारा रास्ता मैं रोक लूं, मजबूर हूं लेकिन। कि मैं चल भी नहीं सकता हूं और तुम दौड़ जाते हो। खिलौना जानकर तुम क्यों मेरा दिल तोड़ जाते हो।” पता नहीं क्यों मगर ये गीत जब कभी भी सुना है, एक सिहरन सी दौड़ जाती है शरीर में। जैसे रफी साहब ने रोते हुए ये गीत रिकॉर्ड किया हो।

रफी साहब तो वैसे भी गायकी के साथ-साथ वॉइस एक्टिंग भी शानदार करते थे। गाने को एकदम रिएलिस्टिक बना देते थे। वैसे, उस दौर के सभी गायकों में ये खूबी कूट-कूट के भरी थी। चाहे वो किशोर दा हों, मुकेश जी हों, मन्ना जी हों या अन्य हों। सब के सब टैलेंटेड। तभी तो वो दौर गीत-संगीत की दृष्टि से हिंदी सिनेमा का सबसे उत्कृष्ट कालखंड था।

खिलौना। साल 1970 में आई एक बहुत खूबसूरत फिल्म। संजीव कुमार जी ने बहुत उम्दा अभिनय इस फिल्म में भी किया है। आज इस फिल्म के 54 साल पूरे हो गए। 08 अप्रैल 1970 को ये फिल्म रिलीज़ हुई थी। फिल्म में संजीव कुमार और मुमताज़ के अलावा जितेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा, दुर्गा खोटे, रमेश देव, चांद उस्मानी, जगदीप, मुमताज़ की बहन मलिका, विजू खोटे, जयश्री टी, जानकीदास, बिपिन गुप्ता और सत्येन कप्पू ने भी काम किया था।

फिल्म के डायरेक्टर थे चंदर वोहरा। और फिल्म को एल.वी.प्रसाद ने प्रोड्यूस किया था। संगीत दिया था लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने। तो एक सैल्यूट तो इस जोड़ी को। फिर दूसरा सैल्यूट आनंद बक्षी जी को जिन्होंने इस फिल्म के सभी गीत लिखे। इसी फिल्म में वो गीत भी है जो दिल टूटे आशिकों का महबूबा के लिए आखिरी तराना माना जाता है। और जिसके बोल हैं,””खुश रहे तू सदा ये दुआ है हमारी।”

मैंने कुछ जगहों पर पढ़ा है कि आनंद बक्षी जी को उस वक्त के कई लोग एक सतही गीतकार कहते थे। मैं इस बात को नहीं मान सकता। एक दफा फेसबुक पर एक सज्जन आनंद बक्षी को सड़कछाप गीत लिखने वाला गीतकार कह रहे थे। तो आप लिखकर दिखा दो ऐसा गीत जिसका ज़िक्र इस पोस्ट की शुरुआत में मैंने किया है। या उसके आस-पास का कोई गीत।

कोई सतही गीतकार इस स्तर की भावनाओं वाला गीत लिख दे तो मान जाऊं मैं भी। खैर, तीसरा सैल्यूट है इस फिल्म के सभी पार्श्वगायकों को। रफी साहब, किशोर दा, लता जी, मन्ना डे जी, आशा भोसले जी। सारे के सारे नगीने इस फिल्म में भर दिए गए। तो फिल्म सुपरहिट कैसे ना होगी भाई साहब।

ये फिल्म गुलशन नंदा के उपन्यास पत्थर के होंठ पर आधारित है। और इस उपन्यास पर खिलौना से पहले तेलुगू में भी एक फिल्म बन चुकी थी जिसका नाम था पुनरजन्मा। फिर तमिल में भी 1970 में एक फिल्म आई। और 1976 में मलायलम में भी इसी कहानी पर एक फिल्म बन चुकी है।

गुजराती में साल 1968 में इसी कहानी पर, यानि गुलशन नंदा जी के उपन्यास पत्थऱ के होंठ पर एक फिल्म बन चुकी है जिसकाा नाम था Mare Javun Pele Paar. और कमाल की बात तो ये है कि उस फिल्म में भी संजीव कुमार ने वही रोल निभाया था जो खिलौना में उन्होंने निभाया।

खिलौना फिल्म की शूटिंग के दौरान ये अफवाहें उड़ी कि जितेंद्र और मुमताज़ के बीच तगड़ा अफेयर चल रहा है। लेकिन ये मुमकिन ही नहीं था। खुद मुमताज़ ने एक इंटरव्यू में कहा था कि जितेंद्र की गर्लफ्रेंड शोभा जितेंद्र को लेकर इनकी पजेसिव थी कि जब कभी भी किसी के साथ जितेंद्र के अफेयर की खबरें फैलती, वो सीधे उस हीरोइन से ही जाकर बात कर आती थी। जितेंद्र और मुमताज़ ने और भी कुछ फिल्मों में साथ काम किया था।

खिलौना में शत्रुघ्न सिन्हा ने विलेन बिहारी का रोल प्ले किया था। हालांकि पहले एल.वी.प्रसाद उन्हें इस रोल के लिए कास्ट नहीं करना चाहते थे। वो चाहते थे कि ये रोल किसी मैच्योर दिखने वाले कलाकार को करना चाहिए। लेकिन उस वक्त शत्रुघ्न सिन्हा नए-नए ही फिल्म इंडस्ट्री में आए थे और काफी कम उम्र तब उनकी थी। एल.वी.प्रसाद को लगा कि शत्रुघ्न सिन्हा इस रोल के हिसाब से बहुत यंग हैं। वो इसमें फिट नहीं लगेंगे। लेकिम मुमताज़ ने शत्रु जी के नाम की सिफारिश की। क्योंकि मुमताज़ जानती थी कि उस वक्त शत्रुघ्न सिन्हा को काम की काफी ज़रूरत थी।

एक्ट्रेस मुमताज़ को खिलौना में उनके शानदार काम के लिए फिल्मफेयर ने बेस्ट एक्ट्रेस अवॉर्ड से नवाज़ा था। जबकी जबकी खिलौना को बेस्ट मूवी अवॉर्ड दिया गया था। हालांकि ज़बरदस्त अभिनय का प्रदर्शन करने के बावजूद संजीव कुमार बेस्ट एक्टर अवॉर्ड से महरूम रह गए। हालांकि वो नॉमिनेट ज़रूर हुए थे। ऐसे ही जगदीप को बेस्ट कॉमेडियन, गुलशन नंदा जी को बेस्ट स्टोरी और रफी साहब को बेस्ट मेल प्लेबैक सिंगर का नॉमिनेशन उस साल मिला था।

उस साल बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड राजेश खन्ना को फिल्म सच्चा झूठा के लिए मिला था। जबकी बेस्ट कॉमेडियन का अवॉर्ड फिल्म जॉनी मेरा नाम के लिए आई.एस.जौहर को मिला था। और बेस्ट प्लेबैक सिंगर का अवॉर्ड मुकेश जी को फिल्म पहचान के गीत सबसे बड़ा नादान के लिए मिला था।

मुमताज़ वाला रोल पहले वहीदा रहमान जी को ऑफर हुआ था। लेकिन उन्होंने इस फिल्म में किन्हीं वजहों से काम नहीं किया। उनके बाद ये रोल शर्मिला टैगोर को ऑफर हुआ। उन्होंने तो ये रोल ठुकरा ही दिया। लीना चंदावरकर जी से भी इस रोल के बारे में बात की गई। लेकिन उन्होंने फीस इतनी ज़्यादा मांग ली कि प्रोड्यूसर उनसे फिर से बात करने का साहस ही ना जुटा सके। तब ये रोल मुमताज़ जी ने निभाया। इस फिल्म में जितेंद्र जी का रोल था तो काफी छोटा। लेकिन इस रोल में उनके काम को बहुत सराहा गया था। 

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