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अनकहा अफसाना: गुरुदत्त और गीता दत्त

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गुरु दत्त की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म ‘बाज़ी’ (1951) के एक गाने की रिकॉर्डिंग बंबई के महालक्ष्मी स्टूडियो में हो रही थी. गाना था “तदबीर से बिगड़ी हुई तक़दीर बना ले”. इसे गाने आई थीं 20-21 साल की युवती गीता. वो युवती तब ही इतनी ऊंचाई पर बैठी थी कि गुरु दत जैसों का दायरा न था. गीता स्टार सिंगर थीं. तब तक कई भाषाओं में 400-500 या ज्यादा गाने गा चुकी थीं. भव्य लिमोज़ीन में घूमती थीं.

गुरु दत्त का बड़ा परिवार था. घर छोटा था. एक टेबल, एक कुर्सी थी जिस पर गुरु का सारा सृजन होता था. फाकामस्ती करते थे. वहीं गीता का पूरा नाम ही गीता घोष रॉय चौधरी था. जितना लंबा नाम उतना ही समृद्ध जमींदार परिवार. लेकिन फिर भी दोनों में प्यार हो गया था. जोरदार.

गीता की ननद ललिता लाज़मी थीं. गुरु दत्त की छोटी बहन. जो भारत की जानी-मानी आर्टिस्ट हैं. ‘रुदाली’ जैसी फिल्मों की डायरेक्टर कल्पना लाज़मी की मां.

ललिता का कहना है कि गीता की खूबसूरती चकित कर देने वाली थी, ‘वो अजंता की गुफाओं में बनी पेंटिंग जैसी थी – डार्क और ब्यूटीफुल.’ वहीं गीता की बेटी नीना मेमन के मुताबिक, ‘मेरी मां बच्चों जैसी नटखट थीं. मौज में रहने वाली. उन्हें अपने दोस्तों के साथ बातें करना बहुत पसंद था. मैंने अपनी मां को कभी-कभार ही अकेले देखा. वे घर में ही रहना पसंद करती थीं. उनकी आदत थी कि वे बैठे-बैठे हारमोनियम पर हिंदी और बंगाली गाने गाती रहती थीं.’

तीन साल प्रेम के बाद दोनों ने शादी कर ली. साल था 1953. गोधूलि बेला में बंगाली रस्मों से दोनों का विवाह हुआ.इसके बाद खार इलाके में एक किराये के फ्लैट में गीता-गुरु दत्त रहने लगे. दोनों के तीन बच्चे हुए. उसके बाद दोनों के संबंध खराब हो गए. कई वजहें थीं, कौन सी कितनी सच है नहीं पता. ललिता के मुताबिक, “दोनों में ईगो को टकराव था. साथ ही गीता शायद किसी बात से आहत थी. उनकी शादी 11 साल चली लेकिन दुखद चली. दोनों ही ब्रिलियंट आर्टिस्ट थे लेकिन निरंतर दरार बढ़ती रही.

गुरु दत्त 1958 में अपनी फिल्म ‘काग़ज के फूल’ बना रहे थे. ये वो वक्त था जब उनके वहीदा रहमान से संबंधों के कारण घर में कलह चलती थी. गीता दुखी थीं. अब फिल्म की कहानी देखें. एक डायरेक्टर है जिसकी बीवी है. समृद्ध सामाजिक आर्थिक परिवार से है. दोनों के एक बच्ची है लेकिन वो पति को बच्ची से मिलने नहीं देती.

एक दिन स्टूडियो में वो शूटिंग कर रहा होता है कि उसे एक युवती नजर आती है जो पहले भी मिल चुकी थी. वो कैमरा के सामने से उसे आते देखता है तो चौंक जाता है. उसमें अपनी म्यूज देखने लगता है. उससे प्रेम भी हो जाता है. लेकिन जमाना दोनों के रिश्ते को कुबूल नहीं करेगा इस सोच से वो कष्ट में रहता है. फिर फिल्म का एक अंत होता है.

अब ये पूरी कहानी, सिवा अपने अंत के, गुरु दत्त, गीता और वहीदा की कहानी है. त्रासदी देखिए कि इसी फिल्म में सारे फीमेल सॉन्ग गीता ने गाए. और यही गाने वहीदा पर फिल्माए गए. फिल्म में वहीदा का पात्र दुख से वो गाने गाता है, जिन्हें शायद उससे भी अधिक दुख के साथ गीता ने रिकॉर्डिंग स्टूडियो में गाया था.

ऐसा नहीं है कि गीता को गुरु दत्त से प्यार नहीं था. लेकिन पांच-छह साल बाद 1964 में गुरु दत्त अपने किराए के फ्लैट में मृत मिले. शराब और नींद की गोलियों के साथ उन्होंने दुनिया छोड़ दी. गीता इस दुख से तबाह हो चुकी थीं.

उन्होंने शराब बहुत पीनी शुरू कर दी. ठीक अपने पति की तरह. नींद की गोलियों और दूसरी ड्रग्स का सहारा भी लिया. शादी के बाद जो गाने उन्हें मिलने थे वो आशा भोसले को मिलते रहे और आशा सफल हो गईं. गुरु दत्त की मृत्यु के बाद घर चलाने के लिए गीता को फिर काम शुरू करना पड़ा. छोटी-मोटी फीस के लिए वे स्टेज शो तक में परफॉर्म करने लगीं. शोज़ और रिकॉर्डिंग में उनके खूब शराब पीकर आने के किस्से भी सुनाई देते रहे.

1971 में गीता ने ‘अनुभव’ फिल्म में गाने गाए. जीवन में इतने तनाव और दुख को दौर में भी उन्होंने इसमें ‘मुझे जां न कहो मेरी जां’ और ‘कोई चुपके से आके’ जैसे गीत गाए जो आज भी यादगार हैं. अगले साल लिवर की बीमारी से गीता दत्त चली गईं. रेडियो पर उनके मरने की खबर उनके गाए गीत के साथ सुनाई गई – ‘याद करोगे एक दिन हमको याद करोगे’.

वे सिर्फ 42 साल की थीं. दोनों पति-पत्नी की तस्वीर एक साथ एक फ्रेम में देखकर बहुत अच्छा लगा तो आपसे उनकी जिंदगीकी यह कहानी और फोटो दोनों शेयर कर ली. एक महान अभिनेता , निर्देशक, तो दुसरी बेहतरीन गायिका पर दोनों का वैवाहिक जीवन का अन्त अत्यंत दुःखद रहा . गीता दत्त जी का गाया गीत “वक्त ने किया क्या हंसी सितम तुम रहे न तुम हम रहे न हम ” उनकी जिंदगी पर सटीक बैठता है।

साल 1959 में रिलीज फ़िल्म “कागज के फूल” का यह गाना आज भी क्लासिक माना जाता है। जिसे लिखा है कैफ़ी आज़मी ने, संगीत से संवारा है एसडी बर्मन ने और आवाज है गीता दत्त की…..

वक़्त ने किया, क्या हसीं सितम
तुम रहे न तुम, हम रहे न हम

बेक़रार दिल इस तरह मिले
जिस तरह कभी हम जुदा न थे
तुम भी खो गए, हम भी खो गए
एक राह पर, चल के दो क़दम
वक़्त ने किया…

((गीता की छोटी बहन लक्ष्मी नवविवाहित गुरु और गीता दत्त के साथ। 1950 के दशक में भारत में एक प्रेम विवाह, जब प्रेम विवाह बहुत कम होते थे))

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