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फिल्म तिरंगा की शूटिंग के दौरान हिंदी सिनेमा के दो मकबूल व्यक्तित्व बन गए थे एक दूसरे के दोस्त

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शूटिंग के पहले दिन जब मेहुल कुमार पहले शोट की तैयारी कर रहे थे तभी उन्होंने देखा कि लोगों के एक समूह ने किसी गाड़ी को घेर रखा है, थोड़ी देर बाद भीड़ में से उन्होंने देखा कि राजकुमार साहब एक टैक्सी में से निकलकर आ रहे हैं, पास आने पर जब मेहुल कुमार ने उनसे टैक्सी में आने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि उनकी गाड़ी खराब हो गई थी और वो नहीं चाहते थे कि उनके देर से आने के कारण उनके दोस्त को पहले ही दिन लोगों की बातें सुननी पड़े इसलिए वो टैक्सी में आ गए।शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर और राजकुमार साहब अपने अपने काम को पुरा करने के बाद अलग अलग बैठ जाते थे और उनमें किसी भी प्रकार की अतिरिक्त बातचीत नहीं होती थी।

29 जनवरी 1993 को फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी लोगों की आशाओं के विपरित यह फिल्म 6 महीनों में बनकर रीलीज हो गई थी जहां राजकुमार साहब और नाना पाटेकर की जोड़ी को दर्शकों ने बेसुमार प्यार दिया था।

लेकिन उसी दौरान मुम्बई पर आंतकवादियो का साया भी मंडरा रहा था, 12 मार्च 1993 के दिन मुम्बई की तेरह अलग अलग जगहों पर बम ब्लास्ट हुए जिनमें से एक दादर में स्थित प्लाजा स्टुडियो भी था जहां लगभग 881 लोग तिरंगा फिल्म देख रहे थे।

इन 881 लोगों में से दस लोगों का निधन हो गया तो वहीं 35 लोग घायल हो गए थे, 14 मार्च 1993 को इस घटना के मुख्य आरोपी अजगर मुकादम और शहनवाज कुरैशी को गिरफ्तार कर लिया गया और साल 2007 में इन्हें फांसी दे दी गई थी।

साल 2004 में 1993 बोम्ब ब्लास्ट पर बनी अनुराग कश्यप की फिल्म ब्लैक फ्राइडे में इस घटना का जिक्र किया गया था
भी मुश्किलों के बावजूद इस फिल्म ने उस साल रीलीज हुई बाजीगर सहित कई फिल्मों को टक्कर देते हुए 12 करोड़ रुपए का बीजनेस किया था और सुपरहिट साबित हुई थी।

फिल्म तिरंगा में एक सीन है जिसमें गुंडास्वामी सुरेश ओबेरॉय के किरदार को मार देता है, यह सीन देखने में बहुत ही अजीब लगता है, क्योंकि इसमें फिल्म के विलेन गुंडास्वामी को घोड़े पर हेल्मेट पहने दिखाया गया है।दीपक शिर्के से जब इसका कारण पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उस सीन में उनकी जगह उनके बोडी डबल को घोड़े पर बिठाया गया था।

क्योंकि वो घोड़े पर बैठने को लेकर झिझक रहे थे और बोडी डबल के चेहरे को ढकने के लिए उसे हेल्मेट पहनाया गया था।तिरंगा में गुंडा स्वामी को कई जगह गेंडा स्वामी कहकर भी पुकारा जाता है जिसका कारण बताया जाता है कि राजकुमार साहब ने दीपक शिर्के की आवाज और शक्ल को देखकर मज़ाक मज़ाक में उन्हें यह नाम दिया था।

इस फिल्म के एक गीत पीले पीले ओ मोरे राजा की शूटिंग के दौरान नाना पाटेकर बहुत बैचेन थे क्योंकि इस गाने में उन्हें नशे की हालत में डांस करना था जो उनके लिए बहुत मुश्किल था,
लेकिन आज इस गाने को देखकर शायद कोई यह मानने को तैयार नहीं होगा कि नाना पाटेकर ने इस गाने को बिना शराब पिये शूट किया था।

बहुत से लोगों की तरह आपको भी यह गाना सुनकर महसूस हुआ होगा कि इस गाने का अपना पोर्शन राजकुमार साहब ने खुद गाया है लेकिन ऐसा नहीं, यह जादु है सुदेश भोंसले की आवाज का जिन्हें अमिताभ बच्चन की आवाज के रूप में जाना जाता है।

लेकिन इस फिल्म में उन्होंने राजकुमार की आवाज़ में गाना गाकर सबको चौंका दिया था।दोस्तों अगर आपने यह फिल्म देखी है तो आपने यही जरूर नोटिस किया होगा कि राजकुमार साहब अपने अधिकतर दृश्यों में गले के एक हिस्से को छुपाए हुए नजर आते हैं, दरअसल वो उस समय थ्रोट कैंसर से जूझ रहे थे जो फिल्म के दौरान साफ नजर आने लगा था और इसीलिए वो फिल्म में उसे ढककर रखते थे।

इसी थ्रोट कैंसर के कारण साल 1995 में इस महान अभिनेता का निधन हो गया था और साथ ही मेहुल कुमार और राजकुमार साहब की हिट जोड़ी टुट गई थी।राजकुमार साहब के निधन के बाद मेहुल कुमार ने नाना पाटेकर के साथ अपनी सफलता को जारी रखा और फिल्म क्रांतिवीर बनाई जिसके लिए नाना पाटेकर को बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड दिया गया था।

इस जोड़ी की सक्सेस को देखते हुए उस समय अपने बुरे दौर से गुजर रहे अमिताभ बच्चन ने मेहुल कुमार के साथ मृत्युदाता में काम किया लेकिन यह फिल्म फ्लॉप साबित हुई और फिर अमिताभ बच्चन के साथ फिल्म कोहराम की नाकामयाबी मेहुल कुमार के शानदार करियर को ढलान पर ले आई थी जिसके बाद इन्होंने अपने करियर में सिर्फ तीन फिल्मों पर काम किया है लेकिन कोई भी फिल्म इनको फिर से बोलीवुड में स्थापित नहीं कर पाई।

लेकिन फिल्म के आखिरी दिनों में राजकुमार साहब के मनमौजी स्वभाव ने नाना पाटेकर के मन में राजकुमार साहब को लेकर हर तरह की भ्रांतियों को दूर कर दिया था, राजकुमार साहब नाना पाटेकर के लिए टिफीन लेकर आते और दोनों अभिनेता साथ में बैठकर खाना खाते थे। इस तरह हिंदी सिनेमा के ये दो मकबूल व्यक्तित्व एक दुसरे के दोस्त बन गए थे।

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