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राम और श्याम(1967) फिल्म की कुछ रोचक और अनसुनी बातें। 07 अप्रैल 1967 को रिलीज़ हुई दिलीप कुमार की यादगार फिल्म राम और श्याम को रिलीज़ हुए 57 साल पूरे हो गए। ये फिल्म 1964 में आई तेलुगू फिल्म रामुडू भीमुडू का रीमेक थी। दिलीप कुमार, जो कि ट्रैजेडी किंग के नाम से मशहूर थे।
उन्होंने इस फिल्म में अपनी कॉमिक टाइमिंग से दर्शकों को चौंका दिया। और फिल्मफेयर ने दिलीप कुमार को उनकी ज़बरदस्त अदाकारी के लिए 15वें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स में बेस्ट एक्टर के खिताब से नवाज़ा। वैसे, वहीदा रहमान को बेस्ट एक्ट्रेस और मुमताज़ को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का नॉमिनेशन भी मिला था। लेकिन उन्हें अवॉर्ड ना मिल सका।
राम और श्याम को तापी चाणक्य ने डायरेक्ट किया था। जिस तेलुगू फिल्म का रीमेक राम और श्याम थी, यानि रामुडू भीमुडू, उसके डायरेक्टर भी तापी चाणक्य ही थे। राम और श्याम के गीत लिखे थे शकील बदायुंनी ने। और संगीत कंपोज़ किया था नौशाद ने। वीकिपीडिया पर इस फिल्म की रिलीज़ डेट 20 अक्टूबर बताई जाती है।
लेकिन ये तारीख सही है, इस पर संशय है। क्योंकि कई जहों पर राम और श्याम की रिलीज़ डेट 1 जनवरी बताई जाती है। जबकी आईएमडीबी पर इसकी रिलीज़ डेट 07 अप्रैल लिखी है। और चूंकि और कुछ प्लेटफॉर्म्स भी हैं जहां इस फिल्म की रिलीज़ डेट 07 अप्रैल ही लिखी है। तो फिलहाल हम भी इसी तारीख को राम और श्याम की रिलीज़ डेट मान लेते हैं।
निरूपा रॉय जी ने राम और श्याम में दिलीप कुमार की बड़ी बहन का किरदार निभाया है। जबकी असल जीवन में निरूपा रॉय जी उम्र में दिलीप कुमार से नौ साल छोटी थी। ये पहली फिल्म थी जिसमें दिलीप कुमार ने डबल रोल प्ले किया था। इसके बाद 1976 में आई बैराग में दिलीप कुमार ने ट्रिपल रोल निभाया।
जबकी 1998 में आई अपनी आखिरी फिल्म किला में भी दिलीप कुमार ने डबल रोल निभाया था। राम और श्याम से प्रेरित होकर बाद में भी कई फिल्में बॉलीवुड में बनी। जैसे सीता और गीता, चालबाज़, किशन कन्हैया, जुड़वा इत्यादि। इन सभी में एक चीज़ कॉमन रही। सभी फिल्मों में जुड़वा बच्चे बचपन में बिछड़ जाते हैं।
प्राण साहब ने अपने लुक को फिल्म में और ज़्यादा इफैक्टिव बनाने के लिए आंखों पर लैंस पहने थे। और प्राण साहब की इस तरकीब ने वाकई उनके कैरेक्टर को खतरनाक रूप देने में बहुत अहम भूमिका निभाई थी। फिल्म में एक सीन है जिसमें श्याम जमकर खाना खाता है और चुपके से निकल लेता है। जबकी बिल उसकी जगह राम को चुकाना पड़ता है। कुछ-कुछ ऐसा ही सीन आपने डेविड धवन की फिल्म बड़े मियां छोटे मियां में भी देखा होगा।
राम और श्याम में जो रोल वहीदा रहमान जी ने निभाया है उसके लिए पहले वैयजयंतीमाला जी को कास्ट किया गया था। कहा तो ये भी जाता है कि वैयजयंतीमाला ने कुछ दिन की शूटिंग भी की थी। लेकिन एक दिन जब वो शूटिंग पर देर से पहुंची तो मामला बिगड़ गया। दरअसल, पूरा शॉट रेडी था। दिलीप कुमार और बाकी यूनिट वैयजयंती जी का इंतज़ार कर रहे थे। वो आई तो लेकिन बहुत देर बाद और आकर वो डायरेक्टर-प्रोड्यूसर से अपनी देरी पर अफसोस जताने की बजाय सीधा मेकअप रूम में घुस गई।
प्रोड्यूसर नागी रेड्डी को अच्छा तो नहीं लगा। लेकिन उन्होंने वैयजयंतीमाला की इस बात को इन्गोर कर दिया। उन्होंने वैयजयंती जी को कंटीन्यूटी की साड़ी पहनकर आने को कहा। कंटीन्यूटी यानि जो साड़ी उन्होंने एक दिन पहले पहनी थी वही। क्योंकि अभी वही कल वाला सीन पूरा होना था। मगर यहां वैयजयंतीमाला नखरे करने लगी। उन्होंने साड़ी पहनने में आनाकानी शुरू कर दी।
उनकी ये बात नागी रेड्डी को बहुत खराब लगी। उन्होंने वैयजयंतीमाला से कहा कि आपका इस तरह का बर्ताव हम बर्दाश्त नहीं करेंगे। हम लोग ऐसे काम नहीं करते हैं। आप अपना हिसाब कीजिए और जाईए। आप इस फिल्म में अब काम नहीं करेंगी। वैयजयंतीमाला को ये सुनकर बहुत झटका लगा। उन्होंने माफी मांगी। संगीतकार नौशाद से अपनी सिफारिश भी कराई। लेकिन नागी रेड्डी ठान चुके थे कि अब वो वैयजयंतीमाला को इस फिल्म में नहीं रखेंगे। फिर आखिरकार वहीदा रहमान को बॉम्बे से चेन्नई बुलाया गया और उनके साथ फिल्म की शूटिंग की गई। जी हां, इस फिल्म की शूटिंग चेन्नई में हुई थी।
राम और श्याम मुमताज़ के करियर के लिए भी एक अहम टर्निंग पॉइन्ट साबित हुई। इस वक्त तक मुमताज़ या तो बी-ग्रेड फिल्मों में एज़ ए हीरोइन काम करती थी। या फिर ए-ग्रेड फिल्मों में सपोर्टिंग कैरेक्टर्स प्ले करती थी। लेकिन राम और श्याम की ज़बरदस्त सफलता ने मुमताज़ को ए-ग्रेड एक्ट्रेस बना दिया। और उन्हें बाद में कई शानदार फिल्मों में काम करने का मौका मिला। यहां तक की रमेश सिप्पी जब सीता और गीता बना रहे थे तो मुख्य रोल पहले मुमताज़ को ही ऑफर हुए थे। लेकिन फीस पर आकर मामला अटक गया और मुमताज़ सीता और गीता फिल्म में काम ना कर सकी।
ये भी एक अनोखा इत्तेफाक है कि इसी साल यानि 1967 की 1 जनवरी को रिलीज़ हुई मनोज कुमार की शानदार फिल्म पत्थर के सनम में वहीदा रहमान और मुमताज़ ने साथ काम किया था। और वैयजयंतीमाला को निकाले जाने के बाद जब वहीदा रहमान राम और श्याम का हिस्सा बनी तो मुमताज़ को एक दफा फिर से वहीदा रहमान के साथ स्क्रीन शेयर करने का मौका मिला। मुमताज़ ने जब इस फिल्म की शूटिंग शुरू की थी तब वो मात्र 19 साल की थी। राम और श्याम को बाद में रशियन में डब करके रूस में भी रिलीज़ किया गया था। और वहां भी फिल्म काफी पसंद की गई थी।
राम और श्याम में शांता के रोल के लिए मुमताज़ से पहले सायरा बानो के नाम पर विचार चल रहा था। लेकिन तब दिलीप कुमार ने कहा कि सायरा बानो उनके सामने कुछ ज़्यादा ही छोटी लगेंगी। हालांकि यहां अजीब बात ये है कि उम्र में सायरा बानो मुमताज़ से 2 या 3 साल बड़ी हैं।
वैसे, मुमताज़ के नाम की सिफारिश कॉमेडियन महमूद से दिलीप कुमार ने की थी। महमूद दिलीप कुमार के पास मुमताज़ की कुछ रील्स लेकर गए थे। और वो रील्स देखकर दिलीप कुमार ने प्रोड्यूसर्स से मुमताज़ को शांता के रोल के लिए साइन करने को कहा। मुमताज़ और महमूद बढ़िया दोस्त थे।