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ललिता पवार हिन्दी फिल्मों की एक पॉपुलर अदाकारा नारी चरित्रों की निभाई कई भूमिकायें

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18 अप्रैल 1916 को नासिक महाराष्ट्र में जन्मी 80 के दशक की की एक पॉपुलर अदाकारा अगर आज ज़िंदा होतीं तो 107 वर्ष की होतीं। उन्होंने अपने करियर में कई फिल्मों और टीवी सीरियलों में काम किया. उनका वास्तविक नाम अंबा लक्ष्मण राव शागुन था.उनके पिता का नाम लक्ष्मण राव शागुन था.अंबा कभी स्कूल नहीं जा पाईं क्योंकि उस समय लड़कियों को स्कूल भेजना ठीक नहीं माना जाता था. ललिता ने फ़िल्मों में काम करना शुरू कर दिया.

फ़िल्मी करियर की शुरुआत उसने एक बाल कलाकार के रूप में आर्यन फ़िल्म कंपनी के साथ की. मूक प्रोडक्शन वाली फ़िल्मों की मुख्य भूमिका वाले नारी चरित्रों की भूमिकायें निभाता उनका फ़िल्मी सफर जारी रहा. उस समय फ़िल्मों में उनका स्क्रीन नाम ‘अंबू’ था.मूक स्टंट फ़िल्म ‘दिलेर जिगर’ उनकी प्रारंभिक सफलतम फ़िल्मों में से एक थी,जिसे ललिता के पति जी.पी.पवार ने निर्देशित किया था.

‘मूक’ फ़िल्मों से ‘बोलती’ फ़िल्मों की यात्रा में सहभागी रहीं ललिता ने टॉकी फ़िल्मों में भी कई मुख्य भूमिकायें निभाईं, जिनमें शामिल हैं -‘राजकुमारी’ (1938) हिम्मत-ए- मर्द’ (1935) और ‘दुनिया क्या है’ (1937).फ़िल्म ‘दुनिया क्या है’ का निर्माण ललिता ने ही किया था.

जानकर हैरानी होती है कि ललिता अच्छी अदाकारा के साथ अच्छी गायिका भी थीं.कामयाबी का सफ़र लगातार जारी रखते हुए ललिता एक खूबसूरत युवती में ढल गई. एक दिन उसकी ख़ूबसूरती को किसी की नज़र लग गई.1942 में ललिता पवार फिल्म ‘जंग-ए-आज़ादी’ के एक सीन की शूटिंग कर रही थीं. इस सीन में एक्टर भगवान दादा को ललिता को थप्पड़ मारना था. उन्होंने ललिता को इतनी जोर से थप्पड़ मारा कि वो गिर गईं और उनके कान से खून बहने लगा.

इलाज के दौरान डाक्टर द्वारा दी गई किसी ग़लत दवा के नतीजे में ललिता पवार के शरीर के दाहिने भाग को लकवा मार गया. इसी लकवे की वजह से उनकी दाहिनी आंख पूरी तरह सिकुड़ गई और चेहरा ख़राब हो गया.इस घटना के बाद ललिता को काम मिलना बंद हो गया.अगले कई साल तक अपनी सेहत और हौसले को फिर से हासिल करने की कोशिश में जुटी रहीं.

फ़िल्म ‘रामशास्त्री’ (1944) में अपनी खराब हो चुकी बायीं आंख का कलात्मक प्रयोग क्रूर और परंपरागत सास की भूमिका में किया. उनकी यह भूमिका ही उनके आने वाले दौर की सर्वाधिक मशहूर स्क्रीन इमेज बन गई.1960 और 1970 के दशकों में ललिता का अभिनय बहुधा इसी इमेज पर आधारित रहा.

ललिता ने अपने जीवन मे आये इस मौके को अपने अभिनय से माँझना आरंभ कर दिया. इसी के चलते उन्होंने फिल्म ‘अनाड़ी’ (1959) में दयावान मिसेज डीसा, ‘मेम दीदी’ (1961) की मिसेज राय और ‘श्री 420′ (1955) में ‘केले वाली बाई’ के अजर-अमर किरदार निभाये. 1959 में उन्हे फ़िल्म ‘अनाड़ी’ में अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.1961में उनको अभिनय के लिए ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से नवाज़ा गया.

ललिता पवार हिन्दी फिल्मों की एक ऐसे अभिनेत्री बनकर उभरीं जिन्होंने 600 से ज़्यादा फ़िल्मों में विभिन्न किरदार बनाये.उन्होंने ‘शो मस्ट गो ऑन’ की भावना को हमेशा अपना “मोटो” बनाकर जिया.

ललिता की पर्सनल लाइफ़ की बात करें तो उनके पहले पति गणपत ने उन्हें धोखा दे दिया था. गणपत को ललिता की छोटी बहन से प्यार हो गया था. बाद में उन्होंने निर्माता राजप्रकाश गुप्ता से शादी की.

अपने करियर में अनेकानेक फिल्मों में अभिनय के जौहर दिखाने वाली इस एक्ट्रेस ने पुणे में अपने छोटे से बंगले ‘आरोही’ में अकेले ही पड़े-पड़े आंखें मूंद लीं. उस समय उनके पति राजप्रकाश अस्पताल में भर्ती थे और बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में था.

उनकी मौत की ख़बर तीन दिन बाद मिली जब बेटे ने फ़ोन किया और किसी ने उठाया नहीं. घर का दरवाजा तोड़ने पर पुलिस को ललिता पवार की तीन दिन पुरानी लाश मिली थी. उस समय ललिता पवार 81 वर्ष की थीं: तारीख 24 फरवरी, वर्ष था:1998, जगह थी:को पुणे, महाराष्ट्र…

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