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एक वो समय भी था जब “जय श्री राम” नारे को बताया जाता था हिंसात्मक

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एक वो समय भी था जब “जय श्री राम” नारे को हिंसात्मक बताया जाता था…तथा, विपक्षियों द्वारा खुलेआम ये बताया जाता था कि… “जय श्री राम” का नारा लगाकर समाज में मॉब लिंचिंग हो रही है इसीलिए इस नारे को बैन कर देना चाहिए..!

लेकिन, आज ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि पूरी दुनिया राममय हो चुकी है और दुनिया के कोने-कोने में “जय श्री राम” का जयकारा लगाया जा रहा है.

अगर आप भी इसे एक सुखद बदलाव या फिर कहें कि दुश्मनों के उस कुत्सित प्रयास को विफल कर अपने सनातन धर्म का ध्वजा फहराना मानते हैं… तो, फिर… इस सुखद बदलाव का श्रेय किसे जाता है वो किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है.

उसी तरह… देश में भगवा लहराना साम्प्रदायिकता के सिंबल से बदल कर कब राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ गया वो एहसास तक नहीं हुआ.

लेकिन, आज ये सच्चाई है कि… चाहे वो रामनवमी हो या फिर श्री रामलला की प्राणप्रतिष्ठा का शुभ अवसर… देश की गली और हर शहर हमारे भगवा झंडे से पट जा रहा है..और, ये सब कुछ कोई राजनीतिक पार्टी या संगठन नहीं बल्कि भारत का आम जनमानस कर रहा है.

संदेश बिल्कुल साफ है कि अब भारत का सुसुप्त सनातनी हिन्दू समाज अब जागकर अंगड़ाई ले रहा है… एवं, अपने स्वाभिमान को पहचान रहा है.

और, मेरा ये स्पष्ट मानना है कि अपने देश में आये इस चमत्कारिक बदलाव का एक बहुत बड़ा योगदान यहाँ की वर्तमान सरकार एवं उसके मुखिया को जाता है.

ये उसके अथक प्रयासों एवं दीर्घकालीन प्लानिंग का ही नतीजा है कि जहाँ 2014 से भारत की पहचान ताजमहल, लालकिले, मोइद्दीन चिश्ती के दरगाहों आदि से हुआ करती थी..अब वो पहचान धीरे धीरे… श्री राम मंदिर, काशी कॉरिडोर, महाकाल कॉरिडोर आदि बनते जा रहे हैं…!

इसीलिए, आप किसी व्यक्ति/सरकार से सहमत या असहमत तो हो सकते हैं लेकिन अपने हिन्दू सनातन धर्म के प्रति किये जा रहे इस उत्थान के योगदान को नकार नहीं सकते.

साथ ही अगर कोई सनातनी हिन्दू होते भी अगर कोई ऐसे व्यक्ति/सरकार पर उंगली उठाता है तो फिर उसकी नीयत पर संदेह होना स्वाभाविक है..!

आप माँ दुर्गा के उपासक हैं, इसलिए महिषासुर उन्हें अपना पूर्वज लगने लगता है|

आप राम के आराधक हैं, इसलिए वो रावण के साथ खड़े नज़र आने लगते हैं|

आप कृष्ण को अपना आराध्य मानते हैं, इसलिए वो उनके विरोधियों में अपना रिश्ता ढूंढने लगते हैं|

आप चाणक्य और चन्द्रगुप्त के साथ है तो वो सिकंदर का महिमामंडन करने लगते हैं|

जैसे ही आप पुष्यमित्र शुंग के साथ होते हैं, वो इन्हीं चन्द्रगुप्त के वंशज वृहद्रथ के लिए स्यापा करने लगते हैं|

आप दाहिर की प्रशंसा के गीत गाते हैं, वो मोहम्मद बिन कासिम को बचाने की जुगत लगाते हैं|

आप सोमनाथ के पुजारियों की बात करते हैं तो वो ग़ज़नवी की|

आप पृथ्वीराज के साथ है तो वो गोरी के|

आप रतनसिंह और पद्मिनी के लिए बात करते हैं तो वो अलाउद्दीन खिलजी के झंडाबरदार हैं|

आप राणा सांगा की वीरता के मुरीद हैं तो उनका दिल बाबर के लिए धड़कता है|

आप महाराणा प्रताप को स्वाभिमान का पर्याय मानते हैं तो वो अकबर को महान ठहराते हैं|

आप शिवाजी को प्रतिष्ठापित करते हैं तो उन्हें औरंगजेब में नायक दिखने लगता है|

आप विश्वासराव, सदाशिवराव और इब्राहिम गार्दी को सर आँखों पर बैठाते हैं तो वो अहमदशाह के पक्ष में तर्क देते नज़र आते हैं|

आप लक्ष्मीबाई में अपनी कन्यायों के लिए आदर्श ढूंढते हैं तो वो झलकारीबाई के बहाने उनका ही चरित्र हनन करने लग जाते हैं|

आप मदनमोहन मालवीय के प्रशंसक हैं तो वो उनको भी बेकार ठहरा देते हैं|

आप सावरकर को आज़ादी की लड़ाई का महानायक मानते हैं तो वो गाँधी का गुणगान करते नहीं थकते और जिस दिन आपने गाँधी को अपना लिया यक़ीन मानिये वो गाँधी को भी ठुकरा देंगे और कोई नया नायक खोज लाएंगे या गढ़ लेंगे आपके विरोध में, आपको खिजाने के लिए|

आपके हृदय को वन्देमातरम् का गान झंकारता है तो उन्हें ये मजहबी लगता है|

आप योग को प्राकृतिक जीवन जीने का सूत्र मानते हैं तो वो योग में ही मीन मेख निकालने लग जाते हैं|

आप गाय से प्यार करते हैं, उसे माँ का दर्ज़ा देते हैं तो उन्हें पूरे संसार में खाने योग्य केवल गाय ही लगती है|

आप हिंदुत्व की महान अवधारणा के हामी हैं तो उनके लिए हिंदुत्व आतंकवाद का पर्याय है|

आप भारतमाता की जय जयकार करते हैं तो उन्हें भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारों में सुकून मिलता है|

आप अब्दुल कलाम को पूज्य मानते हैं तो उनके आदर्श अफ़ज़ल गुरु से लेकर याक़ूब मेनन जैसों में होते हैं|

आप हमेशा देश की बात करेंगे तो वो हमेशा देश विरोधी ही रहेंगे| |

क्योंकि वो इस हद तक मतिभ्रष्ट हैं कि कभी भूले से आप उनके माँ बाप की शान में दो बातें कह दें तो वो अपने माँ बाप को ही लतिया दें और कोई नए माई बाप गढ़ लें| उनका मर्ज़ लाइलाज है क्योंकि उनकी जहनियत पूरी तरह सड़ चुकी है| वो ऐसे ही बौराते, भौंकते और चिल्लाते यहाँ से चले जायेंगे, उन पर दया कीजिये क्योंकि वो हमारी दया के ही पात्र हैं| वध के पात्र इसलिए नहीं लिख रही क्योंकि ऐसा करने की हिम्मत न हममें है और ना हमारे नेताओं में| अरे वध हर बार शारीरिक ही नहीं होता, मानसिक-आर्थिक-सामाजिक भी होता है| हम कर पाने योग्य हैं क्या?

यत राजा तत् प्रजा। अगर प्राचीन में राजा जिस धर्म की अनुपालना करता था उसी प्रचार प्रसार भी करता था हालांकि वे सहिष्णु रहे फिर भी कुछ घटनाएं तो कट्टरता की भी देखने को मिली। राज्य द्वारा आश्रित धर्म तेजी से फैलता है।आज सरकार के प्रयास ने समाज को सुषुप्त अवस्था से जगाने का काम, किया है। जिस धर्म के मार्ग को हम आपाधापी और आधुनिकता के चक्कर में भुला चुके थे। यह पुनरुथान का काल है जिसमें हमें सशक्त होना पड़ेगा ताकि हम हमारी प्राचीन विरासत को बचाकर, समृद्ध बनाकर अपनी अगली पीढ़ी के लिए धरोहर के रूप में रख सके।

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