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ब्रह्म सत्यम , जगत मिथ्या यानी ब्रह्म ही एक सत्य है और जगत मिथ्या है . अहम ब्रम्हास्मि अर्थात मै भी (ही) ब्रह्म हूँ . प्रज्ञानाम ब्रह्म अर्थात सभी में ब्रह्म ही है . यह ३ वाक्य ब्रह्म को परिभाषित करते हैं और वेद ब्रह्म की चर्चा के ही गीत हैं .
ब्रह्म पूरी ब्रम्हांड की चेतना का प्रतीक है . यह सिनेमा के उस परदे की तरह है , जो हमेशा सिनेमा हाल में स्थिर होता है . इस परदे पर प्रतिदिन अनेक जगत ( चलचित्र ) बनते रहते हैं . इस में हमें हीरो ( देवता ) , विलेन (राक्षस ) भी दीखते हैं , उनके कृत्यों पर हम भावुक भी होते हैं , कुछ समय के लिए हम उसी दुनिया में खो जाते हैं .
तो परदे पर जो लगातार बदल रहा है , वह माया या जगत है लेकिन अगर हम उसे छूने की कोशिश करें तो हमारा हाथ परदे को ही छुएगा न कि किसी व्यक्ति या पेड़ पौधे को जो दिखता प्रतीत होता है. तो यह हो गया ब्रह्म सत्यम , जगत मिथ्या .
दूसरा जो भी घटित हो रहा है उसमें ब्रह्म (पर्दा ) हर तरीके से शामिल है , उसके बिना कोई माया घटित नहीं हो सकती है , सभी तरह की माया ( फिल्म ) में पर्दा यानी ब्रह्म शामिल है . तो परदे में दिखाए गए सभी चित्रों में ब्रम्ह है तो यह हो गया अहम् ब्रम्हास्मि और प्रज्ञानाम ब्रम्ह अर्थात मैं भी ब्रह्म और सब में ब्रह्म है।
हमें ब्रह्म दिखता क्यों नहीं है ?
क्योंकि वह माया (फिल्म) से आच्छादित है , जैसे ही फिल्म समाप्त होगी , पर्दा ही दिखेगा क्योंकि वही एक सनातन सत्य है , फ़िल्में आती जाती रहती हैं .
हिरण्यमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम् ।
तत्त्वं पूषन्न अपावृणु सत्य-धर्माय दृष्टये।।
– ईशावास्योपनिषद
सोने की थाली (हिरण्यमय पात्र) से सत्य का मुख ढका हुआ है और हम लोग सोने की थाली पर ही प्रलोभित होकर, उसी में संतुष्ट हो गये हैं। किन्तु उस सोने की थाली के पीछे ही वह परम सत्य ( ब्रह्म) है ।
लेकिन कुछ लोग आदि शंकराचार्य की तरह , फिल्म देखते हुए भी यह जानते हैं कि फ़िल्म ( जगत ) एक कल्पना है सत्य नहीं जिसे एक निर्देशक ने बनाया है . वे लोग ही अद्वैतवादी हैं
ब्रम्ह ने जगत की रचना की ओर जगत ब्रह्म से ऊर्जा लेती है और चलती है।हम इस जगत में रहते हे ।हम जगत से जुड़े है।तो indirectly हम उन परमब्रह्म से भी जुड़े है।और प्रकृति की हर चीज में भगवान की आकृति मिल ही जाती है जैसे की कुछ नदियों में शिव लिंग मिलते हे तो कहीं श्री यंत्र तो कहीं सालिग्रम में बिष्णु जी की आकृति।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।तो माता आदिशक्ति ने ही सृष्टि की पालन भी करती है सृष्टि करने की इच्छा की है माता आप को कोटि कोटि नमन। ब्रम्ह निराकार हे जगत की हर कण कण में है इस लिए कुछ ज्ञानी लोग जगत को ही ब्रम्ह मानकर ये श्लोक बोलते हे।
आदि गुरु शंकराचार्य ने सूत्र दिया था ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’।सबसे पहले मिथ्या शब्द का अर्थ समझना होगा। ज्यादातर लोग मिथ्या शब्द का अर्थ लगाते हैं ‘भ्रम’। भ्रम का अर्थ है किसी के न होने पर भी उसका आभास होना या संदेह होना। लेकिन ‘मिथ्या’ शब्द का वास्तविक अर्थ होता है ‘जो न तो पूर्ण सत्य हो और न पूर्ण असत्य’। यह जगत भी न तो पूर्ण सत्य है और न ही पूर्ण असत्य। इस संसार की समस्त वस्तुयें नश्वर हैं। किसी न किसी दिन उन्हें नष्ट होना ही है। इस दृश्य जगत में हम अपनी इन्द्रियों के माध्यम से देखते हैं, सुनते हैं और अनुभव करते हैं सारे क्रियाकलाप करते हैं। ये सत्य भी हैं और असत्य भी। सत्य इसलिए कि आपने इसे देखा, सुना और अनुभव किया। असत्य इसलिए क्योंकि बाद में कुछ भी न रहेगा। नश्वर चीजें पूर्ण सत्य नहीं होतीं। वे अर्द्ध सत्य होतीं हैं। कोई आज पैदा हुआ लेकिन वह सदा न रहेगा एक न एक दिन उसे इस संसार को छोड़कर जाना ही होगा। पूर्ण सत्य वही है जो पूर्ण चेतन है,जो अनंत काल से है,आज भी है और हमेशा रहेगा। जिसका कभी नाश न होगा।
एक उदाहरण से समझते हैं
हम सब सपने देखते हैं। दिन के समय हम चेतन अवस्था में सपने देखते हैं। लेकिन हम यहाँ बात रात में सोने के बाद देखे जाने वाले सपनों की करेंगें। रात में सोते समय हमारा अवचेतन मस्तिष्क काम करता है। वह हमारी स्मृतियों में से कुछ को निकालकर सपने दिखाने का काम करता है। सपने में भी हमें वही अनुभव होते हैं जैसे जागते हुए होते हैं। हम सपनों में हँसते हैं, रोते हैं, चिल्लाते हैं। खुश हो जाते हैं तो कभी दुःखी भी। उस समय हमारे साथ जो घट रहा होता है वास्तविक लगता है। सारे अनुभव सत्य लगते हैं। लेकिन जैसे ही हम जागते हैं। सब कुछ गायब। आपने सपना देखा, बहुत कुछ अनुभव किया सत्य था लेकिन पूर्ण सत्य नहीं। इसी तरह जब तक कोई जीवित है अस्तित्व में है, सत्य है। अस्तित्व न रहने पर असत्य हो जाएगा। लेकिन आत्मा सदा से थी है और रहेगी। आत्मा नित्य है सत्य है। परमात्मा पूर्ण सत्य है। यह जगत अभी अस्तित्व में है लेकिन सदा न रहेगा। इसलिए यह जगत न तो पूर्ण सत्य है और न ही पूर्ण असत्य। इस जगत में रह कर ही कर्म करते हुए परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है। इसलिए यह जगत सत्य होते हुए भी पूर्ण सत्य नहीं है इसलिए यह मिथ्या है।