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वाल्मीकि रामायण के लंका कांड के अनुसार जब श्री बालाजी महाराज ने लंका दहन किया तो असुर नरेश रावण के यहां एक ऋषि रहते थे उनका नाम था नीलासुर। श्री बालाजी महाराज को लंका दहन करते हुए ऋषि नीलासुर ने देख लिया और वे समझ गये कि ये कपि कोई साधारण कपि नहीं हो सकता ये अवश्य ही कोई दिव्य देहधारी हैं। उन्होंने श्री हनुमान जी महाराज से उनका परिचय पूछा तो श्री बालाजी महाराज ने उत्तर दिया कि मैं श्री राम का सेवक हूं जो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं।
उनकी ऐसी बातें सुनकर ऋषि नीलासुर को श्री राम के दर्शन करने की इच्छा हुई उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए श्री बालाजी महाराज ने श्री राम के दर्शन करवाए। जब श्री राम वापिस बैकुंठ धाम को जाने लगे तो उन्होंने श्री हनुमान महाराज को आदेश दिया ” हे हनुमान तुम्हें कलयुग में मेरे कल्कि अवतार की प्रतीक्षा करनी होगी और तब तक भक्तों का कल्याण करने के लिए मेंहदीपुर दौसा में प्रकट हो और भक्तों का कल्याण करो।”
तब श्री बालाजी महाराज ने ऋषि नीलासुर का स्मरण किया और कहा कि” आज से ये संसार आपको प्रेतराज सरकार के नाम से जानेगा। मुझसे पहले आपकी पूजा की जाएगी और आप बुरी शक्तियों को दण्ड देने का अधिकार रखेंगे। आप मेरे दण्डनायक के रूप में कार्यरत होंगे।” बालाजी महाराज की कृपा हमेशा अपने भक्तों पर बनी रहे ।