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रामायण के ये पांच मुख्य पात्र, सिखाते हैं जीवन की पांच मुख्य बातें

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राजा दशरथ: वृद्धावस्था की ओर झुक गए तो राजा दशरथ ने श्रीराम को शासन कार्य सौंपने का निश्चय किया। सही समय पर सही निर्णय लेना बहुत जरूरी है। पद और सत्ता का मोह अच्छे लोगों से नहीं बचता। लेकिन इससे पहले कि कोई और आपकी क्षमताओं का एहसास कर सके और पद का प्रलोभन छोड़ सके।

प्रभु श्रीराम: अयोध्या के राजा के रूप में लेंगे राजपद की शपथ, आई वनवास की खबर! कैसा होगा अवसर, कैसा होगा क्षण, कैसी होगी राम की मानसिक अवस्था? कोई और होता तो ये सदमा न आती, पर राम ने पितवचना का पालन किया, खुशी से वनवास पकड़ लिया। इस दशरथपुत्र श्रीराम का नाम लेना सदा अच्छा है, परन्तु इनके गुणों को स्वीकार करना ही बेहतर है। श्रीराम के चरणों का ध्यान मंदिर तक ले जाएगा, लेकिन व्यवहार का ध्यान श्रीराम तक ले जाएगा!

माता सीता: वनवास जाने की सजा केवल राम को मिली थी परन्तु सीता ने पत्नी बनकर वनवास जाने का निश्चय किया। सबने उसका विरोध किया। खुद राम ने भी उसे ना कहा, पर सीता ने राजसुख का त्याग कर पति का साथ देने का निर्णय लिया। यह हमें सिखाता है, कि संकट चाहे कितना भी बड़ा हो, इसे भाग्य की योजना मानते हुए स्वीकार करें और अपने सिद्धांतों से समझौता किए बिना अपने लोगों को मोटा-मोटा समर्थन करें। इस फैसले से सीता को कई कष्ट हुए, लेकिन उनके बलिदान ने उन्हें माता सीता के रूप में गर्व महसूस किया।

भरत: राम की छाया की तरह हर जगह लक्ष्मण रहते हैं, फिर भी भाई-प्रेम के संबंध में राम भरत के प्रेम प्रमाण पत्र दिए जाते हैं। राम को वनवास मिल गया, भारत राम दर्शन करने चित्रकूट पर्वत पर पहुँचे और निवेदन करते हैं कि प्रदेश का कार्यभार स्वीकार करें। पितर आज्ञा से बाहर राम नहीं है। वो भारत को कहते हैं कि बाप-माँ की इच्छा और फर्ज निभाओ। तब भारत श्रीराम के पद चिन्हों को गद्दी पर रखकर शासन की जिम्मेदारी देखता है और जब तक राम नहीं आते तब तक हम भी प्रदेश के बाहर छोटी कुटी बाँध कर वन जीवन जीते हैं। यह शिक्षाओं की ओर जाता है, जो आपकी नहीं है उस पर अधिकार न दिखाएं और जिसका वह है उसका सम्मान करें।

लक्ष्मण: हालांकि लक्ष्मण ने हमेशा राम का साथ दिया, लेकिन राम को भारत से ज्यादा प्यार है। लेकिन इसीलिए लक्ष्मण को कभी बुरा नहीं लगा। वह अपना फर्ज निभाता रहा। इसलिए इनसे सीखना चाहिए कि मशहूर होने के लिए काम करना नहीं बल्कि काम करना अपने आप मशहूर हो जाता है। निष्काम मन से की गई सेवा भगवान के चरणों में होती है। कहते हैं कि… जिनके दिल धोखेबाज़ होते हैं, वो घमंडी नहीं होते, उनके दिल बर्बाद होते हैं!

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