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फ़िल्म ‘तीसरी क़सम’ की शूटिंग का एक नायाब क़िस्सा

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कुल जमा 43 बसंत देखने वाले गीतकार शैलेन्द्र के जीवन के अनेक क़िस्से रोमांचित करने वाले हैं। ऐसा ही एक क़िस्सा उस वक़्त का है जब फ़िल्म ‘तीसरी क़सम’ की शूटिंग मुंबई के आर.के. स्टूडिओ में चल रही थी। तीसरी क़सम हिन्दी के महान कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘मारे गये गुलफ़ाम’ पर आधारित है।

इस फ़िल्म के मुख्य कलाकारों में राज कपूर और वहीदा रहमान शामिल हैं। बासु भट्टाचार्य द्वारा निर्देशित तीसरी क़सम एक गैर-परंपरागत फ़िल्म है जो भारत की देहाती दुनिया और वहां के लोगों की सादगी को दिखाती है। इस फ़िल्म की पूरी शूटिंग बिहार के अररिया ज़िले में की गई थी। फ़िल्म 1966 में रिलीज़ हुई थी।

फ़िल्म को आर.के. स्टूडियो में भी फ़िल्माया गया था। इस फ़िल्म में एक बैलगाड़ी का प्रयोग बहुत हुआ है। इसके लिए एक बैलगाड़ी, बैल और एक गाड़ीवान की व्यवस्था बिहार के फॉरबिसगंज से की गई। गाड़ीवान को बैल और गाड़ी के साथ स्टूडियो में रहने की व्यवस्था कर दी गई। शैलन्द्र के बेटे दिनेश और बेटी अमला ने बताया कि तब वे सब 5-7 साल के रहे होंगे।

वे स्कूल से आकर स्टूडिओ शूटिंग देखने पहुँच जाते थे। फ़िल्म के एक सीन में बैलगाड़ी में वहीदा रहमान बैठी हैं। गाना बज रहा है – “लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुल्हनिया, पिया की प्यारी भोली भाली रे दुल्हनिया” गांव के बच्चे गाड़ी के पीछे भाग रहे हैं। इन बच्चों में शैलेन्द्र के तीन बच्चे भी हैं।

स्टूडियो में शूटिंग के वक़्त जब सब तैयारियां हो जाती तो गाड़ीवान को बैलगाड़ी के साथ फटाफट फ़िल्म के सेट पर आ जाने की ख़बर भेजी जाती और शूटिंग शुरू होती। कामकाज ठीक चल रहा था लेकिन एक दिन जब सारी तैयारियां हो गईं, वहीदा रहमान और राजकपूर आ गए तो गाड़ीवान के पास सेट पर आ जाने की ख़बर गई। गाड़ीवान रोई सी सूरत बनाकर बोला, “साब, गाड़ी न ला सकत, बैल मर गयो।”

शूटिंग की तैयारी में जुटे शैलेन्द्र को जब गाड़ीवान की बात बताई गई तो वे दौड़े-दौड़े गाड़ीवान के पास गए। शैलेन्द्र समझ गए कि यह सब गाड़ीवान की शरारत है। उन्होंने गाड़ीवान से उलझने और झगड़ा करने में कोई फायदा न समझा। शैलेन्द्र गाड़ीवान से बोले, “नया बैल कितने में आएगा ?” पहले से तैयार गाड़ीवान ने एक रकम बताई जिसे शैलेन्द्र ने तत्काल निकाल कर दी।

कुछ ही समय में गाड़ीवान सैट पर बैलगाड़ी ले आया। शैलेन्द्र को नए और पुराने बैल में कोई अंतर ही नज़र नहीं आया। वे गाड़ीवान को देखकर सिर्फ़ मुस्कराये। शैलेन्द्र ने गाड़ीवान को न कभी बेइज़्ज़त किया और न डांटा। गाड़ीवान की शरारत की बात उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा किसी दूसरे को नहीं बताई।

‘तीसरी क़सम’ में जिस बैलगाड़ी को फ़िल्म में दिखाया गया है, वह बैलगाड़ी आज फॉरबिसगंज (बिहार) में उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणू के भांजे के पास यादगार के रूप में सुरक्षित है। इस गाड़ी को फ़िल्म के महूर्त के वक़्त दिखया गया था। राज कपूर ने एक स्थान पर कहा है, “यह गाड़ी न होती तो बात न बनती।”

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