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बॉम्बे टॉकीज़ की मालकिन देविका रानी का फिल्मी सफर

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“मैं इन्हें कैसे छू सकता हूं? ये तो हमारी मैडम हैं। मुझसे ये नहीं हो पाएगा।” इस तरह पूरे आठ दिन निकल गए। लेकिन वो सीन पूरा नहा हो सका। ये छोटा सा लेकिन दिलचस्प किस्सा है साल 1935 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘जीवन नैया’ की शूटिंग के दौरान का। ये पहली फिल्म थी जिसमें अशोक कुमार एक्टिंग कर रहे थे। वो भी हीरो के तौर पर। और उनकी हीरोइन थी बॉम्बे टॉकीज़ की मालकिन देविका रानी।

अशोक कुमार बॉम्बे टॉकीज़ में लैब टैक्निशियन के तौर पर काम करते थे। उनके लिए तो देविका रानी मैडम ही थी। इसिलिए जब उन्हें मजबूरी में ‘जीवन नैया’ फिल्म में काम करना पड़ा तो उनकी बेचैनी ये सुनकर और ज़्यादा बढ़ गई थी कि इस फिल्म में हीरोइन उनकी मैडम यानि देविका रानी थी। देविका रानी फिल्म में अशोक कुमार जी की पत्नी बनी थी।

फिल्म में एक सीन था जिसमें अशोक कुमार को देविका रानी का हाथ पकड़ना था। पर चूंकि अशोक कुमार ये सीन शूट कर ही नहीं पा रहे थे। उनके मन में यही ख्याल बार-बार उमड़ रहा था कि इन्हें मैं कैसे छू सकूंगा। वो जब भी ये सीन शूट करने की कोशिश करते, घबराहट में अपनी लाइनें ही भूल जाते। कई बार तो उनके चेहरे पर वो भाव ही नहीं आ पाते जिनकी आवश्यकता उस दृश्य में थी।

आखिरकार देविका रानी ने अशोक कुमार को समझाया और कहा,”ये एक फिल्म है जिसमें मैं तुम्हारी पत्नी का किरदार निभा रही हूं। और तुम अपनी पत्नी का हाथ पकड़ सकते हो। इसलिए भूल जाओ कि मैं तुम्हारी मैडम हूं।” आखिरकार नौंवे दिन वो सीन किसी तरह कंप्लीट हुआ। आज देविका रानी का जन्मदिवस है। 30 मार्च 1908 को देविका रानी का जन्म हुआ था।

देविका रानी जब 20 साल की हुई तो वो लंदन एकेडेमी ऑफ आर्ट्स में दाखिला लिया और डिज़ाइनिंग का कोर्स किया। लंदन में ही देविका रानी की मुलाकात हिमांशु राय से हुई थी। हिमांशु राय देविका रानी से उम्र में काफी बड़े थे। लेकिन जब उन्होंने देविका रानी को शादी के लिए प्रपोज़ किया तो वो इन्कार ना कर सकी। और साल 1929 में देविका रानी और हिमांशु राय की शादी हो गई। शादी के बाद ये दोनों जर्मनी आ गए।

जर्मनी में रहते हुए हिमांश राय ने कुछ साइलेंट फिल्मों का निर्माण किया था। उन फिल्मों के सेट्स और कलाकारों के मेकअप व ज्वैलरी डिज़ाइनिंग का काम देविका रानी जी ने ही पूरा किया था। साल 1934 में देविका रानी और हिमांशु राय ने भारत लौटकर बॉम्बे टॉकीज़ की स्थापना की जो भारतीय सिने इंडस्ट्री के लिए एक बहुत अहम घटनाक्रम साबित हुआ।

1930-40 के दशक के नामी एक्टर पी.जयराज की देविका रानी से बहुत बढ़िया जान-पहचान थी। उनका ख्वाब था कि वो भी किसी फिल्म में देविका रानी के साथ काम करें। देविका रानी को जब पी.जयराज की इस ख्वाहिश की जानकारी मिली तो उन्होंने वादा किया कि मेरे आखिरी हीरो तुम ही होंगे। देविका रानी ने अपना वादा निभाया भी। उनकी आखिरी फिल्म 1943 में आई ‘हमारी बात’ थी। और इस फिल्म में पी.जयराज की उनके हीरो थे।

एक और बात, देविका रानी के पति हिमांशु राय ने जब बॉम्बे टॉकीज़ में फिल्में बनानी शुरू की थी तब उन्होंने देश के लगभग हर बड़े शहर में कम से कम एक सिनेमाघर को अपनी फिल्में दिखाने के लिए अनुबंधित किया। और उन सभी सिनेमाघरों को देविका रानी की हर फिल्म का एक बड़ा सा पोस्टर दिया जाता था जिसे सिनेमाघर के एंट्रेंस के ऊपर लगाया जाता था। वो इसलिए ताकि फिल्म देखने आने वाले लोग देविका रानी को अच्छी तरह से पहचान लें।

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