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सनातन वैदिक पंचाङ्ग V/S अंग्रेजी कैलेंडर

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हमारा सनातन कैलेंडर, जिसे हम पंचांग कहते हैं, जो एक दिन के पांच तत्वों पक्ष, तिथि, नक्षत्र, योग, करण को संदर्भित करता है, न केवल प्रति घंटा विवरण, हमारा पंचांग हमें 7 (वर्तमान) ब्रह्मा की 9 तक की पूरी आयु का विवरण देता है। ब्रह्मा, प्रत्येक ब्रह्मा का विवरण, एक ब्रह्मा की कुल आयु में महाकल्प, एक महाकल्प में कल्प, एक ब्रह्मा के आधे दिन में 28 मनु, एक मनु में 71 महायुग, महायुग, एक महायुग में 4 युग, जो सत्य, त्रेता, द्वापर, कलि हैं। केवल कलि युग 4,32,000 वर्ष का है, पिछले द्वापर को अभी 5124 वर्ष ही बीते हैं, यह वैवस्वत मन्वंतर का 28वाँ कलियुग है, हमारा सनातन कैलेंडर हमें 60 संवत्सर बताता है जो हर 60 साल में पूरी तरह से दोहराए जाते हैं, लेकिन ग्रहों की स्थिति बदलती रहती है और सटीक गणना की जाती है ।

सनातन कैलेंडर हमें न केवल होरा, खगोलीय घटनाओं के सेकंड से लेकर ब्रह्मांड के सबसे बड़े बिंदु ब्रह्मा तक का विवरण देता है, सनातन पंचांग 6678 ईसा पूर्व के सप्तर्षि पंचांग से बहुत पुराना है, वर्तमान पंचांग जो हम उपयोग करते हैं वह विक्रम हैं, विक्रम संवत का नया महीना पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष से होता है। यह संवत अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे है। अर्थात अभी 2080 विक्रम संवत चल रहा है। और शक संवत जो सरकारी मान्यता प्राप्त है। इसका आरंभ विक्रम संवत के बाद हुआ। शक संवत का नया महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होता है। यह अंग्रेजी कैलेंडर से 78 वर्ष पीछे है। अर्थात अभी शक संवत के अनुसार, 1945 शक संवत चल रहा है, जो हमें संवत्सर, अयन, ऋतु, मास, मास नियम, पक्ष, तिथि, वासर, नक्षत्र, योग करण का विवरण देता है, जो वास्तव में एक दिन का दशांग है, जिसका अर्थ है एक दिन के 10 विवरण , यहां तक कि रामायण में भी श्री वाल्मीकि ने खगोलीय घटनाओं और तिथियों, मुहूर्तों को सटीक और सबसे सरल तरीके से उद्धृत किया है, रामायण लगभग 10.2 मिलियन वर्ष पहले वैवस्वत मन्वंतर के 24वें त्रेता युग में घटित हुई है और श्री वाल्मिकी श्री रामचन्द्र भगवान के समकालीन थे, मतलब सनातन कैलेंडर रामायण काल से भी बहुत पुराना है।

हिंदू पंचाग ज्योतिष में मुहूर्त शास्त्र भी एक बहुत ही विस्तृत शास्त्र है, जिसके द्वारा अलग अलग कार्य के लिए पंचांग अर्थात पांच अंग : तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण द्वारा मुहूर्त निकाले जाते है। मुहूर्त का अर्थ है कि किसी भी कार्य के लिए शुभ या उपयुक्त समय काल अवधि। क्योंकि यह विधि बहुत ही विस्तृत है इसलिए एक सरल मुहूर्त की विधि बताई गई जिसमे एक दिन में 64 घडी होती है, इनमे से 4–4 घडी का एक मुहूर्त बना दिया जाता है। इन्ही चार घडी के एक मुहूर्त को चौघड़िया मुहूर्त कहते है। यह हर पंचांग में दिए होते है, और काल दर्शक पंचांग कैलेंडर में भी आसानी से मिल जाते है। इन मुहूर्त को देख कर आप कुछ कार्य आसानी से शुभ मुहूर्त में कर सकते है बिना विस्तृत मुहूर्त निकलवाये। इन चौघड़िया मुहूर्त का एक-एक ग्रह स्वामी भी होता है। इन ग्रह स्वामी के स्वभाव या कारकत्व अनुसार आप उनसे जुड़े कार्यो की शुरुआत भी उनके चौघड़िया में कर सकते है। इसमें अहोेरात्र अर्थात दिन औेर रात के शाश्वत चक्र को समय अर्थात कालगणना हेतु संक्षिप्तिकरण कर के होरा कहा गया हैै।

हिंदू कैलेंडर भूकेन्द्रित गणित है, वास्तव में सौरमंडल सूर्य केन्द्रित है। मुख्य अवधारणा में इस भिन्नता को समायोजित करने के लिए, हिंदू गणित में ‘शिघ्रोच्चा’ की काल्पनिक स्वर्ग वस्तुएं हैं। भूकेंद्रिक प्रणाली वाले ग्रह की गति के लिए, ऋषियों ने माना कि सबसे तेज़ ग्रह केंद्र (यानी पृथ्वी) के सबसे निकट है। यही कारण है कि चंद्रमा सबसे नजदीक है (क्योंकि वह सबसे तेज चलता है), बुध दूसरे, शुक्र तीसरे, सूर्य चौथे, मंगल पांचवें, बृहस्पति छठे और शनि सातवें स्थान पर है। सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का दिन है।

एक दिन को 24 होरा में विभाजित किया गया है। उनमें से प्रत्येक के ऊपर उल्टे क्रम में एक स्वामी (राजा) है।प्रत्येक ग्रह क्रमानुसार प्रत्येक होरा का अंग होता है। इसलिए, उदाहरण के लिए, शनिवार को, सूर्योदय के समय, पहली होरा का राजा शनि होगा। पूरे दिन का नाम सूर्योदय के समय राजा के नाम पर रखा गया है। 24 होरा के लिए, ग्रहों के क्रम में दूसरा राजा बृहस्पति होगा। तीसरा राजा मंगल होगा, चौथा राजा सूर्य होगा इत्यादि। 24 होरा के सभी राजाओं को मिलाकर आठवें या बाईसवें राजा शनि, तेईसवें बृहस्पति, चौबीसवें मंगल और पच्चीसवें राजा सूर्य होंगे। लेकिन, 25वीं होरा शनिवार से अगले दिन की पहली होरा है। 25वीं होरा में सूर्य राजा होता है। इसलिए, अगले दिन का नाम सूर्य के राजा (संस्कृत में रवि या आदित्य) के नाम पर रखा गया है, यानी रविवार। रविवार के लिए प्रक्रिया को दोहराते हुए, 22वीं होरा सूर्य, 23वीं शुक्र, 24वीं बुध और 25वीं चंद्रमा है। रविवार की यह 25वीं होरा अगले दिन की पहली होरा है। सूर्योदय के समय राजा चंद्रमा होता है। यही कारण है कि, अगले पूरे दिन को राजा चंद्रमा (सोम) के नाम पर रखा गया है और सोमवार का नाम दिया गया है।

हिंदू-व्यवस्था में, होरा के राजा को ‘दीनपति’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है दिन का मुखिया हिंदू कैलेंडर के आधार पर दिनों का क्रम गति-आधारित सिद्धांत है। शनि (शनि) भू-केंद्रित पृथ्वी से सबसे अधिक दूर है। बृहस्पति (गुरु), मंगल (मंगल), सूर्य (रवि), शुक्र (शुक्र), बुध (बुद्ध) और चंद्रमा (सोम) क्रम में करीब हैं। हिंदू कैलेंडर के सभी महीने नक्षत्र के नाम पर रखे गए हैं। पूर्णिमा तिथि पर जो नक्षत्र रहता है उसी नक्षत्र के नाम पर हिंदी महीनों के नाम रखे गए हैं। जैसे चैत्र का महीना चित्रा नक्षत्र के नाम पर रखा गया इसी प्रकार वैशाख, विशाखा के नाम पर है तो वहीं, ज्येष्ठ महीने ज्येष्ठा नक्षत्र के नाम पर रखा गया है। हर महीना कृष्ण और शुक्ल पक्ष के आधार पर दो भागों में विभाजित किया गया है। विक्रम संवत में एक साल में कुल 354 दिन माने गए हैं।

वहीं ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, प्रत्येक दिन को 24 घंटों में विभाजित किया गया है और प्रत्येक घंटे में 60 मिनट हैं। हिंदू कैलेंडर में, दिन को 15 मुहूर्तों में विभाजित किया गया है – जिनमें से प्रत्येक में 48 मिनट होते हैं। ग्रेगोरियन (पश्चिमी/ईसाई) कैलेंडर पहली बार 1582 में 13वें पोप ग्रेगरी द्वारा पेश किया गया था, इसने जूलियन कैलेंडर की जगह ली, जिसे 1600 साल पहले जूलियस सीज़र ने 46 ईसा पूर्व में पेश किया था, ग्रेगोरियन कैलेंडर और जूलियन कैलेंडर के बीच अंतर यह है कि उन्होंने जूलियन कैलेंडर से सिर्फ 10 दिन जोड़े हैं, जब तक 1927 में कुल दिन बढ़कर 13 दिन रह गए, 2100 के बाद यह 14 दिन हो जाएंगे, जूलियन कैलेंडर में आज 19 दिसंबर 2022 है, बाकी सब वही है, यहां तक कि रोमन से अंग्रेजी तक महीने भी एक जैसे लगते हैं, ये दोनों कैलेंडर सुमेरियन पर आधारित हैं कैलेंडर, प्राचीन सुमेरियों ने वर्ष को लगभग ग्रेगोरियन कैलेंडर की तरह 12 महीनों में विभाजित किया था, लेकिन एक महीने में दिन 29 या 30 थे, इस कैलेंडर का आविष्कार लगभग 2100 ईसा पूर्व हुआ था, इन अंग्रेजी कैलेंडरों से हमें जो जानकारी मिलती है वह केवल तारीखें, महीने और वर्ष हैं।

वही हिंदू कैलेंडर संबधित सौर वर्ष और चंद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चन्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या पुरुषोत्तम मास या मलमास कहते हैं।

सौर-वर्ष का मान ३६५ दिन, १५ घड़ी, २२ पल और ५७ विपल हैं। जबकि चंद्रवर्ष ३५४ दिन, २२ घड़ी, १ पल और २३ विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष १० दिन, ५३ घटी, २१ पल (अर्थात लगभग ११ दिन) का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चंद्र वर्ष १२ मासों के स्थान पर १३ मास का हो जाता है

ग्रेगोरियन कैलेंडर में चार मौसम होते हैं ग्रीष्म, वसंत, सर्दी और शरद ऋतु। ये मौसम मौसम संबंधी परिवर्तनों पर आधारित होते हैं जो उत्तरी गोलार्ध के देशों को प्रभावित करते हैं। हिंदू कैलेंडर में छह ऋतुएँ होती हैं जो मौसम के पैटर्न पर भी आधारित होती हैं जो भारत देश को प्रभावित करती हैं। ये ऋतुएँ हैं वसंत ऋतु (वसंत), ग्रीष्मा (ग्रीष्म), वर्षा (मानसून), शरद (शरद ऋतु), हेमन्त (सर्दी), और शिशिर (ओस ऋतु)। 

विस्तृत रूप में हिंदू कैलेंडर एक दिन की होरा अवधारणा के आधार पर 7 दिनों का उपयोग करता है। वैदिक ज्योतिष काल के दौरान सभी ग्रहों की पहचान की गई थी, हालांकि उन दिनों की पुष्टि नहीं की गई थी। वही अंग्रेजी काल गणना सार्वभौमिक गति में कहीं भी फिट कतई नहीं बैठती इनके माइक्रोसेकंड के हिसाब से चले तो भी सार्वभौमिक गति और समय घूर्णन बहुत ही कम हो जाएंगे, जैसे मान लीजिए वैदिक काल गणना की सूक्ष्मातिसूक्ष्म काल गिनती परमाणु है जिसको सेकेंड में रूपांतरित किया जाए तो 1/60750 (1 सेकंड का 60750 वां भाग) होता है,अगर केवल सेंकड के आधार पर भी चला जाए तो सार्वभौमिक समय की गति 60750 तक कम हो जावेगी, अर्थात अपनी मूर्खता छुपाने के लिए इन अंग्रेजो ने 1901 में प्रथम बार मिलीसेकंड का अविष्कार किया तद्पश्चात माइक्रो,नैनो, से लेकर ज़ीटा सेकंड तक का अविष्कार किया।

अन्य चीज़ आपको जान कर आश्चर्य हॉगा की यह अंग्रेज लोग इतने मूर्ख है या शातिर है कि उन लोगो ने जो भी वस्तुओं के वैज्ञानिक नाम रखें है वो अधिकत्तर आपको लैटिन/स्पेनिश एवं ग्रीक शब्दकोश में मिल जाएंगे क्योंकि अंग्रेजी भाषा स्वयं में मूर्खतापूर्ण है इनका स्वतंत्र कोई शब्दकोष नहीं, सब अलग अलग यूरोपीय भाषाओ के शब्दों का अपभ्रंश है।

चलिए वापिस अंग्रेजी कैलेंडर पर जाते है जिसमे मूल अब्राहम कैलेंडर में केवल १० महीने थे, २ महीने फरवरी और जुलाई पश्चात जोड़े गए। अब इन महीनों के नाम जानते है। मूल रोमन कैलेंडर में १० महीने थे, चलिए इनके नाम देखते है।

जनवरी – उनके जानूस गॉड का नाम(जो मूल ग्रीक है लेटिन में भी उल्लेख है
फरवरी – रोमन शुद्धिकरण त्योहार का नाम
मार्च – रोमन योद्धा के भगवान मार्स का नाम
एप्रिल – का अर्थ होता है खोलना(मगर क्या खोलना?)
मई – रोमन देवी माया जो पौधों को उगाती है उसका नाम में।
जून – जूनो नाम का भगवान ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार देव/जूलियन-रोमन कैलेंडर के अनुसार देवी अर्थात यह लोग भी एक मत नहीं देव की देवी
जुलाई – जूलियस सीज़र जिसका – रोमन में(iulius) के नाम पर रखा गया
ऑगस्ट – जूलियन कलेंडर के अनुसार ऑगस्टस सीज़र के नाम पर रखा गया।
सितंबर – सेप्ट अर्थात लैटिन ७ (महीना चल रहा है ९)
ऑक्टोबर – ऑक्ट अर्थात लैटिन ८ (महीना चल रहा है १०)
नवम्बर – नोवेम लैटिन ९(महीना चल रहा है ११)
दिसंबर – दिसेम(deca) अर्थात (१० महीना चल रहा है १२)

यह मूढ़ बुद्धि लोग कौन हिसाब से सर्वश्रेष्ठ कालगणना किये है अब यही जाने, और आप लोग इनको मॉडर्न साइनटिफिक मानते हुए उनके इस अर्ध रात्रि से शुरू होने वाले समय को नव वर्ष मानते हैं तो फिर आपके जैसा भी कोई मूर्ख नहीं। हिंदू पंचाग ज्योतिष में मुहूर्त शास्त्र भी एक बहुत ही विस्तृत शास्त्र है, जिसके द्वारा अलग अलग कार्य के लिए पंचांग अर्थात पांच अंग : तिथि, वार, नक्षत्र, योग, और करण द्वारा मुहूर्त निकाले जाते है। मुहूर्त का अर्थ है कि किसी भी कार्य के लिए शुभ या उपयुक्त समय काल अवधि। क्योंकि यह विधि बहुत ही विस्तृत है इसलिए एक सरल मुहूर्त की विधि बताई गई जिसमे एक दिन में 64 घडी होती है, इनमे से 4–4 घडी का एक मुहूर्त बना दिया जाता है। इन्ही चार घडी के एक मुहूर्त को चौघड़िया मुहूर्त कहते है। यह हर पंचांग में दिए होते है, और काल दर्शक पंचांग कैलेंडर में भी आसानी से मिल जाते है। इन मुहूर्त को देख कर आप कुछ कार्य आसानी से शुभ मुहूर्त में कर सकते है बिना विस्तृत मुहूर्त निकलवाये। इन चौघड़िया मुहूर्त का एक-एक ग्रह स्वामी भी होता है। इन ग्रह स्वामी के स्वभाव या कारकत्व अनुसार आप उनसे जुड़े कार्यो की शुरुआत भी उनके चौघड़िया में कर सकते है। इसमें अहोेरात्र अर्थात दिन औेर रात के शाश्वत चक्र को समय अर्थात कालगणना हेतु संक्षिप्तिकरण कर के होरा कहा गया हैै।

हिंदू कैलेंडर भूकेन्द्रित गणित है, वास्तव में सौरमंडल सूर्य केन्द्रित है। मुख्य अवधारणा में इस भिन्नता को समायोजित करने के लिए, हिंदू गणित में ‘शिघ्रोच्चा’ की काल्पनिक स्वर्ग वस्तुएं हैं। भूकेंद्रिक प्रणाली वाले ग्रह की गति के लिए, ऋषियों ने माना कि सबसे तेज़ ग्रह केंद्र (यानी पृथ्वी) के सबसे निकट है। यही कारण है कि चंद्रमा सबसे नजदीक है (क्योंकि वह सबसे तेज चलता है), बुध दूसरे, शुक्र तीसरे, सूर्य चौथे, मंगल पांचवें, बृहस्पति छठे और शनि सातवें स्थान पर है। सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का दिन है।

गणेश मुखी रूद्राक्ष पहने हुए व्यक्ति को मिलती है सभी क्षेत्रों में सफलता एलियन के कंकालों पर मैक्सिको के डॉक्टरों ने किया ये दावा सुबह खाली पेट अमृत है कच्चा लहसुन का सेवन श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हुआ दर्ज महिला आरक्षण का श्रेय लेने की भाजपा और कांग्रेस में मची होड़