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१. अपवित्र हाथ, बिना स्नान किए, नग्नावस्था, या सिर पर वस्त्र रखकर मन्त्र साधना न करे ।
२. जपकाल में बातचीत न करे ।
३. जपकाल में बातचीत आवश्यक हो तो कर ले, पर फिर पुनः आचमन अंगन्यास करके ही जप प्रारम्भ करे
४. जप करते समय मल, मूत्र विसर्जन-वेग हो, तो इस वेग को रोके नहीं, क्योंकि रोकने से मन्त्र चिन्तन न होकर मल-मूत्र चिन्तन ही रहेगा, अतः मल-मूत्र विसर्जन कर स्नान कर आचमन अंगन्यास करके ही पुनः मन्त्र जप प्रारंभ करे ।
५. जप करते समय-आलस्य, जंभाई, नींद, छींक, धूकना, भय, गुप्तेन्द्रिय- स्पर्श, क्रोध तथा बातचीत पूर्णतः वर्जित है ।
६. मंत्र जप न तो जल्दी हो और न अत्यन्त धीमी गति से हो ।
७. मन्त्र को गाकर न जपे ।
८. मन्त्र जपते समय सिर हिलाना, लिखा हुआ सही ना पढ़ना, मन्त्र का अर्थ न जानना, भूल जाना भी उचित नहीं ।
९. प्रथम दिन जितना जप किया जाय, नित्य उतना ही करे, जप संख्या घटाना-बढ़ाना उचित नहीं ।