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देह के कितने यत्न हैं कितने मुनव्वल हैं इन इन्द्रियों के कि बिना आँख ना सूरज का उगना दिखे ना फूलों के रंग क्या किसी संगीतज्ञ को संतुष्टि हो सकेगी, कि वह बिना देखे उस काले-सफ़ेद ‘की’ वाले हारमोनियम को बजा सकता है। वही संगीतज्ञ अगर गायक भी हुआ तो सिर्फ़ छू ही भर सकेगा ना वह माइक जिस पर रिकॉर्ड की जानी है उसकी आवाज़। तिस पर वह लेखक भी हुआ तो क्या सदैव रखेगा अपनी सबसे ऊपर की जेब में एक पेन और डायरी। अगर लकीरें टेढ़ी हुईं तो कौन समझ पाएगा उसकी लिखाई।
मैं सोचती हूँ कि देह के इन्हीं तमाम यत्नों में से वह कौन सी ऊर्जा थी कि रवीन्द्र जैन तीनों ही भूमिका बख़ूबी निभा ले गए। वे अलीगढ़ से निकलकर कोलकाता और मुंबई तक पहुँचे अपने फ़न की रौशनी के सहारे आज उनकी जन्मतिथि है। लेकिन जितने लोगों से उनका ज़िक्र हुआ वे बोले कि – कौन रवीन्द्र जैन? यह सवाल सुनकर लगा कि कितना कम सुना हमने। क्या रामायण न देखी या विवाह, चोर मचाए शोर, अँखियों के झरोखों से सरीखी फ़िल्में न देखीं या उनके गीत न सुने।
रामानन्द सागर की रामायण में जिस आवाज़ ने किरदारों के लिए गीत गाए वह रवीन्द्र जैन हैं। जिस बोल ने बताया कि राम की गंगा मैली हो गयी है वह रवीन्द्र जैन हैं। जिस संगीत को नदिया के पार में सुना वह रवीन्द्र जैन का है। वह रवीन्द्र जैन जिन्हें 2015 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।
अलीगढ़ की पैदाइश रवीन्द्र बचपन से ही नेत्रहीन थे लेकिन संगीत में रुचि थी जिसे देखते हुए पिता ने उनका संगीत के विद्यालय में दाखिला करवा दिया। उसके बाद उनकी सुर-यात्रा शुरु हो गयी। रामायण में भरत से लेकर लव-कुश तक सभी किरदारों के लिए उन्होंने गाने गाए। वे ऐसे हिट हुए कि रामायण के साथ रवीन्द्र जैन की आवाज़ सदा के लिए चस्पा हो गयी। इस कदर की उनकी आवाज़ अब पात्रों के दृश्य बनाती है।
मुझे याद है कि बचपन में मथुरा के विश्राम घाट किनारे बनी दुकानों पर जब सुनाई देता कि ‘देखो कालिया के फ़न पर नाचत कन्हैया’ तो सामने बहती यमुना में वह दृश्य दिखाई देने लगता। उनकी आवाज़ तब से मन में एक कोना पकड़े हुए है। अलग और बेहद मधुर कि जो गाने उन्होंने गाए हैं वह आप तुरंत पहचान लेंगे। चाहें वह चौपाई हों या गीता का उपदेश देते कृष्ण का गान हो। जितनी श्रद्धा से उन्होंने भक्तिमय नग़्मे गाए उतनी ही लगन से फ़िल्मी गानों में न सिर्फ़ संगीत दिया बल्कि लेखन भी किया। यूट्यूब पर खोजिए- रवीन्द्र जैन के गाने और आप कहेंगे कि इतने बड़े-बड़े हिट उन्होंने दिए हैं।
संगीत से ध्यान भंग न हो इसलिए उन्होंने ताउम्र अपनी आँखों का इलाज भी नहीं करवाया। आज उनकी जन्मतिथि के दिन उन्हें बेहद कम याद किया जाएगा। शायद ही कहीं वह नज़र आएं। वह भले आजीवन न देख पाए लेकिन हमने उनके बोल ‘गुनगुनाए’ हैं, संगीत ‘सुना’ है, उनकी धुन पर रोमांचित हुए हैं। भक्ति और संगीत के कितने रूप तो उन्होंने हमें ‘दिखाए’ हैं।