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आधुनिक तुलसीदास श्रद्धेय रामानंद सागर

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साल 1949 में रामानंद सागर जी ने अपनी पहली फ़िल्म “बरसात” लिखी। जोकि तकरीबन 100 हफ्ते सिनेमाघरों में चलती रही और एक बेहद सफल फ़िल्म साबित हुई, इस फ़िल्म ने ना सिर्फ रामानंद जी को बल्कि राजकपूर के आर.के. फिल्म्स को भी फ़िल्म जगत में स्थापित कर दिया। उन्होंने कई लघुकथाएँ और 2 नाटक “गौरा” और “कलाकार” लिखे जिनका प्रदर्शन मुंबई के पृथ्वी थिएटर में हुआ।

ज़िंदगी के कई उतार चढ़ावों को झलते हुए अंततः रामानंद सागर जी ने साल 1950 में अपना खुद का प्रोडक्शन हाउस “सागर आर्ट्स” खोल लिया, जिसके तहत उन्होंने बतौर लेखक-निर्माता और निर्देशक अपनी पहली फ़िल्म “मेहमान” बनाई पर दुर्भायवश ये फ़िल्म बहुत बड़ी फ्लॉप साबित हुई, जिसने एक बार फिर सागर परिवार के बढ़ते कदम वापस ले लिए।

उसके बाद जैसे तैसे रामानंद सागर ने एक छोटे बजट की फ़िल्म “बाज़ूबंद” का निर्माण किया पर वो भी एक बड़ी फ्लॉप साबित हुई। इसके बाद वो चेन्नई चले गए जहाँ उन्होंने जैमिनी स्टूडियोज़ के लिए कुछ वर्षों तक लेखक- निर्देशक के तौर पर काम करना शुरू किया।

उन्होंने कुछ मशहूर फ़िल्में लिखीं जैसे “इंसानियत, पैग़ाम और राजतिलक” इसके साथ साथ उन्होंने कुछ फिल्मों में बतौर लेखक-निर्माता-निर्देशक पर काम किया जैसे “घूंघट” और “ज़िंदगी”, ये सभी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट रहीं।

इन सभी सफलताओं ने रामानंद सागर जी का आत्मविश्वास बढ़ा दिया था और उन्होंने फिर से खुद के बैनर तले फिल्में निर्माण करने का मन बना लिया। आरज़ू, आँखें, गीत, ललकार, चरस और बग़ावत, उनकी ये 6 फ़िल्में एक के बाद एक सफ़ल साबित हुईं।

साल 1980 में उनकी केदारनाथ यात्रा के दौरान एक संत “महावतार बाबाजी” ने उन्हें चमत्कृत तौर पर दर्शन दिए, रामानंद कुछ क्षण के लिए हतप्रभ रह गए क्योंकि साल 1972 में बाबाजी ने उन्हें गुवाहाटी के कामाख्या माता मंदिर में दर्शन दिए थे। बाद में एक संत ने उन्हें बाबा जी का संदेश दिया कि “रामायण धारावाहिक का निर्माण करो, ऐसा करने से तुम समग्र मानवजाति में आध्यात्मिक चेतना का प्रसार कर सकोगे, साथ ही साथ ऐसा करने से विश्वव्यापी प्रसिद्धि के भागी भी बनोगे”।

इसके बाद रामानंद सागर ने ये घोषणा कर दी कि “मैं सिनेमा को छोड़ने जा रहा हूँ, और टेलीविज़न से जुड़ रहा हूँ” “मेरे जीवन का अब एकमात्र उद्देश्य है पौराणिक कथाओं को तथा मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम के आदर्शों को जन जन तक पहुंचाना”।

उन्होंने रामायण के कई संस्करण पढ़े कई अलग अलग भाषाओं की रामायण का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया। इंडस्ट्री के लोगों को लगा कि ढलती उम्र के साथ रामानंद सागर का दिमाग फिर गया है और वो पागल हो चुके हैं।

उन्होंने दूरदर्शन को रामयण के प्रसारण का प्रस्ताव दिया, कुछ सालों तक उस वक़्त की सरकार ने “हिन्दू लहर” के भय से उनके प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया, पर इतने बड़े रामभक्त को भला कौन पराजित कर सकता था, बाद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने रामानंद सागर द्वारा रचित महान भारतीय महाकाव्य “रामायण” के प्रसारण पर मुहर लगा दी और “रामायण” धारावाहिक लोगों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुआ कि इसके दर्शकों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हुई, पहले 4 करोड़ दर्शकों तक पहुंचने वाला ये धारावाहिक 8 करोड़ फिर लगभग 65 करोड़ दर्शकों से अपना प्यार पाने वाला एक ऐतिहासिक धारावाहिक बना।

इसके बाद रामानंद सागर ने 1992 में “श्री कृष्णा” धारावाहिक का निर्माण किया इसके बाद वे “माँ दुर्गा” नाम के धारावाहिक का भी निर्माण करना चाहते थे पर किन्ही राजनैतिक व्यवधानों के चलते ऐसा ना हो सका।

भारतीय टेलिविज़न जगत में विगत 30 वर्षों से धर्मिक और कपोल कल्पित धारावाहिकों की शैली में सागर आर्ट्स का एकछत्र राज रहा है, जिसने अनेकोनेक प्रसिद्ध और सफल धार्मिक धारावाहिक भारतीय दर्शकों को दिए हैं। 12 दिसंबर 2005 को आधुनिक तुलसीदास श्रद्धेय रामानंद सागर जी देह त्याग कर बैकुंठ चले गए।

रामानंद सागर जिनके नाम में ही राम का संदेश बसा है राम- आंनद सागर अर्थात “प्रभु राम के आनंद से परिपूर्ण मानवता का असीम सागर” सोंचने वाली बात है कि 70 वर्ष की अवस्था में जब बाकी लोग सेवा निवृत्त होकर बाकी का जीवन बिस्तर पर गुज़ारने की योजना बनाते हैं उस जीवन की उस अवस्था में “सागर” साहब प्रभु राम का संदेश घर-घर पहुंचा रहे थे।

तो “रामानंद सागर” जी के जीवन से हमें ये प्रेरणा मिलती है कि “कभी भी उम्मीद नहीं छोड़नी और अभी बहुत देर नहीं हुई है…..क्योंकि जब एक चपरासी, एक दुकानदार और सफाई कर्मचारी एक महान व ऐतिहासिक धारावाहिक “रामायण” बना सकता है तो आप चाहें तो क्या नहीं कर सकते?

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