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मुगल-ए-आज़म फिल्म को लेकर के.आसिफ की दीवानगी का आलम

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किस्सा मुगल-ए-आज़म फिल्म से जुड़ा है। इस फिल्म में एक दृश्य है जिसमें अनारकली और सलीम एक-दूजे से मिलते हैं। उनके बीच कोई संवाद नहीं है। रोमांस है। और बैकग्राउंड में शास्त्रीय गायन चल रहा है। कहानी के मुताबिक उस वक्त तानसेन गायन कर रहे थे। के.आसिफ ये सोचकर परेशान थे कि इस दृश्य में तानसेन के स्तर की गायकी करने के लिए भला किस गायक को लिया जाना चाहिए। उन्होंने अपने मन की बात नौशाद साहब से कही। नौशाद साहब से उन्होंने पूछा,”किससे गायकी कराई जानी चाहिए।” नौशाद बोले,”कायदे से तो उन्हें ही करनी चाहिए जिन्हें आज के ज़माने का तानसेन कहा जाता है।” के.आसिफ ने पूछा,”कौन हैं वो?” “उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान। लेकिन वो फिल्मों के लिए गाते नहीं हैं।” नौशाद ने जवाब दिया। “आप उनसे वक्त लीजिए। मैं आपके साथ चलूंगा और उन्हें राज़ी करने की कोशिश करूंगा।” के.आसिफ ने कहा।

कुछ वक्त बाद नौशाद और के.आसिफ उस्ताद जी से मिलने पहुंचे। उस्ताद जी ने नौशाद साहब का स्वागत किया और उनके आने की वजह पूछी। नौशाद ने उन्हें बताया,”मुगल-ए-आज़म नाम की एक फिल्म बन रही है। बहुत बड़ी फिल्म है। इस फिल्म में तानसेन का एक गीत है। आप अपनी आवाज़ उस गीत में दे दीजिए। आपसे गुज़ारिश है कि तानसेन वाले गीत को आप गा दीजिए।” उस्ताद जी ने इन्कार करते हुए कहा,”भई मैं तो जलसों या संगीत सम्मेलनों में गाता हूं। ऐसी कोई महफिल हो तो मुझे ले चलिए। मैं आपके साथ बंबई चले चलूंगा। लेकिन फिल्मों में मैं नहीं गाता।” इस वक्त तक के.आसिफ से उस्ताद जी का परिचय नहीं हुआ था। के.आसिफ सिगरेट में कश लगा रहे थे। उस्ताद जी ने जैसे ही इन्कार किया, के.आसिफ बोल पड़े,”खां साहब। गाना तो आप ही गाएंगे।” के.आसिफ के इस अंदाज़ से उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान झुंझला गए। उन्होंने नौशाद साहब से पूछा,”ये कौन साहब हैं? ये किसे आप अपने साथ ले आए हैं?”

नौशाद ने बताया,”उस्ताद जी ये ही फिल्म के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर हैं।” उस्ताद जी बोले,” कोई भी हों। मैंने जब मना कर दिया कि मैं नहीं गाऊंगा तो फिर ये क्यों ज़बरदस्ती कर रहे हैं?” नौशाद कुछ बोलते इससे पहले ही के.आसिफ फिर से बोले,”गाना तो आप ही गाएंगे। चाहे जो कीमत ले लीजिए। लेकिन गाना आपसे ही गवाना है।” उस्ताद बड़े गु़लाम अली ख़ान हैरान थे। वो नौशाद की बाज़ू पकड़कर उन्हें बालकनी में ले गए और बोले,”मैं कुछ ऐसी बात बोल दूं इससे कि ये यहां से फौरन ही भाग जाए?” नौशाद बोले,”इससे मेरा नुकसान हो जाएगा।” “क्या नुकसान होगा?”, उस्ताद जी ने पूछा। नौशाद ने हाथ जोड़कर कहा,”आपके गाने से मुझे जो इज़्जत और रुतबा मिलेगा मैं उससे महरूम रह जाऊंगा। वैसे आप क्या बोलना चाहते थे इनसे?” उस्ताद जी बोले,”मैं इतनी कीमत मांगता कि ये सुनकर खुद ही भाग खड़ा होता।” इस पर नौशाद साहब ने कहा,”हुज़ूर ये तो आप बोल सकते हैं। ये आपका हक है। अपनी गायकी की कीमत आप खुद ही तय कीजिए।”

उस्ताद जी वापस कमरे में आए और के.आसिफ से बोले,”ठीक है जनाब। मैं आपकी फिल्म में गाऊंगा। लेकिन एक गाने के 25 हज़ार रुपए लूंगा।” नौशाद साहब ये सुनकर अपनेे कानों पर यकीन नहीं कर पाए। क्योंकि ये वो ज़माना था जब बड़े-बड़े प्लेबैक सिंगर पांच सौ से एक हज़ार रुपए ही चार्ज करते थे। नौशाद जी को लगा कि यकीनन अब तो के.आसिफ भी उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान से गवाने की अपनी ज़िद को साइड में रख देंगे। के.आसिफ ने उस्ताद जी की बात सुनकर सिगरेट में एक लंबा सा कश मारा। और फिर चुटकी बजाकर सिगरेट की राख झाड़ते बुए बोले,”बस खां साहब? अजी आपकी तो कोई कीमत ही नहीं है। आप तो अनमोल हैं। ठीक है। बात पक्की।” फिर के.आसिफ ने अपनी जेब से नोटों की एक गड्डी निकालकर उस्ताद जी के सामने रखी और बोले,”ये दस हज़ार रुपए एडवांस रखिए।” उस्ताद जी भी ये देखकर बहुत हैरान थे। वो धीमे से नौशाद से बोले,”ये तो कोई बड़ा कद्रदान है भई।”

ये था मुगल-ए-आज़म फिल्म को लेकर के.आसिफ की दीवानगी का आलम। ये था उनका जज़्बा। आज के.आसिफ की पुण्यतिथि है। 09 मार्च 1971 को के.आसिफ महज़ 48 साल की उम्र में ये दुनिया छोड़ गए थे।

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