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एक जीवन में वह तीन जीवन जीते हैं, वोल्गा से गंगा तक रचकर दुनिया से ओझल हो जाते हैं

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इस महान इंसान का जो नाम विख्यात है,फेसबुक उस नाम से रीच ही निगल लेता है, इसलिए अगर दिख जाए तो पढ़िए और बढ़ाइए. एक ज़िन्दगी में क्या क्या किया जा सकता है, यह केदारनाथ पांडे के जीवन से सीखा जा सकता है । वही केदारनाथ जो 9 अप्रैल 1893 में आजम गढ़ के पंदहा गांव में जन्मा,जो इस क़दर शरारती था कि उसकी शरारत से घर क्या,गांव हिलता था । जब एक रोज़ घी से भरा बर्तन उससे गिरा,तो उसने घर की दहलीज़ लांघी,घबराकर जो घर से भागा तो किसे पता था कि जो लड़का भागा है, वह समाज को उस घी का ऐसा सूद लौटाएगा की पीढ़ियों तक उसका नाम लिया जाएगा ।

केदारनाथ को सीखने का शौक था । कलकत्ता में पोस्टर्स से उसने बंगला सीखी । काशी,लाहौर और आगरा में अरबी फारसी सीखी । कौरवी,संस्कृत सीखी,भोजपुरी के महारथी थे ही । काशी में मां गंगा किनारे बुद्ध के नज़दीक गए । इतना पढ़ा कि बुद्ध ने उनपर अपनी छाप छोड़ दी और वहाँ वह बुद्धों के परसा मठ के उत्तराधिकारी बनकर रामोधर साधु कहलाए ।

देश आज़ादी के लिए जूझ रहा था,तो भला केदार इससे कैसे अछूते रहते । लड़े और जेल गए । करीब दो साल तक जेल में रहै और बुद्ध साहित्य का अध्ययन करते रहे, फिर छूटते ही श्रीलंका चले गए । वहां त्रिपिटिका चार्य की उपाधि अर्जित की । तिब्बत में बौद्ध साहित्य की हालत देख चिंतित होते हैं । उसे सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए गदहों और खच्चरों पर लादकर तमाम दुर्लभ पांडुलिपि,चित्र वगैरह लेकर भारत आते हैं और यहाँ बिहार की काशी प्रसाद शोध संस्थान और पटना संग्रहालय में संरक्षित करते हैं ।

अब देखिए केदारनाथ से रामोदर साधु बने इस विलक्षण प्रतिभा का मन दुनिया की और परते खोलने में लगता है । वह यूरोप,रूस,जापान,कोरिया की यात्राएँ करते हैं । का र्ल मा र्क्स का इतना प्रभाव पड़ता है कि वह भारतीय कम्यु निस्ट पा र्टी के सदस्य बनते हैं और किसानों के लिए लड़ते हुए जे ल जाते हैं । मार्क्स का इतना अध्ययन करते हैं कि लेनिन ग्राद में प्राच्य संस्थान में अध्यापक हो जाते हैं और कुछ समय बाद फिर भारत का रुख करते हैं ।

भारत आज़ाद हो चुका है मगर केदार से रामोदर बना और रामोदर से रा हुल बना यह विद्वान छटपटा रहा है । अपनी भूमि को सेवाओं देने के लिए एक तड़प है । भारत में उनके पहाड़ जैसे कामों पर लोग एक राय होते और उनके लिए कोई महत्वपूर्ण जगह सृजित करते कि अथा तो घुम क्कड़ जिज्ञासा का पितामह अपने पैरों को फिर मोड़ देता है, वह श्री लंका में एक विश्वविद्यालय के प्राचार्य बनकर वह अपनी समृद्ध विद्वता को दूसरों तक पहुँचाने लग जाते हैं ।

इस तरह एक जीवन में केदारनाथ, रामोदर साधु और रा हु ल सांकृत्यायन बनकर वह तीन जीवन जीते हैं, डेढ़ सौ से अधिक ग्रन्थ लिखते हैं और वोल्गा से गंगा तक रचकर दुनिया के सामने से ओझल हो जाते हैं ।

रा हु ल का आज जन्मदिन है । नमन इस महान आत्मा को और सीखिए की एक जीवन इतना भी छोटा नही की कुछ काम न किये जा सके…।

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