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सिरमौर : हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में पझौता के पालू गांव में करीब 300 साल पुरानी देवदार की सीढ़ी आज भी मौजूद है। पुराने जमाने में इस सीढ़ी का इस्तेमाल सुरक्षा के लिए किया जाता था। 1942 में हुए पझौता आंदोलन के दौरान भी इस तरह की सीढ़ियां सुरक्षा में बेहद कारगर साबित हुई थी।
लोगों ने इन सीढ़ियों के जरिए अपनी सुरक्षा की थी। लोगों का कहना है कि सफाई के दौरान इन सीढ़ियों के आस-पास से गोलियां भी बरामद हुई पालू गांव में एक पूर्व स्वतंत्रता सेनानी के घर आज भी यह सीढ़ी मौजूद है। गांव में खतरे के समय में खासकर बच्चे और महिलाओं को इस सीढ़ी के जरिए सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया जाता था और उसे सबसे महफूज स्थान माना जाता था।
सीढ़ी तक पहुंचने से पहले लकड़ी का एक मोटा दरवाजा लगाया जाता था जिसे खोलना भी कोई आसान काम नहीं था। दरवाजे को अंदर से एक मोटी लकड़ी के जरिए बन्द किया जाता था। खास बात यह भी है कि इस सीढ़ी को देवदार की सिर्फ एक लकड़ी से खुरच कर बनाया जाता था जो सालों साल तक खराब नहीं होती थी।
गांव में एक विशेष घर बनाया जाता था जहां इस सीढ़ी को लगाया जाता था। गांव मे जब भी डाकुओं का प्रवेश होता था तो लोग इस सीढ़ी का इतेमाल कर उस घर के सबसे ऊपर वाले हिस्से में चढ़ जाते थे, जहां पत्थरों का ढेर लगाया जाता था और उसके बाद सीढ़ी पर चढ़ने की कोशिश करने वालों पर या डाकूओं पर ये पत्थर बरसाए जाते थे। पहले के समय में यहां अक्सर डकैती ओर लूटपाट की घटनाए होती थीं।