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दिलीप कुमार अपने कैरियर की बेस्ट फिल्म की कहानी सुने बिना ही इस फिल्म में काम करने से कर दिया था मना

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जब बी.आर.चोपड़ा इस फिल्म का ऑफर लेकर दिलीप कुमार के पास गए तो उन्होंने बिना कहानी सुने ही इस फिल्म में काम करने से मना कर दिया था। तस्वीर देखकर आप समझ तो गए होंगे कि ये किस फिल्म की बात हो रही है। जी हां, आप सही हैं। ये नया दौर फिल्म की बात हो रही है। एक बहुत ही प्यारी और शानदार फिल्म। जिसे दिलीप कुमार की ज़बरदस्त अदाकारी ने कमाल बना दिया था। लेकिन दिलीप कुमार ने इस फिल्म में काम करने से मना क्यों किया था? वो भी बिना कहानी सुने ही? चलिए, जानते हैं।

बी.आर.चोपड़ा उन दिनों फिल्म इंडस्ट्री में बहुत ज़्यादा पुराने नहीं हुए थे। उनकी पहली फिल्म अफसाना ज़बरदस्त हिट रही थी। उसके बाद आई शोले एवरेज रही। लेकिन शोले के बाद आई चांदनी चौक व एक ही रास्ता ने भी बेहतरीन प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर किया था। एक दिन बी.आर.चोपड़ा श्री साउंड स्टूडियो में किसी काम से गए थे। वहां उनकी मुलाकात अख्तर मिर्ज़ा से हुई जो उस ज़माने के नामी फिल्म लेखक थे। अख्तर मिर्ज़ा ने इनसे पूछा कि अब कौन सी फिल्म आप बनाएंगे? जवाब में बी.आर.चोपड़ा ने कहा कि फिलहाल तो मेरे पास कोई कहानी नहीं है। मुझे अभी नहीं पता कि मैं अब किस फिल्म को बनाऊंगा।

तब अख्तर मिर्ज़ा ने बी.आर.चोपड़ा को नया दौर की कहानी के बारे में बताया। अख्तर मिर्ज़ा ने ही वो कहानी लिखी थी। बी.आर.चोपड़ा के कहने पर अख्तर मिर्ज़ा ने उन्हें नया दौर की कहानी सुनाई। बी.आर.चोपड़ा को वो कहानी बहुत पसंद आई। उन्होंने अख्तर मिर्ज़ा से कहा कि ये फिल्म मैं बनाने जा रहा हूं। किसी तरह ये खबर महबूब खान के पास पहुंच गई। एक दिन महबूब खान बी.आर.चोपड़ा के पास आए और बोले,”ऐ चोपड़ा। तुम्हारी एक ही रास्ता चल गई। अच्छी बात है। लेकिन वो इत्तेफाक से चली थी। अब तुम ये तांगे वाली फिल्म बना रहे हो। ये तो बिल्कुल भी नहीं चलेगी। मैं तुमसे यही कहने आया था कि तुम ये फिल्म मत बनाओ।”

बी.आर.चोपड़ा ने जवाब दिया कि मुझे ये कहानी बहुत अच्छी लगी है। अब अगर मैं इस पर फिल्म ना बनाऊं तो ये तो बहुत नाइंसाफी होगी। इसलिए मैं तो ये फिल्म बनाऊंगा। बी.आर.चोपड़ा शुरू से ही चाहते थे कि इस फिल्म में दिलीप कुमार काम करें। कुछ दिन बाद जब वो दिलीप कुमार के पास नया दौर का ऑफर लेकर पहुंचे तो उन्होंने बिना सुने ही इनसे कह दिया कि मैं इस फिल्म में काम नहीं करूंगा। इस तांगे वाले की स्टोरी के बारे में मुझसे महबूब साहब ने बताया था कि इसमें कोई दम नहीं है।

बी.आर.चोपड़ा निराश होकर दिलीप कुमार के घर से लौट आए। वो पहुंचे दादामुनि अशोक कुमार के पास। उन्होंने दादामुनि को नया दौर में काम करने का ऑफर दिया। साथ ही ये भी बता दिया कि वो चाहते थे कि दिलीप कुमार इस फिल्म में काम करें। लेकिन उन्होंने इन्कार कर दिया है। दादामुनि अशोक कुमार ने नया दौर की पूरी कहानी सुनी और वो बी.आर.चोपड़ा से बोले,”ये कहानी बहुत अच्छी है। और इस कहानी पर फिल्म ज़रूर बननी चाहिए। लेकिन मैं इस फिल्म में काम नहीं करूंगा। क्योंकि मैं तांगे वाला लगूंगा ही नहीं। मैं दिलीप कुमार से बात करता हूं। वो ही इस फिल्म के लिए सही रहेगा।”

अगले दिन बी.आर.चोपड़ा के घर दिलीप कुमार का फोन आया। उन्होंने बी.आर.चोपड़ा को कहानी के साथ अपने घर आने को कहा। बी.आर.चोपड़ा लेखक अख्तर मिर्ज़ा व अपनी पत्नी को साथ लेकर दिलीप कुमार के पास पहुंच गए। फिर दिलीप कुमार ने कहानी सुननी शुरू की। और जब कहानी खत्म हुई तो वो उठे और बी.आर.चोपड़ा की पत्नी से बोले,”भाभी जी। क्या आपके पास पांच हज़ार रुपए हैं?” वो हैरानी से दिलीप कुमार को देखने लगी। उन्हें हैरान देखकर दिलीप बोले,”अरे। साइनिंग अमाउंट नहीं दोगे क्या?”

तो साथियों, यूं इस तरह दिलीप कुमार नया दौर फिल्म का हिस्सा बने। अगर दिलीप कुमार महबूब खान की बात मानकर ये फिल्म ठुकरा देते तो वो लगातार तीसरी दफा फिल्मफेयर अवॉर्ड ना जीत पाते। जी हां, नया दौर के लिए दिलीप कुमार को फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवॉर्ड मिला था। नया दौर 1957 की दूसरी सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन गई थी। पहले नंबर पर महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया थी। और तीसरे नंबर पर थी गुरूदत्त साहब की प्यासा।

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