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इस तस्वीर में जापानी सैनिक एक शिशु को बंदूक की नोक पर टिकाए हुए नजर आ रहे हैं क्योंकि इसे एक सम्मान के रूप में देखा जाता था। बंदूक की नोक पर लगा खंजर बच्चे की कमर के आरपार है। 1937 का नानकिंग नरसंहार इतिहास का एक बहुत ही काला पन्ना है, इतना काला क्योंकि जापान ने अपने बर्बर कार्यों के लिए कभी माफी नहीं मांगी।
इस फोटो में दूसरा सिपाही आम भाव के साथ मरे हुए बच्चे की और देख रहा है, जैसे ये आम कार्य हो। बंदूक पकड़े हुए सिपाही बच्चे को इधर-उधर घुमाने को तैयार है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि इनमें एक बच्चे के अँदर छुरा घोंपने की हिम्मत कैसे हो सकती है!
यह एक मनुष्य है! वो भी एक बच्चा! बच्चे मानवीय मासूमियत के प्रतीक होते हैं। फिर भी इन सैनिकों ने बच्चे को मारने में आनंद और गर्व का अनुभव किया, इससे पहले कि उसे बड़ा होने का मौका मिले, उसके पूरे जीवन को नष्ट कर दिया।कभी-कभी मुझे इस तस्वीर को देख पछतावा होता है। यह अभी भी हमारे काले अतीत की याद दिलाता है जिसे दोबारा दोहराया नहीं जाना चाहिए!