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आदि शंकराचार्य का दर्शन और अद्वैतवाद

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आदि शंकराचार्य भारतीय इतिहास व संस्कृति के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति है उनके दर्शन की व्यवहारिकता आज की दौर में भी कायम है । उनका दर्शन वेदांत के नाम से जाना जाता है जिसे अद्वैतवाद बोलते है ।

दरअसल वेदों में सब तरह का ज्ञान था वेद पद्य यानी कविता के रूप में थे जिसके कारण इसकी व्याख्या जरूरी थी वेदों में दार्शनिक पक्ष को बाद में उपनिषदों के रूप में लिखा गया जो गुरु और शिष्य के वार्तालाप के रूप में है लेकिन अभी भी इसको व्यवस्थित करने का काम वादरायण ने किया और ब्रह्मसूत्र की रचना की

● लेकिन ये गहरे अर्थों से युक्त थी तो इसके स्पष्टीकरण की जरूरत थी ।

● यह काम 5 लोगो ने किया जिसमें शंकराचार्य सबके प्रमुख है उनका दर्शन अद्वैत वेदांत कहलाता है ।

अद्वैत शब्द का रहस्य

● पहले इसको समझिये

1,2,3,4,5 आदि ये सभी संख्याएं 1 के सापेक्ष है जैसे 2 ,3,4 सभी 1+1, 1+1+1 ऐसे ही

● ऐसे में ब्रह्म को 1 बोलने पर 2 , 3 और 4 जैसी चीजें भी उसके सापेक्ष हो जायेगा

और ब्रह्म तो किसी के सापेक्ष हो नही सकता है वह निरपेक्ष है ऐसे में ब्रह्म को एक ना बोलकर अद्वैत बोला गया है ।

सत –

जिसको कभी भी नकारा ना जा सके ?

शंकराचार्य ने ऐसे सत के 3 स्तर बताए है ।

प्रतिभासिक सत

● यह व्यक्तिगत स्तर सत है जैसे किसी व्यक्ति को रात में रस्सी को सांप समझने लेना, या किसी वर्णान्ध व्यक्ति को रंग पहचान में भूल, नए प्रेमी जोड़ों का भविष्य को लेकर कल्पना

● इस स्तर पर सभी तरह का ज्ञान कुछ समय के लिए ही सत होता

व्यवहारिक सत

● इस स्तर पर ज्ञान जगत के स्तर पर सत प्रतीत होता है। ,जैसे हमारे आसपास रंगों से भरी दुनियां , कॉलेज के चौथे वर्ष में खत्म होते प्रेमी -प्रेमिकाओ के सबंध , रस्सी को रस्सी समझना

● इस स्तर का ज्ञान थोड़े अधिक समय तक स्थायी होता है

परमार्थिक सत

● यह वह ज्ञान है जिसका कभी किसी भी समय खंडन नही हो सकता है इस हिसाब से ब्रह्म ही एकमात्र सत है।

● हालाँकि शंकराचार्य ने इसको कॉस्मोलॉजी के स्तर पर बताया है लेकिन हम इसको अपनी समझ से एक उदाहरण से और समझते है।

एक उदाहरण

● ये दुनियां हम सब को रंगीन दिखती है हरा ,नीला ,पीला आदि तो यह तो हुआ व्यवहारिक सत जो जगत के स्तर पर सत है जिसको नकारा नही जा सकता

● लेकिन निजी आँखों का दोष हो तो किसी व्यक्तिगत स्तर पर कोई रंग ना भी दिखे या कुछ का कुछ और ही दिखे तो यह हो गया प्रतिभासिक स्तर का सत जो बस निश्चित व्यक्तियों के लिए ही सत है ।

● क्या आप को पता है कि रंग तो असल मे होते ही नही यह तो बस दिमाग की करतूत है सारा खेल प्रकाश का है

यह पारमार्थिक स्तर का सत हो गया है

ये देखिए

(शंकराचार्य के दर्शन को आसानी से समझने के लिए ये उदाहरण लिया )

ठीक है ब्रह्म सभी काल मे सत है लेकिन फिर ब्रह्म क्या है ?

●पारमार्थिक दृष्टिकोण से शंकर बोलते है ब्रह्मसत्य जगत मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः

● यानि ब्रह्म ही एक मात्र सत है जगत मिथ्या है जीव मूलतः ब्रह्म ही है,ब्रह्म से अलग नही यहां शंकर बोलते है के ब्रह्म के 2 रूप है – निर्गुण

● उपनिषदों में इसे पर ब्रह्म कहा है यह गुण रहित है मतलब beyond quality ,उसका कोई आकर नही हैं क्योंकि आकार होते ही वह सीमा में बंध जाएगा- सगुण

● उपनिषद में इसको अपर ब्रह्म बोला है जब ब्रह्म माया के उपाधि से युक्त होता है तब वह ईश्वर का रूप लेता है दोनो ही ब्रह्म अलग नही बल्कि एक के ही दो रूप है फोटो से समझिये 3 स्तर पर सत है दूसरे पर सगुण ब्रह्म यही ईश्वर है ( ईश्वर यानि दुनिया बनाने ,चलाने ,खत्म करने वाला)

● ब्रह्म सबसे ऊपर

●साथ ही ब्रह्म क्या है ?

इसके लिए उन्होंने कहा कि हमारी एक निश्चित सीमा है ऐसे में ब्रह्म को समझना हमारी क्षमता से बाहर है ऐसे में ब्रह्म क्या नही है यह जानना आसान है

उदाहरण

● आप के पास 4 चीजे है a ,b ,c और जका

● आप ने जका कभी नही देखा क्या है कैसा होता है ऐसे में आप जका तक कैसे पहुँचेगे ?

● आप a को देखेंगे बोलेगे यह नही b को देखा यह नही c को देखा नही तो बचा हुआ ही जका इस प्रक्रिया को

नेति नेति बोलते है यानी ना ना

( जका बस एक कोई काल्पनिक शब्द )

अब माया क्या है जिसके कारण ब्रह्म ईश्वर होता है

● ब्रह्म ईश्वर की वह शक्ति है जिससे जगत का निर्माण करता है लेकिन यह सृष्टि ना तो वास्तविक है ना नित्य स्वरूप

● तस्वीर में गोले को ब्रह्म मानिए उससे जगत बना है लेकिन यह जगत

और सरल उदाहरण

●किसी फिल्म का हीरो किसी फिल्म में पुलिस बनता है किसी मे चोर किसी मे कुछ और ऐसे में हीरो को ब्रह्म मानिए और उसके द्वारा मिभाये जाने वाले किरदारों को माया

● हम लोग

फ़िल्म के हीरो के किरदारों के आधार पर हीरो को पसंद नापसंद करने लगते जैसे रजनीकान्त आदि

ये क्या है ? माया यानि अज्ञानता

● माया दो काम करती है ब्रह्म को ढक देती है जैसे बादल आसमान को और उसपर जगत को बिखेर देती है

● जैसे फ़िल्म में हीरो का अभिनय से प्रभावित होकर हम विवेक खो देते है यानी आवरण चढ़ गया फिर हम उस अभिनेता के वास्तविक चरित्र को लेकर कल्पनाओं में खो जाते है यानी जगत रच लेते है ।

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