इस ख़बर को शेयर करें:
नियोग प्रथा क्या है?
नियोग, मनुस्मृति में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए। इसी विधि द्वारा महाभारत में वेद व्यास के नियोग से अम्बिका तथा अम्बालिका को क्रमशः धृतराष्ट्र तथा पाण्डु उत्पन्न हुये थे।
नियोग का अर्थ – वेदादि शास्त्रों में पति द्वारा एक विकल्प न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा नियमबद्ध उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। हर धर्म में कुछ बाते ऑप्शनल (Optional) होती है जैसे हिन्दू धर्म में नियोग जो किसी मज़बूरी या किसी हालात के तहत किया जाता है,नियोग मज़बूरी वश किया जाता है, हर धर्म में प्रावधान होता है के अगर इस तरह की मज़बूरी हो गयी तो क्या किया जाये इसलिये उसका एक विकल्प रास्ता बता दिया जाता है.इसका ये मतलब नहीं होता कि उससे हर मनुष्य अपने फायदे के अनुसार उपयोग करने लगे,अगर उस ऑप्शनल धार्मिक प्रावधान का कोई गलत उपयोग करता है तो वो पाप का भागी होता है.
नियोग प्रथा के नियम हैं:-
- कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।
- नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।
- इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।
- नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।
- इस प्रथा का दुरूपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल तीन बार नियोग का पालन कर सकता है।
- इस कर्म को धर्म का पालन समझा जायेगा और इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। नियुक्त पुरुष धर्म और भगवान के नाम पर यह कर्म करेगा और पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।
- नियोग में शरीर पर घी का लेप लगा देते हैं ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष के मन में वासना जागृत न हो।
- नियोग का केवल और केवल एक ही प्रयोजन हैं असक्षम व्यक्ति के लिए संतान उतपन्न करने के लिए, विधवा अथवा जिसका पति उपलब्ध न हो उसे संतान उत्पन्न करने के लिए जिससे उसका जीवन सुचारु प्रकार से व्यतीत हो सके, समाज में मुक्त सम्बन्ध पर लगाम लगाकर, उसे नियम बद्ध कर व्यभिचार को बढ़ने से रोकने के लिए।
जैसे बिना विवाहितों का व्याभिचार होता है वैसे बिना नियुक्तों का व्याभिचार कहाता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि जैसे नियम से विवाह होने पर व्याभिचार न कहावेगा तो नियमपूर्वक नियोग होने से व्याभिचार न कहावेगा ।व्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं है और समाज के लिए हानिकारक है। परन्तु नियोग विधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हित में है।
महर्षि दयानन्द जी लिखते हैं –“इसी प्रकार से विधवा और पुरूष तुम दोनो आपत्काल में धर्म करके सन्तान उत्पत्ति करो और उत्तम-उत्तम व्यवहारों को सिद्ध करते जाओ। गर्भ हत्या या व्याभिचार कभी मत करो। किन्तु नियोग ही कर लो। यही व्यवस्था सबसे उत्तम है।”
- किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
- व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
- भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
- पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छा अनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154
- राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69
- वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
- मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
- राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52
- आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
- योग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
नियोग की क्यों आवश्यकता पड़ी
हिन्दू धर्म में विवाहित महिला किसी भी वश दूसरा विवाह नहीं कर सकती है,चाहे उस महिला का पति कैसा भी हो या मर गया हो,दूसरे शब्द में ये कह सकते हैं के हिन्दू धर्म में तलाक़ का कोई प्रावधान नहीं है या विधवा होने पे दूसरा विवाह करने का कोई प्रावधान नहीं है.
अगर पति में कोई बीमारी है और संतान पैदा नहीं कर सकता तो नियोग के अनुसार उसकी पत्नी उस के सामने किसी के साथ भी सम्भोग कर सकती है ! नियोग इललीगल सेक्स को आज्ञा दे सकती है मगर दूसरा विवाह का आज्ञा नहीं.अगर पति मर गया है तो नियोग कर के एक नाजायज औलाद पैदा कर सकती है,नाजायज़ इसलिए बोल रहा हूँ के जब शादी नहीं हुई तो नाजायज़ ही हुआ ना,कोई उस महिला के साथ ऐश कर सकता है उससे सम्भोग कर सकता है लेकिन उसी विधवा महिला से विवाह कर के उसको समाज में इज़्ज़त नहीं दे सकता है!
नियोग या हिन्दू धर्म एक विपत्ति महिला से सम्भोग करने की आज्ञा दे सकता है लेकिन शुभ विवाह का आज्ञा नहीं दे सकता है!ये हिन्दू महिला का दुरुपयोग है और धर्म के आड़ में उसका बलात्कार है!ये प्रथा है जिसको मनुष्य अपने फायदे के लिए बनाया है!ये प्रथा होनी चाहिए के विवाहित महिला कभी भी दूसरा विवाह नहीं कर सकती मगर अपने पति से पीड़ित या विधवा हो वह दूसरा विवाह कर सकती है!
धार्मिक दृष्टिकोण से देखा जाये तो नियोग एक अच्छा प्रावधान है जिस के द्वारा एक महिला संतान उत्पन्न कर सकती है,केवल संतान की प्राप्ति के लिए नियोग कर सकती,संतान के प्राप्ति के अतरिक्त सम्भोग करना पाप होगा,नियोग का सहारा ले कर जीवन भर ठोका ठोकी का प्रावधान नहीं है,ऐसा करना धार्मिक पाप होगा!
यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण राजदंड प्रायश्चित् के भागी होते हैं मतलब ये हुआ के जो नियोग के आदेश के विपरीत कार्य करेगा वह पाप का भागी होगा। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए।जरा सोचो ये सम्मानित ब्यक्ति कौन होगा??सम्मानित ब्यक्ति ससुर,जेठ,देवर,कुलीन ब्राह्मण हो सकते हैं !
इसी विधि के द्वारा पांडु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री आदि ने नियोग किया । महाभारत में वेद व्यास विचित्रवीर्य व चित्रांगद के मर जाने के पश्चात् उन अपने भाइयों की स्त्रियों से नियोग करके अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर की उत्पत्ति की थी। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं के महाभारत की पूरी टीम नियोग से सम्बंधित हैं! नियोग के द्वारा किसी को संतान मिला तो किसी विधवा को पति और सम्भोग सुख की प्राप्ति हुई!
वे सभी कर्म जिनको सामान्य स्थितियों में करना अच्छा नहीं कहा जाता परन्तु जिनको आपदा अथवा संकट में करना पाप कर्म नहीं कहलाता हैं। जैसे शल्य चिकित्सक द्वारा प्राण रक्षा के लिए मनुष्य के शरीर पर चाकू चलाना, देश कि सीमा पर शत्रु के प्राणों का हरण करना, जंगल में नरभक्षी शेर का शिकार करना, सुनसान द्वीप पर प्राण रक्षा के लिये माँस आदि ग्रहण करना आदि।बात कुछ समझ में आयी या नहीं आपदा अवस्था में मांस भी खाया जाता है चाहे वह कुत्ते का मांस हो या गाय का !