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शंकराचार्य विवाद क्या है?

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भारत में ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य जो कि भारत के एक महान संत थे और उन्हें भगवान शिव का अवतार माना गया है ने भारतीय सनातन परंपरा के विकास और हिंदू धर्म के प्रचार प्रसार के लिए भारत के चार कोनों पर चार शंकराचार्य मठो का निर्माण किया था इसी के साथ-साथ शंकराचार्य जी ने देश में 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना भी की थी । शंकराचार्य के दर्शन को अद्वैत वेदांत का दर्शन कहा जाता है। उन्होंने ही इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि ‘ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया। ‘ आत्मा की गति मोक्ष में है।… इसका अर्थ यह है कि वे निराकार ब्रह्म को ही सत्य मानकर उन्हीं की उपासना करते थे। 

वर्तमान में जो चार मठ स्थित हैं उनमें पूर्व में गोवर्धन मठ जो की जगन्नाथ पुरी में है, पश्चिम में शारदा मठ जो की द्वारिका पुरी में है, उत्तर में ज्योर्तिमठ जो की उत्तराखंड में है और दक्षिण में श्रृंगेरी मठ है ।आज के दौर में जो शंकराचार्य है उन्हें भारत में हिंदू धर्म के सबसे बड़े नेता के रूप में माना जाता है शंकराचार्य ही हिंदू धर्म के श्रेष्ठ पुजारी होते हैं और यही संत समाज की दिशा और दशा को तय करते हैं। समय के साथ-साथ शंकराचार्य ने भारत में हिंदू धर्म के योगदान में बहुत योगदान दिया है इस बात से कभी भी इनकार नहीं किया जा सकता है।

लेकिन एक विवाद अब खड़ा हो गया है जिसमें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और स्वामी निश्चलानंद सरस्वती के द्वारा राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बारे में कई टिप्पणियां सामने आई है।इन दोनों शंकराचार्य ने राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से दूरी बनाने की घोषणा की है। इस घोषणा के बाद से ही यह दोनों संत पूरे देश में चर्चा का विषय बने हुए हैं।

सवाल यह है कि आखिर इन संतों की भाजपा से या नरेंद्र मोदी से क्या समस्या है । दिक्कत यहां पर यह है कि आज की जो राजनीति है वह धर्म और राजनीति दोनों का घाल मेल बन गई है । जबकि राजनीति और धर्म अलग-अलग दो विषय है। शंकराचार्य जो की धार्मिक गुरु और नेता है इनका मानना है कि भारत में कोई भी धार्मिक कार्य करने का अधिकार सिर्फ इन्हीं के पास होना चाहिए जबकि नरेंद्र मोदी राम मंदिर में मूर्ति प्रतिष्ठा के लिए आगे आए हुए हैं।

प्रश्न ये है की क्या ये विवाद सही है,शंकराचार्य का इस तरह सार्वजनिक विवाद खड़ा करना उचित है,क्या इनको वास्तव में राममंदिर प्राण प्रतिष्ठा का अवसर दिया जाना चाहिए था।इसके लिए इन शंकराचार्य के कार्य का वर्तमान मूल्यांकन किया जाना आवश्यक है। सवाल यह है कि इन शंकराचार्य का वर्तमान में क्या योगदान है तो आप यह देखेंगे कि पढ़े-लिखे लोग भी भारत के चारों शंकराचार्य का नाम नहीं बता पाएंगे अर्थात यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि धीरे-धीरे इन शंकराचार्य का महत्व घटता गया है और इन्होंने अपने आप को सीमित कर लिया है इनकी जन भागीदारी में कोई भूमिका नहीं है ।

भारत के सामान्य जनमानस के साथ इनका कोई जुड़ाव नहीं है। यह एक प्रतीक बनकर रह गए हैं और यह केवल नाम मात्र के शंकराचार्य रह गए हैं। भारत में जितने भी दंगे फसाद हुए हैं जहां पर हिंदुओं का शोषण या दमन हुआ है वहां पर इनका कोई आधिकारिक बयान नहीं आता है और ना ही इन लोगों ने कभी कोई आंदोलन किया है या भारत सरकार पर कभी दबाव बनाया है की हिंदुओ पर अत्याचार न हो,हिंदुओ का धर्मंतांतरण न हो,लव जेहाद पर रोक लगे।

हिंदु धर्म की रक्षा मे इनका योगदान शून्य है इन्हे कोई नही पहचानता,विपक्ष के रामचरितमानस तथा सनातन का अपमान एवं सनातन को डेंगू मलेरिया कहने वाले धूर्तो को इन्होने एक शब्द नही कहा , इस पद की योग्यता अब गद्दी तक सीमित है. इन्हें डर लगने लगा है कि मोदी हमसे आगे कैसे निकल रहे हैं। आज यह जो विवाद खड़ा किया जा रहा है शंकराचार्य के द्वारा यह केवल और केवल उनकी अपनी डर की वजह से हो रहा है इन्हें डर लग रहा है कि कहीं ऐसा ना हो कि हमारा महत्व कम हो जाए यह हमारी पदवी छीन ली जाए।

जब एक शंकराचार्यको जयललिताने एक फर्जी केसमें गिरफ्तार कर दिया था और उसको कारावासमें ठोस दिया था तब बाकीके तीन शंकराचार्योंने क्या किया था? कुछ नहीं. हिंदुओं पर बारबार अत्याचार होता है तब ये चारों शंकराचार्य क्या करते है? कुछ नहीं. फिर जब राम मंदिर पर ही वे क्यूँ वाचाल बनते है? ये शंकराचार्य कौन होते हैँ? शंकराचार्य ने आजतक धर्माणतरण, लवजिहाद, कश्मीरी हिन्दुओं के नरसंहार पर कुछ कहा है? 60 सालों से राममंदिर निर्माण के समर्थन में बोला है क्या?

पहले के शंकराचार्य जी सनातन धर्म का प्रचार प्रसार के लिए जगह जगह जाकर धर्म का ज्ञान देते थे,अब ये लोग अपनी ठाठ बाट देखते हैं,कभी निकलते नहीं है।आलम ये है की कोई भी इनका नाम तक नहीं जानता।धर्म के नाम पर इनका कोई योगदान नहीं है।अब तो ये भी इंडी गठबंधन से प्रभावित हो गए हैं, ऐसा लगता है। करोड़ों हिंदूओं के भावनाओं का तो मान रखना चाहिए। प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं आकर सनातन और हिंदूओं का क्या भला करना चाहते हैं? वर्तमान में ये हिंदुओं के नहीं मठों के पीठाधीश हैं और आज के हिंदुओं के उत्थान के लिए इनका कोई योगदान नहीं है।

महान आद्य गुरु शंकराचार्य जी ने जो सनातन का कार्य किया था उसका ये एक प्रतिशत भी नहीं कर रहे हैं। परंपरा के नाम पर कुंभ मेले में ही इनकी शाही उपस्थिति होती है। इनको अपने ठाठ बाट की ही परवाह है। ये मठों से निकल कर सनातनियों को कोई मार्गदर्शन नहीं दे रहे हैं। राम मंदिर निर्माण में इनका योगदान शून्य है। वैसे भी गर्म गृह में इन चारों के बैठने के लिए सिंघासन लगाने की जगह नहीं है। 3 साल पहले भूमिपूजन के समय भी द्वारका पीठ के शंकराचार्य ने मुहूर्त को गलत बताकर विरोध और बहिष्कार किया था। ये कई कांग्रेसी नेताओं के गुरु होने की वजह से मुहूर्त के विरोध-बहिष्कार को मुद्दा बनाकर मीडिया में चर्चित रखा गया था।

आज इन शंकराचार्यों की महत्ता है भी कितनी?कितना योगदान देते हैं ये शंकराचार्य हिंदुओं के उत्थान के लिए ?सनातन धर्म के लिए स्टालिन और डी।राजा जैसे या स्वामी मौर्य या दिग्विजय सिंह जो अनाप शनाप बोलते हैं तब इनके मुंह क्यों नहीं खुलते ?आज मोदी के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में उनकी खुद की प्रतिष्ठा दाव पर लग रही है। ऐसा क्यों?हिंदू धर्म के लिए क्या किया है इन लोगों ने ।

मुलायमसिंह ने कारसेवकों पर गोलियां चली तब क्यों नहीं बोले ? गोधरा काण्ड हुआ तब भी कुछ नहीं बोले तो आज क्यों इतना बुरा लग रहा है ? धर्माधिकारियों को ये पक्षपात शोभा नहीं देता। इनकी गरिमा के अनुकूल नही है ये बात। इतने ही श्रेष्ठ बनने का गौरव लेना है तो फिर ये भी जवाब दें की जब सुप्रीम कोर्ट ने राम लला के होने का प्रमाण और जन्मभूमी उसी स्थान पे होने का प्रमाण और गवाही मांगी थी तब कहा थे ये सभी शंकराचार्य? तब उस समय केवल स्वामी रामभद्राचार्य की क्यों अकेले गवाही देने गए? किसी और ने साथ देने जाने की जरूरत क्यों नही समझी?

आजकल के ये महान शंकराचार्य राजा महाराजाओं की तरह मठ में बैठ कर सेवा कराते हैं और वैभवशाली जीवन जीते हैं। समाज में क्या है रहा है ये इन्हें नहीं पता। क्या कभी इन्होंने हिन्दू समाज को एकसूत्र में बाँधने की चेष्टा की?? नहीं की। राममन्दिर बनने में इन शंकराचार्यों का क्या सहयोग है जो ये लोग प्राण प्रतिष्ठा करेंगे। कहां आदिशंकराचार्य जैसा महान व्यक्तित्व और कहाँ ये चार।

ये लोग उन के साथ खड़े है जो राम मंदिर के विरोध में खड़े रहे । विदेश मे छोड़ो भारत में भी 5%लोग भी इनका नाम नही जानते है । केवल अपनी सत्ता ही चलाना जानते है । इंदिरा गांधी ने साधु संतो पर गोली चलवाई।आज उसी कांग्रेस के साथ खड़े है। इनको इस बात की खुशी नही है कि इतने सालों बाद भगवान श्री राम के नूतन विग्रह का समारोह हो रहा है । नही जाना है तो राजनीति ना करो । वर्तमान शंकराचार्यो के अन्दर द्वेष, जलन, क्षोभ देखकर दुख पहुँचता है।

स्वर्गीय स्वरूपानंद सरस्वती जिनके शिष्य अविमुक्तेस्वरा नन्द हैं, जबर्दस्त कोन्ग्रेसी हैं। इसी तरह सभी शंकराचार्य राजनीतिक हो चुके है, इनके लिये धर्म कर्म और धर्म प्रसार रक्षा मात्र दिखावा रह गया है। अब राजनीति के नियमों के अनुसार जो हो रहा है वो बिल्कुल ठीक है। राजनीति और धर्म एक वर्णसंकर विचारधारा उत्पन्न करती है जिसका परिणाम आज सबके समक्ष है।

हमे किसी पे भरोसा नही है ना नेताओं पे ना संतो पे हमे अपने संविधान पे भरोसा है,संविधान कहता है की योग्यता किसी की जागीर नही है,जो योग्य होगा वो उच्च पद पे आसिन होगा। शंकराचार्य जैसे पद का चुनाव जनता द्वारा किया जाना चाहिए,ये तो वैसे ही है जैसे जज मिले जज को चुन लेते है,नेता अपने बेटे,बेटी,पोता पोती को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर देते है।शंकराचार्य पद की योग्यता निर्धारित होनी चाहिए और इसका चुनाव होना चाहिए।

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