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आइये जानते हैं आईवीएफ तकनीक क्या है। ‘इन विट्रो फर्टिलाइजेशन’ यानि आईवीएफ तकनीक के बारे में शायद आप थोड़ी जानकारी रखते हों और इस तकनीक के बारे में और ज़्यादा जानकारी लेने की जरुरत महसूस करते हों। ऐसे में क्यों ना आज, हम इसी तकनीक के बारे में बात करें कि आईवीएफ क्या है, इसका क्या अर्थ है और ये किस तरह कार्य करती है। तो चलिए, आज इस आईवीएफ तकनीक को करीब से जानते हैं।
आईवीएफ तकनीक क्या है?
आईवीएफ तकनीक एक ऐसी तकनीक है जो ऐसे दम्पतियों की मदद करती है जिनके किसी कारणवश संतान नहीं होती है। इस फर्टिलिटी तकनीक के ज़रिये महिला के एग और पुरुष के स्पर्म को शरीर के बाहर फर्टिलाइज किया जाता है। महिला के शरीर के बाहर होने वाली ये प्रक्रिया लैब के अंदर की जाती है।
निषेचन की इस तकनीक में ‘इन विट्रो’ का अर्थ है- ‘इन ग्लास’ यानी ग्लास के अंदर। ये फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया लैब के अंदर एक ग्लास पेट्री डिश में की जाती है। इस प्रक्रिया के बाद बने एम्ब्र्यो यानी भ्रूण को माता के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है ताकि वह विकसित होकर शिशु का आकार ले सके।
आईवीएफ की प्रक्रिया पूरी होने में दो से तीन सप्ताह का समय लगता है जिसमें डॉक्टर की सलाह, जांच, रिपोर्ट की दोबारा जांच, स्टिम्युलेशन, एग और स्पर्म्स का संग्रह और आखिर में निषेचन के बाद भ्रूण का गर्भ में प्रत्यारोपण शामिल है। इस प्रक्रिया की सफलता-असफलता का पता अगले 14 दिनों में ब्लड टेस्ट/प्रेगनेंसी टेस्ट के बाद लगता है। आइये अब आईवीएफ तकनीक की विभिन्न प्रक्रियाओं के बारे में जानते हैं-
आईसीएसआई (ICSI)
जिन मामलों में पुरुष में स्पर्म्स की संख्या कम होती है, वहां आईवीएफ तकनीक ज़्यादा कारगर साबित नहीं हो पाती है। ऐसे में आईसीएसआई (इंट्रासिस्टोप्लाज़्मिक स्पर्म इन्जेक्शन) प्रक्रिया प्रभावी होती है जिसमें फर्टिलाइजेशन में मदद करने के लिए एग को इकट्ठा किया जाता है और हर मैच्योर एग के केंद्र में एक स्पर्म को इंजेक्ट कर दिया जाता है।
एग का संग्रह करने के पहले और बाद में ये प्रक्रिया भी आईवीएफ की तरह ही काम करती है। इस तकनीक में फर्क बस इतना है कि इसमें एक माइक्रोस्कोप मशीन के ज़रिये अच्छी गुणवत्ता वाले स्पर्म्स का चयन किया जाता है और एग और स्पर्म को एक साथ रखने की बजाए, अण्डों को निषेचित करने के लिए लैब में माइक्रो-मैनिपुलेशन तकनीक इस्तेमाल की जाती हैं।
आईएमएसआई (IMSI)
आईएमएसआई (इंट्रासिस्टोप्लाज़्मिक मॉर्फोलोजिकल सेलेक्टेड स्पर्म इंजेक्शन) की मदद से स्पर्म की इमेज को 6600 गुना बढ़ाकर देखा जा सकता है इसलिए इस तकनीक के ज़रिये ख़राब स्थितियों में भी सफलता की दर काफी बढ़ जाती है। ऐसा माना जाता है कि आईवीएफ और आईसीएसआई में असफल होने के बाद ये प्रक्रिया ज़्यादा फायदेमन्द रहती है।
आईयूआई (IUI)
आईयूआई का अर्थ ‘इंट्रायूटेरिन इनसेमिनेशन’ है। इस गर्भाधान उपचार में पहले से तैयार स्पर्म को, अण्डोत्सर्ग के समय गर्भ में इंजेक्ट कर दिया जाता है। इससे पहले अंडे के उत्पादन और अण्डोत्सर्ग को उत्तेजित करने और गर्भ में भ्रूण प्राप्त करने के लिए प्रजनन दवाइयां लेने की जरुरत होती है।
ईएसए/टीईएसई (ESA/TESE)
इस प्रक्रिया के ज़रिये टेस्टिकल्स यानी वृषण से स्पर्म के सैम्पल्स प्राप्त किये जाते हैं। ये प्रक्रिया उन मामलों में उपयुक्त होती है जिनमें वीर्य में स्पर्म कम या ना के बराबर होते हैं।
माइक्रो टीईएसई
इस तकनीक का इस्तेमाल एजोस्पर्मिया से पीड़ित पुरुषों के लिए किया जाता है। इसमें अत्यंत सूक्ष्म सर्जरी के ज़रिये स्पर्म प्राप्त किये जाते हैं।
यानि साधारण शब्दों में जाने तो आईवीएफ टेक्नीक के चार महत्वपूर्ण कदम होते है, जिनके हिसाब से महिलाओं का उपचार किया जाता है:-
पहला कदम – सबसे पहले मरीज के खून के सैम्पल्स लिए जाते हैं , जिनसे यह देखा जाता है की मरीज के शरीर में हार्मोन्स किस स्तर पर हैं और अगर हार्मोन्स का स्तर ऊपर नीचे हो तो उन्हें दवाओं की मदद से काबू में किया जाता है | उसके बाद मरीज को प्रजनन की दवायां और हार्मोन्स दिए जाते हैं जिससे उसके अंडकोष में नए अंडे बनने शुरू हो जाते हैं | वहां से अण्डों को निकाल कर परखनली में स्टोर किया जाता है | अण्डों की गिनती एक से जायदा रखी जाती है | इस पर्किर्या में पहले मरीज को कुछ दवायां दी जायेगीं , जिन्हे अपने कुछ निश्चित दिनों तक ही खाना है , उसके बाद मरीज की दवायां बंद करके मरीज को इंजेक्शन लगने शुरू किये जायेगे , जिनका काम है महिला के अंडकोष में काफी सारे अंडे पकाना , क्यूंकि कुछ अंडे दुबारा बच्चेदानी में रखने पर अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाते |
दूसरा कदम – जब अंडे पक कर तैयार हो जायेगे तो इनको अल्ट्रासॉउन्ड की मदद से बाहर निकाला जायेगा , इसमें १० से १५ मिनट लगेंगे और महिला को बेहोश किया जायेगा. अंडे निकलने के बाद महिला के पति से या फिर यहाँ से भी अच्छी गुणवत्ताका वीर्य मिले , उसे लेकर रखा जायेगा |
तीसरा कदम – इन अण्डों और वीर्य से भ्रूण तैयार किया जाएगा | प्रयोगशाला में चिकत्सक इन अण्डों से बने भ्रूण को अपनी देख रेख में बड़ा करेगें और उसका ध्यान रखा जायेगा कि इसमें कोई विकार ना हो | इन अंडे और वीर्य से जो भ्रूण बनाया जायेगा उन्हें प्रयोगशाला में तीन से पांच दिन तक रखा जायेगा |
चौथा कदम – प्रयोगशाला में चिकत्सक जो भ्रूण तैयार करेंगे उसे महिला की बच्चेदानी में रखा जायेगा | इसके बाद महिला को तीन महीने तक दवायां खानी पड़ेगी जो कि बच्चे को टिका कर रखने और उसकी सेहत के लिए जरूरी हैं |
उसके बाद खून की जाँच से पता किया जायेगा की बच्चा टिक गया है या नहीं | अगर बच्चा टिक गया है और सारी रिपोर्ट्स अच्छी है तो मरीज को अब चिकत्सक के पास जाने की जरूरत नहीं है | मरीज की दवायां चालू रहेगी और वह निश्चित समय पर माँ बन सकेगी | यह एक बेहद सुरक्षित और भरोसेमंद टेक्नीक है |