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माता-पिता का ऋण कैसे उतरेगा…?

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बुजुर्ग माता-पिता की सेवा ही आपकी परम धर्म है। एक छोटे बालक को आम का पेड़ बहुत पसन्द था। जब भी फुर्सत मिलती वो तुरन्त आम के पेड़ के पास पहुँच जाता। पेड़ के उपर चढ़ना, आम खाना और खेलते हुए थक जाने पर आम की छाया मे ही सो जाना। बालक और उस पेड़ के बीच एक अनोखा सम्बंध जुड़ गया था। 

बच्चा जैसे जैसे बडा़ होता गया वैसे वैसे उसने पेड़ के पास आना कम कर दिया। कुछ समय बाद तो बिल्कुल ही बन्द हो गया। आम का पेड़ उस बालक को याद कर के अकेला रोता रहता।

एक दिन अचानक पेड़ ने उस बच्चे को अपनी और आते देखा। आम का पेड़ खुश हो गया। बालक जैसे ही पास आया कि तुरन्त पेड़ ने कहा, “तूँ कहाँ चला गया था? मै हर दिन तुम्हे याद किया करता था। चलो आज दोनों खेलते है।”

बच्चा अब बडा़ हो चुका था, उसने आम के पेड़ से कहा, अब मेरी खेलने की उम्र नहीं है। मुझे पढ़ना है पर मेरे पास फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं।”

पेड़ ने कहा, “तूँ मेरे आम लेकर बाजार मे जा और बेंच दे, इससे जो पैसे मिले अपनी फीस भर देना।” उस बच्चे ने आम के पेड़ से सारे आम उतार लिए और वहाँ से चला गया।

उसके बाद फिर कभी वो दिखाई नहीं दिया। आम का पेड़ उसकी राह देखता। एक दिन अचानक फिर वो आया और कहा, अब मुझे नौकरी मिल गई है, मेरी शादी हो चुकी है, मेरा संसार तो चल रहा है, पर मुझे मेरा अपना घर बनाना है इसके लिए मेरे पास पैसे नही है।”

आम के पेड़ ने कहा, “चिंता मत कर मेरी सभी डाली को काट कर ले जा, उसमे से अपना घर बना ले।” उस जवान ने पेड़ की सभी डाली काट ली और उन्हें लेकर चला गया।

आम का पेड़ अब बिल्कुल बंजर हो गया था। कोई उसके सामने भी नहीं देखता था। पेड़ ने भी अब वो बालक/ जवान उसके पास फिर आयेगा, यह आशा छोड़ दी थी।

एक दिन एक वृद्ध वहाँ आया। उसने आम के पेड़ से कहा, “आपने मुझे नहीं पहचाना, पर मै वही बालक हूँ जो बार बार आपके पास आता और आप उसे मदद करते थे।”

आम के पेड़ ने दु:ख के साथ कहा, “पर बेटा मेरे पास अब ऐसा कुछ भी नहीं जो मै तुझे दे सकूँ।”

वृद्ध ने आँखो मे आँसू के साथ कहा, “आज कुछ लेने नहीं आया हूँ, आज तो मुझे आपके साथ जी भरके खेलना है, आपकी गोद मे सर रखकर सो जाना है।”

इतना कहते वो रोते रोते आम के पेड़़ से लिपट गया और आम के पेड़ की सूखी हुई डाली फिर से अंकुरित हो उठी। वृक्ष हमारे माता-पिता समान है, जब छोटे थे, उनके साथ खेलना अच्छा लगता था।

जैसे जैसे बडे़ होते गये उनसे दूर होते गये। पास तब आये जब जब कोई जरूरत पडी, कोई समस्या खडी़ हुई। आज भी वे उस बंजर पेड़ की तरह राह देख रहें हैं। आओ हम जाके उनको लिपटे उनके गले लग जाये जिससे उनकी वृद्धावस्था फिर से अंकुरित हो जाये।

यह कहानी पढ कर थोडा सा भी एहसास हुआ हो और अगर अपने माता-पिता से थोडा भी प्यार करते हो तो कभी उनको छोडेंगे नही..!!

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