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हवन में आहुति देते समय क्यों कहते है ‘स्वाहा’

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अग्निदेव में जो जलाने की तेजरूपा (दाहिका) शक्ति है, वह देवी स्वाहा का सूक्ष्मरूप है। हवन में आहुति में दिए गए पदार्थों का परिपाक (भस्म) कर देवी स्वाहा ही उसे देवताओं को आहार के रूप में पहुंचाती हैं, इसलिए इन्हें ‘परिपाककरी’ भी कहते हैं।

सृष्टिकाल में परब्रह्म परमात्मा स्वयं ‘प्रकृति’ और ‘पुरुष’ इन दो रूपों में प्रकट होते हैं। ये प्रकृतिदेवी ही मूलप्रकृति या पराम्बा कही जाती हैं। ये आदिशक्ति अनेक लीलारूप धारण करती हैं। इन्हीं के एक अंश से देवी स्वाहा का प्रादुर्भाव हुआ जो यज्ञभाग ग्रहणकर देवताओं का पोषण करती हैं।

भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से अग्निदेव का देवी स्वाहा के साथ विवाह-संस्कार हुआ। शक्ति और शक्तिमान के रूप में दोनों प्रतिष्ठित होकर जगत के कल्याण में लग गए। तब से ऋषि, मुनि और ब्राह्मण मन्त्रों के साथ ‘स्वाहा’ का उच्चारण करके अग्नि में आहुति देने लगे और वह हव्य पदार्थ देवताओं को आहार रूप में प्राप्त होने लगा। जो मनुष्य स्वाहायुक्त मन्त्र का उच्चारण करता है, उसे मन्त्र पढ़ने मात्र से ही सिद्धि प्राप्त हो जाती है। स्वाहाहीन मन्त्र से किया हुआ हवन कोई फल नहीं देता है।

देवी स्वाहा के सोलह नाम हैं:-
1. स्वाहा,

2. वह्निप्रिया,

3. वह्निजाया,

4. संतोषकारिणी,

5. शक्ति,

6. क्रिया,

7. कालदात्री,

8. परिपाककरी,

9. ध्रुवा,

10. गति,

11. नरदाहिका,

12. दहनक्षमा,

13. संसारसाररूपा,

14. घोरसंसारतारिणी,

15. देवजीवनरूपा,

16. देवपोषणकारिणी।

इन नामों के पाठ करने वाले मनुष्य का कोई भी शुभ कार्य अधूरा नहीं रहता। वह समस्त सिद्धियों व मनोकामनाओं को प्राप्त कर लेता है। हवन में आहुति देते समय “स्वाहा” शब्द का उच्चारण कई कारणों से किया जाता है:

*1. देवताओं को अर्पण:*

* स्वाहा शब्द का अर्थ है “देवताओं को समर्पित” या “स्वीकार करें”।
* आहुति में अर्पित सामग्री को देवताओं को भेंट के रूप में समर्पित करने का प्रतीक है।

*2. अग्नि देवता को प्रसन्न करना:*

* अग्नि देवता को यज्ञ का माध्यम माना जाता है।
* स्वाहा शब्द का उच्चारण अग्नि देवता को प्रसन्न करने और उन्हें आहुति स्वीकार करने का आग्रह करने के लिए किया जाता है।

*3. यज्ञ की पूर्णता:*

* स्वाहा शब्द का उच्चारण यज्ञ की पूर्णता का प्रतीक है।
* यह दर्शाता है कि आहुति पूरी तरह से जल गई है और देवताओं तक पहुंच गई है।

*4. आध्यात्मिक महत्व:*

* स्वाहा शब्द का आध्यात्मिक महत्व भी है।
* यह माना जाता है कि यह शब्द आत्मा को परमात्मा से जोड़ने में मदद करता है।

*5. नकारात्मकता का नाश:*

* स्वाहा शब्द का उच्चारण नकारात्मक ऊर्जाओं को दूर करने और सकारात्मक ऊर्जाओं को आकर्षित करने के लिए भी किया जाता है।

*6. ध्वनि का महत्व:*

* कुछ लोगों का मानना है कि स्वाहा शब्द की ध्वनि में विशेष शक्तियां होती हैं जो यज्ञ की प्रभावशीलता को बढ़ाती हैं।

*7. परंपरा:*

* स्वाहा शब्द का उच्चारण हवन और यज्ञ में सदियों से किया जाता रहा है।
* यह एक प्राचीन परंपरा है जो आज भी जारी है।

*निष्कर्ष:*

हवन में आहुति देते समय “स्वाहा” शब्द का उच्चारण कई कारणों से किया जाता है। यह देवताओं को अर्पण, अग्नि देवता को प्रसन्न, यज्ञ की पूर्णता, आध्यात्मिक महत्व, नकारात्मकता का नाश, ध्वनि का महत्व और परंपरा का प्रतीक है।

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