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हिन्दू धर्म में कौन से देवता की पूजा किस पुष्प से करनी चाहिए

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पूजन कार्यों में पूष्प प्रयोग का भी विशेष महत्त्व है।

पुष्य संवर्धनाच्चापि पापौध परिहारतः ।
पुष्कलार्थ प्रदानाच्च पुष्प मित्यर्देभिधीयते ।।

अर्थात् पुष्प को चढ़ाने, पापों को नाश करने एवं श्रेष्ठ शुभ फल प्रदान करने के कारण ही इसे ‘पुष्प’ कहा जाता है। देवता न रत्नों से प्रसन्न होते हैं, न भूषणादि से, वे पुष्पों से ही प्रसन्न रहते हैं।

विष्णु को तुलसी, मालती, गुलाब, कनेर, चम्पा एवं कमल के पुष्प सर्वा- धिक प्रिय हैं।

लक्ष्मी को कमल का पुष्प सर्वाधिक प्रिय है।

श्रीकृष्ण भगवान जी को सर्वाधिक प्रिय तुलसी पत्र ही है

देवताओं पर केवल चम्पा की कली ही चढ़ाई जा सकती है। अन्य कोई भी कली या अर्ध विकसित पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए ।

🔸 ध्यान रखने योग्य बात 🔸

सावधानियां-

🔸 दिन को बारह बजे के बाद पुष्प तोड़ना वर्जित है ।
🔸भगवान शंकर को केतको या कुन्द पुष्प, विष्णुपर जी धतूरा, देवी पर आक के फूल तथा सूर्य को तगर का फूल भूलकर भी न चढ़ावें ।
🔸 पुष्प हमेशा सीधा चढ़ाना चाहिए, उलट करके नहीं पर बिल्वपत्र उलट करके चढ़ाया जा सकता है। पुष्पांजलि में यदि उलटे पुष्प भी चढ़ जायं तो कोई दोष नहीं । पुष्पाञ्जलौ न तदोषः बिल्वपत्र मौमुखम्।

🔸 भगवान विष्णु को धतूरा, पाटल, जुही, जपा, कचनार, अशोक, आक, नीम आदि पुष्प भूल कर भी नहीं चढ़ाने चाहिए ।

पद्म पुराण के अनुसार

भगवान विष्णु की पूजा में मास भेद भी दर्शित है-
चैत्र में कमल, चम्पा से विष्णु पूजा करे ।
बैशाख केतकी ।
ज्येष्ठ सभी पुष्प ।
आषाढ़ कनेर, कदम्व, कमल ।
श्रावण-अलसीपुष्प, दूर्वादल ।
भाद्रपद-चम्पा, श्वेत पुष्प, कमल (केतको पुष्प इस मास में वर्जित है ।)
आश्विन-जूही, चमेली ।
कातिक-कमल-पुष्प, मौलश्री, चम्पा ।
मार्गशीर्ष-बकुल पुष्प ।
पौष-तुलसीदल ।
माघ-विविध पुष्प ।
फाल्गुन-वासन्तिक पुष्प ।

शास्त्रों में कई स्थानों पर भगवान विष्णु की पूजा सुवर्ण-पुष्प से करने का विधान है। सुवर्ण-पुष्प का अर्थ चम्पक या चम्पा ही है। जिसने जीवन में एक बार भी सुवर्ण पुष्प से भगवान विष्णु का पूजन नहीं किया, उसका जन्म ही व्यर्थ है ।

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