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उस दौर मे निगेटिव किरदार के एक्टर रामायण तिवारी और भूषण तिवारी

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एक्टर तिवारी (रामायण तिवारी) & भूषण तिवारी (चंद्रभूषण तिवारी)। हो सकता है पहली बार आपने भी जब इन दोनों एक्टर्स (पिता-पुत्र) की फ़िल्में देखीं हों तो इन्हें एक ही समझा हो। दरअसल जब सोशल मीडिया नहीं था तब मैंने 80 के दशक में भूषण तिवारी जी की कुछ फ़िल्में देखीं थीं, इनके किरदार और इनका चेहरा भूलने वाला तो था नहीं। फिर जब यूट्यूब और 4G का मेल हुआ तो खोज-खोज कर पुरानी कल्ट क्लासिक फ़िल्मों के देखने का सिलसिला शुरू हुआ क्योंकि बचपन में जो फ़िल्में दूरदर्शन पे देखी गयीं थीं वो तब उतनी समझ में आती नहीं थीं।

ख़ैर इसी कड़ी में साल 1953 में आयी बिमल रॉय की वन ऑफ द बेस्ट इंडियन फ़िल्म ‘दो बीघा ज़मीन’ भी देखी गयी जिसमें तिवारी जी (रामायण तिवारी) नज़र आये। निगेटिव किरदार ही ज़्यादा करते थे तो इसमें भी कुछ ऐसा ही किरदार था इनका जो पति शम्भू और बेटे कन्हैया (बलराज साहनी और रतन कुमार के किरदार) की तलाश में शहर आई पारो (पार्वती, निरुपा रॉय का किरदार) को झासा देकर घर लाता है और उसकी इज़्ज़त से खेलने की कोशिश करता है।

फ़िल्म में जब तिवारी का चेहरा देखा तो इनके बेटे का चेहरा तुरंत ही याद आ गया और सोचने लगा कि 80 के दशक में जो चेहरा देखा था वो भी इतना ही जवान था। आख़िर 3-4 दशकों बाद भी कोई इतना मेंटेन कैसे हो सकता है? हो सकता है भाई-भाई हों। नाम भी तब पता नहीं था कि गुगल पे तुरंत सर्च किया जाए। फिर फिल्म के स्टारकास्ट से नाम खोजा गया और तब जाकर यह क्लीयर हुआ कि ये पिता-पुत्र हैं।

छोटे-छोटे किरदारों से बड़ी पहचान बनाने वाले रामायण तिवारी को बिहार से आये शुरुआती एक्टर्स में गिना जाता है। 9 मार्च 1980 में इनका देहांत हो गया था। वहीं दर्जनों हिंदी और भोजपुरी फ़िल्मों में यादगार किरदार निभाने वाले भूषण तिवारी का निधन 3 अक्तूबर 1994 को हुआ था। आज ये दोनों ही एक्टर हमारे बीच नहीं हैं लेकिन अपने किरदारों के ज़रिये इनके चेहरे हमेशा याद रखे जाएंगे। आपको इनकी कौन-कौन सी फ़िल्में याद हैं? या फिर इनके द्वारा निभाया कोई ऐसा किरदार जो आप अभी तक नहीं भूले हों हमें ज़रूर ।

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