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जिस प्रदीप कुमार को लोग फिल्मों में राजा, महाराजा और शहंशाह, नवाब और राजकुमार की भूमिकाओं में देखे थे, उस प्रदीप कुमार को बीमारी की हालत में उनके अपनों ने ही बेघर और बेसहारा छोड़ दिया था।और उन्हें दूसरे के द्वार पर लकवा ग्रस्त, सहाय होकर काटना पड़ा अपना बुढ़ापा।
प्रदीप कुमार को बॉलीवुड में एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने 1950 और 1960 के दशक में अपने ऐतिहासिक किरदारों द्वारा दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
उस जमाने में फिल्मकारों को अपनी फिल्म के लिए जब भी किसी राजा, महाराजा, राजकुमार या नवाब की भूमिका की जरूरत होती थी तो प्रदीप कुमार को याद किया जाता था।
शीतल बटावली उर्फ प्रदीप कुमार का जन्म 4 जनवरी 1925 को पश्चिम बंगाल के एक परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था बचपन से ही उनकी अभिरुचि अभिनय में थी अपने जीवन के शुरुआती दौर में वे रंगमंच से जुड़े हालांकि इस बात के लिए उनके पिताजी राजी नहीं थे।
एक बांग्ला नाटक में बंगाली फिल्मों के निर्देशक देवकी बॉस ने उनके अभिनय को देखा और उनके अभिनय से वो बहुत प्रभावित हुए देवकी बॉस ने अपनी फिल्म ‘अलकनंदा’ में बतौर नायक उन्हें अवसर दिया। देवकी बॉस ने ही उन्हें फिल्मी नाम प्रदीप कुमार भी दिया था, ये फिल्म तो हिट नहीं हुई लेकिन बतौर नायक प्रदीप कुमार की दूसरी बांग्ला फिल्म ‘भूतनाथ’ ने सिल्वर जुबली मनाई। प्रदीप कुमार ने फिर हिंदी फिल्मों की तरफ अपना रुख किया
महज 17 साल की उम्र में प्रदीप कुमार अपने सपने साकार करने के लिए मुंबई आ गए , मुंबई आने के बाद वे कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे इस तरह से उन्होंने पर्दे के पीछे और पर्दे पर दोनों जगह नाम काम किया।
साल 1946 से 1952 तक प्रदीप कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे प्रदीप कुमार पर फिल्मों में हीरो बनने का जुनून कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करने शुरू कर दी उर्दू भाषा पर उनकी पकड़ जबरदस्त थी ।
फिल्म अलकनंदा के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वो उसे स्वीकार करते चले गए इस बीच उन्होंने कृष्ण लीला, स्वामी, विष्णु प्रिया, संध्या बेलार रूप कथा, जैसे कई फिल्मों में अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।
वर्ष 1952 में प्रदर्शित फिल्म ‘आनंद मठ’ में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिए हालांकि इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर जैसे महान अभिनेता भी थे फिर भी प्रदीप कुमार पृथ्वीराज कपूर की उपस्थिति में भी दर्शकों के बीच अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे । इस फिल्म के बाद वो बतौर मुख्य अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।
वर्ष 1953 में फिल्म ‘अनारकली’ में उन्होंने शहजादा सलीम की भूमिका निभाई जो दर्शकों को काफी पसंद आई इस फिल्म में उनकी नायिका ‘बीना राय’ थी इसके साथ ही वो ऐतिहासिक फिल्मों के निर्माता निर्देशकों की पहली पसंद बन गए।
वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म ‘नागिन: की सफलता के बाद प्रदीप कुमार दर्शकों के चहेते कलाकार बन गए इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए और इस फिल्म में उनकी नायिका वैजयंती माला थी इस फिल्म के गाने ‘मेरा मन डोले मेरा तन डोले’, और ‘मेरा दिल ये पुकारे आजा’ श्रोताओं के बीच खूब लोकप्रिय हुए।
साल 1956 प्रदीप कुमार के सिने करियर के लिए सबसे अहम वर्ष साबित हुआ इस वर्ष उनकी 10 फिल्में आई जिनमें ‘श्री फरहाद, जागते रहो, दुर्गेश नंदिनी, बंधन, राजहठ, एक शोला, पटरानी, फैशन और हीर रांझा जैसी फिल्में शामिल है ।
इसके बाद प्रदीप कुमार ने एक झलक, गेटवे ऑफ इंडिया (1957) अदालत (958), दुनिया ना माने (1959), महलों के ख्वाब, घूंघट,(1960) आरती,(1962) ताजमहल (1963), चित्रलेखा (1964), भीगी रात (1965), रात और दिन, बहू बेगम (1969) जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाकर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
इसके बाद प्रदीप कुमार ने चरित्र अभिनेता के रूप में महबूब की मेहंदी, समझौता, हवस, दो अनजाने, धर्मवीर, खट्टा मीठा, क्रांति, रजिया सुल्तान, दुनिया, पुराना मंदिर, मेरा धर्म, वारिस, जैसी कई सुपरहिट फिल्मों के जरिए दर्शकों के दिलों पर राज किया। प्रदीप कुमार ने अपने सिने करियर में मधुबाला, बीना राय, वैजयंती माला, नरगिस, नूतन, माला सिन्हा और मीना कुमारी जैसी लगभग सभी टॉप एक्ट्रेस के साथ काम किया।
लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शकों के बीच खास पहचान बनाने वाले प्रदीप कुमार के जीवन का अंतिम दौर बहुत ही खराब गुजरा, 70 के दशक में हिंदी सिनेमा का परिदृश्य बदला और प्रदीप कुमार के लिए फिल्मों में कोई जगह नहीं रह गई थी उदासी अवसाद और अर्थाभाव के शिकार प्रदीप कुमार लकवा ग्रस्त होकर मुंबई से कोलकाता आ गए।
प्रदीप कुमार ने शोहरत तो बहुत कमाई लेकिन वो दौलत ना कमा सके। बीमार लकवा ग्रस्त प्रदीप कुमार को उनके अपनों ने ही बेघर और बेसहारा करके छोड़ दिया ऐसे में कोलकाता में प्रदीप कुमार अपने एक परिचित कोलकाता के एक बड़े कारोबारी ‘प्रदीप कुंणडिया’ के यहां आश्रय लेकर रह रहे थे।
प्रदीप कुंणडिया ने लकवा ग्रस्त अस्वस्थ प्रदीप कुमार को रामायण रोड स्थित, जनक बिल्डिंग के अपने फ्लैट में आश्रय दे रखा था।
एक अखबार को दिए इंटरव्यू में प्रदीप कुमार ने बताया था कि उनकी पत्नी गुजर चुकी है और उनकी तीनों बेटियां बिना, रीना मीना और बेटा देवी प्रसाद में से कोई भी उन्हें कभी झांकने तक नहीं आता प्रदीप कुमार ने कहा कि उनके हम नाम प्रदीप कुंणडिया ने उन्हें अपने फ्लैट में आश्रय दे रखा है और एक लड़का सागर चौधरी उनकी 24 घंटे सेवा करता है।
जिस प्रदीप कुमार को लोग फिल्मों में राजा, महाराजा और शहंशाह, नवाब और राजकुमार की भूमिकाओं में देखे थे, वो प्रदीप कुमार बहुत ही गरीबी में गुजरे, लंबी बीमारी के बाद 27 अक्टूबर साल 2001 को कोलकाता में ही उनका निधन हो गया था। हिंदी फिल्मों में उनके योगदान के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।