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घमंड और साधना

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सन्त कबीर गाँव के बाहर झोपड़ी बनाकर अपने पुत्र कमाल के साथ रहते थे। सन्त कबीर जी का रोज का नियम था- नदी में स्नान करके गाँव के सभी मंदिरों में जल चढ़ाकर दोपहर बाद भजन में बैठते, शाम को देर से घर लौटते। वह अपने नित्य नियम से गाँव में निकले थे।

 

पास के गाँव के जमींदार का एक ही जवान लड़का था जो रात को अचानक मर गया। रात भर रोना-धोना चला। आखिर में किसी ने सुझाया कि गाँव के बाहर जो बाबा रहते हैं उनके पास ले चलो। शायद वह कुछ कर दें। सब तैयार हो गए। लाश को लेकर पहुँचे कुटिया पर। देखा बाबा तो हैं नहीं, अब क्या करें ? तभी कमाल आ गए।

 

उनसे पूछा कि बाबा कब तक आएँगे ? कमाल ने बताया कि अब उनकी उम्र हो गई है। सब मंदिरों के दर्शन करके लौटते-लौटते रात हो जाती है। आप काम बोलो क्या है ? लोगों ने लड़के के मरने की बात बता दी। कमाल ने सोचा कोई बीमारी होती तो ठीक था पर ये तो मर गया है। अब क्या करें ! फिर भी सोचा लाओ कुछ करके देखते हैं, शायद बात बन जाए।

 

कमाल ने कमंडल उठाया, लाश की तीन परिक्रमा कीं, फिर तीन बार गंगा जल का कमंडल से छींटा मारा और तीन बार राम नाम का उच्चारण किया, लड़का देखते ही देखते उठकर खड़ा हो गया। लोगों की खुशी की सीमा न रही। कबीर जी को किसी ने बताया कि आपके कुटिया की ओर गाँव के जमींदार और सभी लोग गए हैं। कबीर जी झटकते कदमों से बढ़ने लगे, उन्हें रास्ते में ही लोग नाचते-कूदते मिले, कबीर जी कुछ समझ नही पाए। आकर कमाल से पूछा क्या बात हुई ? तो कमाल तो कुछ और ही बताने लगा, बोला- गुरु जी बहुत दिन से आप बोल रहे थे ना की तीर्थ यात्रा पर जाना है तो अब आप जाओ यहाँ तो मैं सब सँभाल लूँगा।

 

कबीर जी ने पूछा क्या संभाल लेगा ? कमाल बोला- बस यही मरे को जिंदा करना, बीमार को ठीक करना, ये तो सब अब मैं ही कर लूँगा। अब आप तो यात्रा पर जाओ जब तक आप की इच्छा हो। कबीर ने मन ही मन सोचा- चेले को सिद्धि तो प्राप्त हो गई है पर सिद्धि के साथ ही साथ इसे घमंड भी आ गया है।

 

पहले तो इसका ही इलाज करना पडेगा बाद मे तीर्थ यात्रा होगी क्योंकि साधक में घमंड आया तो साधना समाप्त हो जाती है। कबीर जी ने कहा ठीक है। आने वाली पूर्णमासी को एक भजन का आयोजन करके फिर निकल जाऊँगा यात्रा पर। तब तक तुम आस-पास के दो चार सन्तो को मेरी चिट्ठी जाकर दे आओ, भजन में आने का निमंत्रण भी देना।

 

कबीर जी ने चिट्ठी मे लिखा था- “कमाल भयो कपूत, कबीर को कुल गयो डूब।” कमाल चिट्ठी लेकर गया एक सन्त के पास, उनको चिट्ठी दी, चिट्ठी पढ़ के वह समझ गए। उन्होंने कमाल का मन टटोला और पूछा कि अचानक ये भजन के आयोजन का विचार कैसे हुआ ?

 

कमाल ने अहं के साथ बताया- कुछ नहीं, गुरू जी की लंबे समय से तीर्थ पर जाने की इच्छा थी, अब मैं सब कर ही लेता हूँ तो मैने उन्हें कहा कि अब आप जाओ यात्रा कर आओ, तो वह जा रहे हैं और जाने से पहले भजन का आयोजन है। सन्त दोहे का अर्थ समझ गए, उन्होंने कमाल से पूछा- तुम क्या-क्या कर लेते हो ? तो बोला वही मरे को जिंदा करना बीमार को ठीक करना जैसे काम।

 

सन्त जी ने कहा आज रूको और शाम को यहाँ भी थोडा चमत्कार दिखा दो। उन्होंने गाँव में खबर करा दी, थोडी देर में दो तीन सौ लोगों की लाईन लग गई। सब नाना प्रकार की बीमारी वाले, सन्त जी ने कमाल से कहा- चलो इन सबकी बीमारी को ठीक कर दो। कमाल तो देख के चौंक गया ! अरे, इतने सारे लोग हैं, इतने लोगों को कैसे ठीक करूँ, यह मेरे बस का नहीं है।

 

सन्त जी ने कहा- कोई बात नहीं, अब ये आए हैं तो निराश लौटाना ठीक नहीं, तुम बैठो। सन्त जी ने लोटे में जल लिया और राम नाम का एक बार उच्चारण करके छींट दिया, एक लाईन में खड़े सारे लोग ठीक हो गए, फिर दूसरी लाइन पर छींटा मारा वे भी ठीक। बस दो बार जल के छींटे मार कर दो बार राम बोला तो सभी ठीक हो के चले गए।

 

सन्त जी ने कहा- अच्छी बात है कमाल, हम भजन में आएंगे, पास के गाँव में एक सूरदास जी रहते हैं, उनको भी जाकर बुला लाओ फिर सभी इक्ठ्ठे होकर चलते हैं भजन में। कमाल चल दिया सूरदास जी को बुलाने। सारे रास्ते सोचता रहा कि ये कैसे हुआ कि एक बार राम कहते ही इतने सारे बीमार लोग ठीक हो गए। मैंने तीन बार प्रदक्षिणा की, तीन बार गंगा जल छिड़क कर तीन बार राम नाम लिया तब बात बनी। यही सोचते-सोचते सूरदास जी की कुटिया पर पहुँच गया। जाके सब बात बताई कि क्यों आना हुआ। कमाल सुना ही रहा था कि इतने में सूरदास बोले- “बेटा ! जल्दी से दौड के जा, टेकरी के पीछे नदी में कोई बहा जा रहा है, जल्दी से उसे बचा ले।”

 

कमाल दौड के गया, टेकरी पर से देखा नदी में एक लड़का बहा आ रहा था, कमाल नदी में कूद गया और लड़के को बाहर निकाल कर अपनी पीठ जी लाद के कुटिया की तरफ चलने लगा। चलते-चलते उसे विचार आया कि अरे सूरदास जी तो अंधे हैं, फिर उन्हें नदी और उसमें बहता लड़का कैसे दिख गया। उसका दिमाग सुन्न हो गया था। लडके को भूमि पर रखा तो देखा कि लड़का मर चुका था। 

 

सूरदास ने जल का छींटा मारा और बोला- “रा”, तब तक लडका उठ के चल दिया। अब तो कमाल अचंभित कि अरे इन्हें तो पूरा राम भी नहीं बोला, खाली ‘रा’ बोलते ही लड़का जिंदा हो गया। तब कमाल ने वह चिट्ठी खोल के खुद पढ़ी की इसमें क्या लिखा है जब उसने पढ़ा तो सब समझ मे आ गया।

 

वापस आ के कबीर जी से बोला गुरु जी संसार मे एक से एक सिद्ध हैं उनके आगे मैं कुछ नहीं हूँ। गुरु जी आप तो यहीं रहिए, अभी मुझे जाकर भ्रमण करके बहुत कुछ सीखने समझने की जरूरत है।

 

कथा का तात्पर्य है कि गुरू की कृपा से सिद्धियाँ मिलती हैं। उनका आशीर्वाद होता है तो साक्षात ईश्वर आपके साथ खड़े होते हैं। गुरू, गुरू ही रहेंगे, वह शिष्य के मन के सारे भाव पढ़ लेते हैं और मार्गदर्शक बनकर उन्हें पतन से बचाते हैं।

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