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तुलसी और वृंदावन की कहानी

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बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में एक साधू बाबा रहते थे जिनका नाम स्वामी तुलसीदास था। स्वामी तुलसीदास गाँववालों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए जाने जाते थे और वहां बच्चों को मोरल वैल्यूज और सांस्कृतिक मूल्यों के बारे में सिखाते थे।

गाँव में एक गरीब लड़के का नाम श्याम था जो स्वामी तुलसीदास के शिष्य बनना चाहता था। श्याम ने अपनी ईमानदारी और निष्ठा से स्वामी तुलसीदास की शिक्षा में बहुत ध्यान दिया।

एक दिन, स्वामी तुलसीदास ने श्याम से कहा, “तुम्हें वृंदावन जाना चाहिए, वहां तुम्हें और भी अध्ययन करने का अवसर मिलेगा और तुम्हारी आत्मा को भी शांति मिलेगी।”

श्याम ने आशीर्वाद लेकर वृंदावन की यात्रा पर रुखा। वहां उसने भगवान कृष्ण के अद्भुत मंदिरों में अध्ययन किया और ध्यान में रहकर अपनी आत्मा को महसूस किया।

एक दिन, श्याम ने एक वृंदावन के पुराने मंदिर में एक पूजारी को देखा जो वहां के सभी पौधों की देखभाल कर रहा था। उसने पूजारी से पूछा, “तुम इतनी मेहनत से इन पौधों का ख्याल क्यों रखते हो?”

पूजारी ने हंसते हुए कहा, “इनमें से एक पौध ने मुझसे कहा कि वहां भगवान विष्णु का वास है और इसलिए मैं उनकी सेवा करता हूं।”

श्याम ने उस पौध की बात सुनकर समझा कि हर चीज़ में भगवान का ही वास है और उसने अपनी आत्मा को भगवान के साथ एक कर लिया। उसने वृंदावन से वापस गाँव लौटकर स्वामी तुलसीदास को उसकी आत्मा की शांति की खोज में मदद करने का निर्णय किया।

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हमें अपने आत्मा के साथ साक्षात्कार करना चाहिए और हर चीज़ में भगवान का आभास करना चाहिए। यह हमें धार्मिक रूप से जीने की महत्वपूर्णता को समझाता है और हमें अपने कर्मों को भगवान की सेवा में समर्पित करने का प्रेरणा देता है।

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