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अपने स्वामी लंकेश रावण को रानी पहले कह चुकी है –
तुम्हहिं रघुपतिहि अंतरु कैसा। खलु खद्योत दिनकरहि जैसा।।
आप में और श्री रघुनाथ जी में कैसा अंतर है ? वैसा अंतर है, जैसा जुगनू और सूर्य में होता है। जुगनू की तुलना सूर्य के साथ कभी नहीं की जा सकती। सूर्य की भांति प्रभु भी अतुलनीय हैं अर्थात् उनकी किसी के साथ तुलना की ही नहीं जा सकती।
इसी बात को स्पष्ट करते हुए वे कहती हैं –
” अति बल मधु कैटभ जेहि मारे। “
अर्थात् जिन्होंने अत्यंत बलवान मधु और कैटभ को मारा।
तो आइए ,जानते हैं कि किन्होंने मधु और कैटभ को मारा था एवं मधु और कैटभ कौन थे ?
श्री दुर्गा सप्तशती में उल्लेख है कि कल्प के अंत में जब संपूर्ण जगत एकार्णव में निमग्न हो रहा था , तो सबके प्रभु भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा का आश्रय ले सो रहे थे। उस समय मधु और कैटभ दोनों दुर्दांत राक्षस के रूप में विख्यात थे। दोनों दैत्य मधु और कैटभ ब्रह्मा जी का वध करने को तैयार हो गए थे। तब ब्रह्मा जी ने देवी योगनिद्रा की स्तुति कर भगवान विष्णु को जगाया।
शेषनाग की शैय्या से जागकर भगवान ने दोनों अत्यंत बलवान और पराक्रमी दुरात्मा मधु और कैटभ असुरों को देखा। तत्पश्चात् भगवान श्री हरि उठकर उन दोनों के साथ युद्ध करने लगे। दोनों राक्षस काफी बलवान थे और उन दोनों ने देखा कि विष्णु जी अकेले ही उन दोनों से अनवरत युद्ध कर रहे हैं , तो वे दोनों राक्षस विष्णु जी से प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर दैत्यों ने विष्णु जी को ही कहा – ” हम तुम्हारी वीरता से संतुष्ट हैं , तुम कोई वर मांग लो। “
भगवान ने कहा –
भवेतामद्य मे तुष्टौ मम वध्यावुभावपि।।
अर्थात् यदि तुम दोनों मुझ पर प्रसन्न हो , तो अब मेरे हाथ से मारे जाओ।
तथेत्युक्त्वा भगवता शङ्खचक्रगदाभृता।
कृत्वा चक्रेण वै च्छिन्ने जघने शिरसी तयो:।।
तब ” तथास्तु ” कहकर शंख , चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान ने उन दोनों के मस्तक अपनी जांघ पर रखकर चक्र से काट डाले।
चौपाई के प्रथम चरण में रानी मंंदोदरी ने भगवान विष्णु के अवतार का वर्णन नहीं किया है , वरन् साक्षात भगवान विष्णु द्वारा दोनों पराक्रमी दैत्यों के वध का उल्लेख किया है। ये दोनों दुर्दांत राक्षस इतने महाबली थे कि इनको मारने के लिए स्वयं भगवान को ही आना पड़ा था।
उपर्युक्त उदाहरण द्वारा रानी अपने पति को यह संकेत दे रही है कि ऐसे प्रभु ही श्री राम के रूप में पुनः धरती पर अवतरित हुए हैं।